स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है. (Image- Pixabay)

Muhurat Trading: दिवाली के 'मुहूर्त' में किन शेयरों पर लगाए दांव, जानें 3 ब्रोकरेज फर्मों के बताए टॉप स्टॉक्स

ICICI सिक्योरिटीज, JM फाइनेंशियल सर्विसेज और कोटक सिक्योरिटीज के बताए इन शेयरों पर दांव लगाकर निवेशक अगले एक साल में 10 से 30 फीसदी तक की कमाई कर सकते हैं

भारतीय शेयर बाजार के नए संवत में प्रवेश के मौके को काफी शुभ माना जाता है। पारंपरिक हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह नए नए साल में प्रवेश की शुरुआत होती है। निवेशकों के बीच ऐसी धारणा है कि नए संवत के पहले घंटे के दौरान किया गया इक्विटी निवेश, पूरे साल के लिए सफलता, समृद्धि और सौभाग्य लाता है। इस दिन के ट्रेडिंग को 'मुहूर्त ट्रेडिंग (Muhurat Trading)' कहा जाता है।

इस साल भी ब्रोकरेज फर्म भारतीय शेयरों को लेकर बुलिश हैं और अगले एक साल में इनसे मजबूत रिटर्न की उम्मीद कर रहे हैं। ब्रोकरेज फर्म ICICI सिक्योरिटीज, JM फाइनेंशियल सर्विसेज और कोटक सिक्योरिटीज के 'संवत 2079 (SAMVAT 2079)' के लिए टॉप पिक्स नीचे दिए गए हैं-

क्लियरिंग और सेटलमेंट की प्रक्रिया

वैसे तो क्लियरिंग और सेटलमेंट बहुत ही सैधान्तिक विषय है लेकिन इसके पीछे की प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है। एक ट्रेडर या निवेशक के तौर पर आपको ये चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती कि आपका सौदा कैसे क्लियर या सेटल हो रहा है, क्योंकि एक अच्छा इंटरमीडियरी यानी मध्यस्थ ये काम कर रहा होता है और आपको ये पता भी नहीं चलता।

लेकिन अगर आप इसको नहीं समझेंगे तो आपकी जानकारी अधूरी रहेगी इसलिए हम विषय को समझने की कोशिश करेंगे कि शेयर खरीदने से लेकर आपके डीमैट अकाउंट (DEMAT account) में आने तक क्या होता है।

10.2 क्या होता है जब आप शेयर खरीदते हैं?

दिवस 1/ पहला दिन- सौदे का दिन (T Day), सोमवार

मान लीजिए आपने 23 जून 2014 (सोमवार) को रिलायंस इंडस्ट्रीज के 100 शेयर 1000 रुपये के भाव पर खरीदे। आपके सौदे की कुल कीमत हुई 1 लाख रुपये (100*1000)। जिस दिन आप ये सौदा करते हैं उसे ट्रेड डे या टी डे (T Day) कहते हैं।

दिन के अंत होने तक आपका ब्रोकर एक लाख रुपये और जो भी फीस होगी, वो आपसे ले लेगा। शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? मान लीजिए आपने ये सौदा ज़ेरोधा पर किया, तो आपको निम्नलिखित फीस या चार्जेज देनी होगी:

क्रमांक कितने तरह के चार्जेज कितना चार्ज रकम
1 ब्रोकरेज 0.03% या 20 रुपये- इनमें से जो भी इंट्राडे ट्रेड के लिए कम हो 0
2 सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन चार्ज टर्नओवर का 0.1% 100/-
3 ट्रांजैक्शन चार्ज टर्नओवर का 0.00325% 3.25/-
4 GST ब्रोकरेज का 18% + ट्रांजैक्शन चार्ज 0.585/-
5 SEBI चार्ज 10 रुपये प्रति एक करोड़ के ट्रांजैक्शन पर 0.1/-
कुल 103.93/-

तो एक लाख रुपये के साथ 103.93 रुपये की फीस आपको देनी पड़ेगी, यानी कुल 100,103.93 रुपये की रकम आपके ट्रेडिंग अकाउंट से निकल जाएगी। याद रखिए कि पैसे निकल गए हैं लेकिन शेयर अभी आपके डीमैट अकाउंट (DEMAT account) में नहीं आए हैं।

उसी दिन ब्रोकर आपके लिए एक कॉन्ट्रैक्ट नोट (Contract Note) तैयार करता है और उसकी कॉपी आपको भेज देता है। ये नोट एक तरह का बिल है, जो आपके सौदौं की पूरी जानकारी देता है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है और भविष्य में काम आता है। कॉन्ट्रैक्ट नोट में आमतौर पर उस दिन हुए सभी सौदे अपने ट्रेड रेफरेंस नंबर (Trade Reference Number) के साथ दिए गए होते हैं। साथ ही आपसे ली गई सभी फीस की जानकारी उसमें होती है।

