बचत और निवेश में अंतर समझने के लिए पढ़ें यह खबर

आज हर कोई, खास तौर पर युवा लोग एक अच्छा और आरामदायक जीवन जीने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। अगर उनसे सेविंग्स की बात की जाये तो वे कहेंगे कि वे मासिक आय का 20-30 प्रतिशत बचाते हैं और इस बात को लेकर वे बहुत खुश हैं।

यदि आप आय का 20-30 प्रतिशत बचाते हैं और इससे संतुष्ट हैं तो हम आपको एक गेम बताते हैं। कल्पना कीजिये कि आप एक टाइम मशीन में हैं और आपने अपनी सारी बचत एक हुंडी में रख दी है। अब, ये मशीन आपको भविष्य में लेकर जाती हैं जहां आप रिटायर हो जाते हैं।

अब अपनी हुंडी को खोलें और देखें कि आपको क्या मिला है। इस पूरी गणना में 6 प्रतिशत मुद्रास्फीति को भी शामिल करें। आपको रिटायरमेंट फंड के रूप में कुछ राशि मिलेगी। अब देखें कि आप अपने रिटायरमेंट के बाद के खर्चों को कैसे मैनेज करने वाले हैं। क्या आपको वो ही मिला जो आपने सोचा था? नहीं ना! आप समझ गए होंगे कि इतनी बचत एक सामान्य जीवन जीने के लिए भी काफी नहीं है।

तो आपने गलती कहां की? आपके रिटायरमेंट फंड्स में यह बड़ा अंतर कैसे है? आइये इसे समझते हैं। आपको सबसे पहले, बचत और निवेश में अंतर समझना होगा। अब आप कहेंगे कि बचत और निवेश में क्या अंतर है? आइये इसी अंतर को जानते हैं।

सेविंग क्या है?

सेविंग क्या है?

आपकी मासिक आय और खर्चों के बीच का अंतर सेविंग कहलाता है। अपने सभी खर्चे जोड़ें जैसे खाना, ऐशो-आराम, स्कूल फीस, मेड की फीस, ड्राईवर, किराया, बिल, मेंटेनेंस और सब कुछ। जो बचेगा वो आपकी सेविंग है।

इन्वेस्‍टमेंट (निवेश) क्या है?

इन्वेस्‍टमेंट (निवेश) क्या है?

इन्वेस्ट का मतलब अपने बचत किए हुये पैसे को बढ़ाना है जैसे फिक्स डिपॉजिट, स्टॉक मार्केट, म्यूचुअल फंड और अन्य निवेश के विकल्पों में पैसा लगाना।

अभी भी शायद आपको संदेह है। आइये हम आपको उदाहरण से समझाते हैं।

क्या आप किसी ऐसे व्‍यक्ति को जानते हैं जो कि छोटा सा कोई बिजनेस करता है और उसमें से जो पैसे मिलते हैं उनमें से कुछ पैसे अपने पास रख लेता है और कुछ पैसे से घर के बचत और निवेश में क्या अंतर हैं खर्चे चलाता है। उसके रखे हुए पैसे से क्‍या बचत होगी नहीं।

छोटे से बिजनेस में भी प्रोडक्ट को आगे बढ़ाने और एक अच्छा सा रिटर्न पाने के लिए एक प्रक्रिया और सिस्टम के ज़रूरत रहती है। इसी तरह, अपनी सेविंग्स को ऐसे ही रखने के बजाय, उसे सही तरह निवेश करने की ज़रूरत है, ताकि आगे जाकर वो आपको अच्छा रिटर्न दे।

हम आपको और सही समझाते हैं। अपनी सेविंग्स को कच्चा माल और निवेश को एक प्रक्रिया से समझें जिससे कि आपका पैसा बढ़ेगा।

हमें निवेश को ज़्यादा महत्व क्यों देना चाहिए?

हमें निवेश को ज़्यादा महत्व क्यों देना चाहिए?