दिवस 2/दूसरा दिन- ट्रेड डे + 1 (T+ Day), मंगलवार

जिस दिन आपने सौदा किया उसका अगला दिन टी+1 डे (T+1 Day) कहलाता है। T+1 day को आप अपने शेयर बेच सकते हैं, जो आपने पिछले दिन खरीदे हैं। इस तरह के सौदे को BTST-Buy Today, Sell Tomorrow या ATST- Acquire Today, Sell Tomorrow कहते हैं। याद रखिए कि शेयर अभी भी आपके डीमैट अकाउंट में नहीं आए हैं। इसका मतलब आप ऐसे शेयर बेच रहे हैं, जो अभी तक आपके हुए नहीं है। इसमें एक रिस्क है। वैसे हर BTST सौदे में रिस्क नहीं होता, लेकिन अगर आप बी ग्रुप के शेयर या ऐसे शेयर जिनकी खरीद-बिक्री बहुत कम होती है, उनका सौदा कर रहे हैं, तो आप मुसीबत में फंस भी सकते हैं। अभी इस पूरे मसले को यहीं छोड़ देते हैं।

अगर आप बाज़ार में नए हैं, तो आपके लिए बेहतर यही होगा कि आप BTST से दूर रहें क्योंकि आप उसके रिस्क को पूरे तरह से नहीं जानते।

इसके अलावा आपके नजरिए से T+1 day का कोई खास महत्व नहीं है, हालांकि शेयर खरीदने के लिए दिए गए पैसे और सारी फीस सही जगह पहुंच रही होती है।

दिवस 3/तीसरा दिन- ट्रेड शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? डे शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? + 2 (T+2 Day), बुधवार

तीसरे दिन यानी T+2 day को दिन में करीब 11 बजे जिस आदमी ने आपको शेयर बेचे हैं उसके अकाउंट से शेयर निकल कर आपके ब्रोकर के अकाउंट में आ जाते हैं, और ब्रोकर यही शेयर शाम तक आपके अकाउंट में भेज देता है। इसी तरह जो पैसे आपके अकाउंट से निकले थे, वो उस इंसान के अकाउंट में पहुंच जाता है जिसने शेयर आपको बेचे।

अब शेयर आपके डीमैट अकाउंट में दिखेंगे। आपके पास अब रिलायंस के 100 शेयर होंगे।

इस तरह T Day को खरीदे गए शेयर आपके अकाउंट में T+2 Day को आएंगे और T+3 Day को उनका सौदा फिर से कर पाएंगे।

10.3 आप जब शेयर बेचते हैं, तब क्या होता है?

जिस दिन आप शेयर बेचते हैं, वो ट्रेड डे (Trade Day ) कहते हैं, और इसे T Day लिखा जाता है। शेयर बेचते ही उतने शेयर आपके डीमैट अकाउंट में ब्लॉक हो जाते हैं। T+2 Day के पहले ये शेयर एक्सचेंज को दे दिए जाते हैं और T+2 Day को उन शेयरों की बिक्री से मिलने वाले पैसे, फीस और चार्जेज कट कर, आपके अकाउंट में आ जाते हैं।

शेयर बाजार के निवेशकों के लिए बड़ी खबर! अब शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? फिक्स्ड रेट से ज्यादा ब्रोकरेज नहीं लेंगे ब्रोकर, एक्सचेंज ने जारी किया नया नियम

ऑनलाइन शेयरों के सौदे करते समय अब और ज्यादा ट्रांसपैरेंसी आएगी. ब्रोकर्स (Brokers) को सौदा डालने के पहले ही साफ बताना होगा कि सौदे की रकम के अलावा उस पर कितना ब्रोकरेज है. कितना टैक्स और कितना रेगुलेटरी चार्ज है. ये नियम ब्रोकर्स को 31 दिसंबर तक लागू करना होगा.

31 दिसंबर तक ब्रोकर्स को सर्कुलर पर अमल करना होगा. (File Photo)

Transparency in Brokerage Plan: ऑनलाइन शेयरों के सौदे करते समय अब और ज्यादा ट्रांसपैरेंसी आएगी. ब्रोकर्स (Brokers) को सौदा डालने के पहले ही साफ बताना होगा कि सौदे की रकम के अलावा उस पर कितना ब्रोकरेज है. कितना टैक्स और कितना रेगुलेटरी चार्ज है. ये नियम ब्रोकर्स को शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? 31 दिसंबर तक लागू करना होगा.