क्या अभी भी आपके दिमाग में यह प्रश्न है? मान लीजिए आपके एक बेटा है जो अगले 15 सालों में डॉक्टर बनना चाहता है। आपको आज के हालात में कम से कम 50-60 लाख रुपए मेडिकल की पढ़ाई के लिए चाहिए। इसलिए, आपको अपने बेटे की ख्वाइश पूरी करने के लिए हर साल लगभग 4 लाख बचत करने होंगे। ठीक है, आप शायद ये रकम बचा भी लेंगे। क्या आप जानते हैं कि अगले 15 सालों में आपके बेटे को मेडिकल की पढ़ाई के लिए कितने रुपए चाहिए? लगभग 1 करोड़ रुपए।

आप 6 प्रतिशत की मुद्रास्फीति को भी जोड़कर चलें तभी आप सही हिसाब लगा पाएंगे। केवल एक निश्चित राशि हर महीने या हर साल बचत करने मात्र से आपका भविष्य का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

अपने भविष्य के लक्ष्य को पूरा करने के लिए फाइनेंशियल प्लान

अपने भविष्य के लक्ष्य को पूरा करने के लिए फाइनेंशियल प्लान

अपने भविष्य के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन बिन्दुओं के आधार पर फाइनेंशियल प्लान बनाएं।

अनुशासित निवेश मॉडल

अनुशासित निवेश मॉडल

आपको अच्छे रिटर्न पाने के लिए लगातार अच्छे निवेश पर फोकस करना होगा। ध्यान रखें कि बचत और निवेश एक सिक्के के दो पहलू हैं। सेविंग्स आपके भविष्य के लक्ष्य को विश्वास के साथ पाने में आपकी मदद करेगी, लेकिन निवेश से ही आपको अपना भविष्य का लक्ष्य मिलेगा। केवल अपनी आय का कुछ भाग सेव करने से आपको ज़्यादा फायदा नहीं मिलेगा। निवेश का एक अनुशासित मॉडल अपनाएं और इसे निरंतर फॉलो करें।

सेविंग्स के लिए अपने खर्चों पर काबू रखें

सेविंग्स के लिए अपने खर्चों पर काबू रखें

अपने खर्चों पर ध्यान दें और इन्हें नियंत्रित करें। आप क्रेडिट कार्ड के उपयोग को सीमित कर, समय पर बिल भुगतान कर और सही संसाधन अपनाकर खर्चों को नियंत्रित कर सकते हैं। फालतू के खर्चे हटा दें इससे आपकी सेविंग्स बढ़ेंगी। यदि आप अपनी सेविंग्स से ज़्यादा निवेश करेंगे तो आपको आगे जाकर अच्छे रिटर्न्स मिलेंगे।

नियमित रुप से सेव करें और लंबे समय के लिए निवेश करें

नियमित रुप से सेव करें और लंबे समय के लिए निवेश करें

नियमित रुप से सेव करना और लंबे समय के लिए निवेश करना बेहद आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर, आप कमाई शुरु होने के 5 साल बाद आपकी घर खरीदने की योजना है। इस समय के दौरान पैसे को सही तरह निवेश करें ताकि 5 साल बाद सही रकम आपके पास हो।

मुद्रास्फीति को दिमाग में रखें और बुद्धिमानी से निवेश करें। जब घर खरीद लें, तो इसके बाद नया लक्ष्य निर्धारित करें और इसकी पूर्ति के लिए अपनी सेविंग को सही तरह निवेश करें।

क्या आप जानते हैं बचत और निवेश में क्या अंतर है?

क्या आप जानते हैं बचत और निवेश में क्या अंतर है

बचत और निवेश के बीच कुछ प्रमुख अंतर इस प्रकार हैं:

औबजेक्टिव (उद्देश्य)

बचत अल्पकालिक वित्तीय उद्देश्यों के लिए उपयुक्त हैं।

उस अद्भुत कैमरे या उस महंगी पोशाक के लिए अपनी आय में से कुछ राशि की बचत करना उचित है।

आप बचत का उपयोग बड़े वित्तीय लक्ष्यों या लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए नहीं कर सकते।

ऐसे उद्देश्यों के लिए निवेश अधिक उपयुक्त हैं।

उदाहरण के लिए, आप अपने सपनों का घर नहीं खरीद सकते हैं या अपनी बचत से सेवानिवृत्ति की योजना नहीं बना सकते हैं।

आपको ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक धन जनरेटर की आवश्यकता होगी जो आपको बहुत अधिक रिटर्न प्रदान करे।

निवेश का बचत और निवेश में क्या अंतर हैं उपयोग मूल रूप से बच्चों के भविष्य की योजना बनाने, शादी, शिक्षा या सेवानिवृत्ति के लिए किया जाता है।

लिक्विडिटी (तरलता)

बचत को आपातकालीन निधि के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। हमेशा यह सलाह दी जाती है कि अपने सभी भंडार (रिजर्व) को निवेश में न लगाएं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि निवेश प्रकृति में कम लिक्विड है।

कुछ निवेश योजनाएं आपको ग्रोथ स्टॉक जैसे उच्च लिक्विडिटी दे सकती हैं।

लेकिन ज्यादातर निवेश लंबी अवधि के होते हैं।

यही कारण है कि आपात स्थिति के लिए निवेश एक आदर्श वित्तीय मंच नहीं है।

दूसरी ओर बचत प्रकृति में अत्यधिक तरल होती है।

वे आपको वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

बचत आपको अपने सभी भंडारों तक मौके पर पहुंच प्रदान कर सकती है, लेकिन निवेश के लिए आपको निवेश योजना की मौच्योरटी तिथि तक प्रतीक्षा बचत और निवेश में क्या अंतर हैं करने की आवश्यकता होगी।

इसमें सालों लग सकते हैं।

इसलिए, एक व्यक्ति के पास हमेशा कोई न कोई इमरजेंसी फंड होना चाहिए।

रिस्क (जोखिम)

बचत और निवेश के बीच बचत और निवेश में क्या अंतर हैं अंतर करने के लिए जोखिम एक और महत्वपूर्ण पौरामीटर है।

यह एक स्पष्ट तथ्य है कि निवेश अपने साथ बहुत अधिक जोखिम उठाता है।

यही कारण है कि वे धन को अधिकतम कर सकते हैं।

जोखिम के बिना, वापसी की कोई गारंटी नहीं है।

जबकि बचत अपने साथ कोई संभावित जोखिम नहीं उठाती है।

एक व्यक्ति बैंकों में बचत और निवेश में क्या अंतर हैं बचत के रूप में रिजर्व बनाता है।

वे उस बचत को FD या सामान्य खातों में डाल सकते हैं और स्थिर रिटर्न अर्जित कर सकते हैं।

लेकिन ये रिटर्न निवेश की तुलना में बहुत कम हैं।

निवेश एक जोखिम भरा उद्यम है क्योंकि यह एक अस्थिर बाजार से जुड़ा है।

अच्छी कमाई की संभावना उतनी ही अधिक है जितनी कि आपके सारे पैसे खोने की संभावना।

हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि निवेश आपका सारा पैसा डूब सकता है।

विभिन्न प्रकार के निवेश हैं, और आपको अपनी जोखिम लेने की क्षमता के अनुसार चयन करना चाहिए।

रिटर्न ( निवेश पर रिटर्न )

बचत की तुलना में निवेश बहुत अधिक रिटर्न प्रदान करता है।

बचत आपको समय की अवधि में एक निश्चित रिटर्न प्रदान करती है।

उदाहरण के लिए, FD मूल राशि पर 4-5% रिटर्न प्रदान करता है।

जबकि, निवेश आपको 15 और 18% तक का रिटर्न दे सकता है।

लेकिन यह ध्यान में रखना होगा कि इस व्यापार में जोखिम भी उतना ही अधिक है।

कंक्लूजन ( निष्कर्ष )

लेकिन इन दोनों शब्दों में अंतर होने के बावजूद एक कमाई करने वाले व्यक्ति को बचत और निवेश बहुत सावधानी से करना चाहिए।

निवेश आपको अपने धन को अधिकतम करने और अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकता है, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि निवेश एक जोखिम भरा उद्यम है।

आप अपना कुछ पैसा खो सकते हैं और बचत आपको उस चरण से निपटने में मदद करेगी।

बचत के साथ भी ऐसा ही है। बचत करने से आपके लिए अतिरिक्त धन उत्पन्न नहीं होगा।

इसलिए, आपको अर्थव्यवस्था की प्रगति को बनाए रखने और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए निवेश की आवश्यकता है।

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Thematic Funds और Sectoral Fund में क्या अंतर है? निवेश करने के पहले समझ लें नफा नुकसान का पूरा गणित

Thematic Funds vs Sectoral Funds: क्या आपको थीमैटिक फंड और सेक्टोरल फंड के बीच का अंतर पता है. आइए जानते हैं इसमें निवेश करने के सभी नफा और नुकसान.

Thematic Funds vs Sectoral Funds: अपने पैसों के निवेश करने के लिए इन्वेसटर्स कई तरह के फंड में निवेश करते हैं. इसके लिए सबसे सुरक्षित ऑप्शंस में से एक Mutual Funds भी कई तरह के होते बचत और निवेश में क्या अंतर हैं हैं. जैसे अगर इन्वेस्टर्स एक ही थीम वाले वाले अलग-अलग शेयरों में निवेश करते हैं, तो उन्हें थीमैटिक फंड्स (Thematic Funds) कहा जाता है. वहीं दूसरी ओर अगर आप किसी विशेष इंडस्ट्री या सेक्टर में निवेश करते हैं, तो उसे सेक्टोरल फंड्स (Sectoral Funds) में निवेश कहा जाता है. आइए जानते हैं इन दोनों फंड के क्या मतलब है, इसमें कितना अंतर हैं और इनमें किसे निवेश करना चाहिए.

क्या होते हैं थीमैटिक फंड (Thematic Funds)?

जब इन्वेस्टर्स किसी कॉमन थीम से जुड़े फंड्स में निवेश करते हैं, तो उसे थीमैटिक फंड्स (Thematic Funds) कहा जाता है. इसमें हाउसिंग, टूरिज्म, मेक इन इंडिया जैसे फंड्स आ सकते हैं. अब जैसे अगर आप हाउसिंग थीम के फंड्स में निवेश कर रहे हैं, तो इसमें सीमेंट, स्टील, पेंट, हाउसिंग फाइनेंस आदि से जुड़ी कंपनियों में निवेश शामिल होता है. इसमें निवेश करने वक्त टॉप-डाउन अप्रोच रखा जाता है, जिसमें अलग-अलग सेक्टर से एक ही थीम वाले फंड्स में निवेश किया जाता है.

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क्या होते हैं सेक्टोरल फंड (Sectoral Fund)?

जब इन्वेस्टर्स किसी स्पेशल इंडस्टी ग्रुप या सेक्टर से जुड़े शेयरों में निवेश करते हैं, तो उन्हें सेक्टोरल फंड (Sectoral Fund) कहा जाता है. इस फंड में निवेश करने का उद्देश्य किसी विशेष उद्योग में आ रहे ग्रोथ से मुनाफा कमाना होता है. सेक्टर आधारित रिटर्न आमतौर पर साइक्लिकल होते हैं, जिसमें अनुभवी निवेशकों को ही निवेश करने की सलाह दी जाती है.

थीमैटिक vs सेक्टोरल फंड

थीमैटिक बचत और निवेश में क्या अंतर हैं फंड (Thematic Funds) में इन्वेस्टर्स एक ही थीम वाले फंड में डायवर्सिफाइड निवेश करते हैं, जबकि सेक्टोरल फंड (Sectoral Fund) में एक ही सेक्टर के अलग-अलग स्टॉक मे निवेश करना होता है. जहां एक तरफ थीमैटिक फंड में अलग-अलग सेक्टर के कॉम्बिनेशन में निवेश होता है, वहीं सेक्टोरल में एक तरह के सेक्टर से कॉन्सेन्ट्रेटिड पोर्टफोलियो तैयार किया जाता है.

निवेश से पहले समझिए सरकारी बॉन्ड और कॉरपोरेट बॉन्ड में अंतर, आपके लिए इनमें क्या हैं फायदे

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। अक्सर बॉन्ड के बारे में सुनते होंगे। इकोनॉमिक जगत में इसका जिक्र बार-बार होता है। हालांकि, यह हमारी सामान्य बातचीत का हिस्सा नहीं बनता है। आइए इस आर्टिकल के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह बॉन्ड है क्या?

PPF account expired, know how to recovered it

बॉन्ड कंपनी और सरकार के लिए पैसा जुटाने का एक माध्यम होता है। बॉन्ड से जुटाए गया पैसा कर्ज की कैटेगरी में आता है। सरकार अपनी आय और खर्च के अंतर को पूरा करने के लिए बॉन्ड के जरिए पैसा उधार लेती है। आप यह भी कह सकते हैं कि वह कर्ज लेती है। इस कर्ज को उसे तय समय के बाद लौटना पड़ता है। सरकार कर्ज लेने के लिए जो बॉन्ड जारी करती है, उसे सरकारी बॉन्ड कहा जाता है। कंपनी भी अपने कारोबार के विस्तार के लिए बॉन्ड से पैसा जुटाती है, इसे कॉरपोरेट बॉन्ड कहा जाता है.

Know these important things before investing in PPF

अगर इन्वेस्टर के नजरिए से देखा जाए तो बॉन्ड को बहुत सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, सरकारी बॉन्ड को बहुत सुरक्षित माना जाता है। इसकी वजह यह है कि इनमें सरकार की गारंटी होती है। कंपनी का बॉन्ड उसकी फाइनेंशियल स्थिति के हिसाब से सुरक्षित होता है। इसका मतलब यह है कि अगर कंपनी की फाइनेंशियल स्थिति मजबूत है तो उसका बॉन्ड भी सुरक्षित होगा। कंपनी की फाइनेंशियल स्थिति अच्छा नहीं होने पर उसके बॉन्ड को सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नहीं माना जाता है।

Commodity market is affected by these reasons, you should also know the reason

हालांकि, बॉन्ड पर पहले से तय दर से ब्याज मिलता है, इसे कूपन कहा जाता है। क्योंकि बॉन्ड की ब्याज दर पहले से तय होती है, इसलिए इसे फिक्स्ड रेट इंस्ट्रूमेंट भी कहते है। बॉन्ड के लिए टर्म भी तय होता है, जिसे मैच्योरिटी पीरियड कहते हैं। बॉन्ड की मैच्योरिटी अवधि एक से 30 साल तक हो सकती है। बॉन्ड की ब्याज दर निश्चित होती है। इसमें बदलाव नहीं होता है।

बॉन्ड से मिलने वाले रिटर्न को यील्ड भी कहा जाता है। बॉन्ड की यील्ड और इसके प्राइस का आपस में विपरीत संबंध होता है। इसका मतलब यह है कि बॉन्ड की प्राइस कम होने पर उसकी यील्ड बढ़ जाती है। बॉन्ड की प्राइस बढ़ने पर यील्ड घट जाती है। जिसे एक उदाहरण के जरिए आसानी से समझा जा सकता है। जैसे आप मान लीजिए एक बॉन्ड की प्राइस 100 रुपये है। उसका कूपन रेट यानी ब्याज दर 10 प्रतिशत है, क्योंकि बॉन्ड की ट्रेडिंग होती है, जिसमें इसका प्राइस घटता और बढ़ता है। 10 फीसदी की दर से 100 रुपये के बॉन्ड पर 10 रुपये ब्याज एक साल में मिलेगा।

अब मान लीजिए बाजार में बॉन्ड का प्राइस घटकर 90 रुपये रह जाता है। इस पर आपको 10 रुपये ब्याज दर मिलेगा। वहीं, इस तरह आपको 90 रुपये इन्वेस्टमेंट करने पर 10 रुपये का ब्याज मिलेगा। इस तरह बॉन्ड का प्राइस घटने पर उसकी यील्ड भी बढ़ जाती है। ठीक इसके विपरीत बॉन्ड की प्राइस बढ़ने पर यील्ड घट जाती है।

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