तय रेट से ज्यादा न लें ब्रोकरेज

निवेशकों ने शिकायत की थी कि कई बार ब्रोकर उनसे पहले से तय रकम से ज्यादा ब्रोकरेज वसूलते हैं. एक्सचेंजेज ने इस मामले पर सर्कुलर जारी कर कहा है कि ब्रोकरेज तय रेट से अधिक रेट न लें. अभी शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? ऑनलाइन सौदा डालते समय शेयर खरीद की ही रकम दिखती है. ब्रेक अप नहीं दिखता. हालांकि बाद में कॉन्ट्रैक्ट नोट में शेयर खरीद की रकम के साथ बाकी सारे चार्जेज का ब्यौरा मिलता है, लेकिन सौदा डालते समय एकमुश्त रकम ही दिखती है.

सौदा डालने से पहले बताएं ब्रोकरेज फीस

इस मामले पर एक्सचेंजेज ने मार्केट रेगुलेटर सेबी (Sebi) से सलाह के बाद ये निर्देश जारी किया है कि ब्रोकरेज और अन्य खर्चों को सौदा डालने से पहले ही प्रमुखता से निवेशकों को बताया जाए.

ब्रोकरेज निवेशकों की जरूरत के मुताबिक ब्रोकरेज के अलग-अलग प्लान लेकर आते हैं. ये प्लान दोनों पक्षों की सहमति से होते हैं. कई बार निवेशकों को शेयर खरीद का औसत भाव काफी महंगा लगने लगता है. क्योंकि सौदा डालते समय जो भाव होता है वो केवल शेयरों का ही दिखता है. बाद में ब्रोकरेज और बाकी खर्चे जुड़ते हैं. फिर निवेशकों की शिकायत होती है कि उनसे ज्यादा रकम वसूली गई.

शेयर में निवेश करने में कितने तरह के खर्च होते हैं?

शेयरों में निवेश करने वाले ज्यादातर छोटे निवेशकों को शेयर खरीदने या बेचने पर आने वाले खर्च के बारे में जानकारी नहीं होती है, जबकि हर निवेशक के लिए यह जानना जरूरी है।

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हाइलाइट्स

  • शेयर खरीदने या बेचने के हर ट्रांजेक्शन (transaction) पर कई तरह के खर्च शामिल होते हैं।
  • इन खर्चों के चलते शेयर ट्रांजेक्शन की लागत (cost) बढ़ जाती है।
  • ब्रोकरेज फर्म भी हर ट्रांजेक्शन के लिए अपनी फीस (Fees) वसूलते हैं

सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स
यह अनिवार्य चार्ज है, जो फीसदी के रूप में लगता है। शेयरों की डिलीवरी (delivery) वाले ट्राजेक्शन पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) की दर 0.1 फीसदी है।

स्टैंप ड्यूटी और जीएसटी
स्टैंप ड्यूटी राज्य सरकार वसूलता है,क्योंकि शेयरों के ट्रांजेक्शन में सिक्योरिटी (security) एक पार्टी से दूसरे पार्टी को ट्रांसफर (transfer) होती है। जीएसटी (सेंट्रल एंड स्टेट जीएसटी) ट्रांजेक्शन के लिए ब्रोकरेज चार्ज के फीसदी के रूप में लगता है। इसकी मौजूदा दर सीजीएसटी (CGST) के लिए 9 फीसदी और एसजीसीटी (SGST) के लिए 9 फीसदी है।

डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट चार्ज
यह चार्ज डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट-एनएसडीएल (NSDL) या सीडीएसल (CDSL) की तरफ से लगाया जाता है। निवेशक के शेयर सुरक्षित रखने के एवज में डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट ये चार्ज वसूलते हैं।

कैपिटल गेंस टैक्स
यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने शेयर कितने समय तक रखा है। एक साल से कम समय तक रखे गए शेयर से हुए मुनाफे पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स (short term capital gains tax) लगता है। अगर आपने शेयर एक साल से ज्यादा समय तक रखा है तो उसके बेचने पर अगर मुनाफा एक साल में एक लाख रुपये से ज्यादा है तो आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स (Long term capital gains tax) देना पड़ता है।

Stock Market Trading: इन तरीकों से बढ़ा सकते हैं स्टॉक मार्केट से कमाई, जानिए कैसे घट जाता है वास्तविक मुनाफा

Stock Market Trading: स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं तो सभी चार्जेज को आसानी से समझें ताकि मुनाफा बढ़ा सकें. मुनाफे के मामले में एनएसई और बीएसई पर ट्रेडिंग में भी फर्क है.

Stock Market Trading: इन तरीकों से बढ़ा सकते हैं स्टॉक मार्केट से कमाई, जानिए कैसे घट जाता है वास्तविक मुनाफा

स्टॉक मार्केट में शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है. (Image- Pixabay)

Stock Market Trading: अगर आप स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं और शेयरों की सक्रिय रूप से खरीद-बिक्री करते हैं तो इससे जुड़े चार्जेज के बारे में पहले से कैलकुलेशन कर लेना चाहिए. यह कैलकुलेशन इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है. इक्विटी में जब आप पैसे लगाते हैं तो यह इंट्रा-डे होता है या डिलीवरी या फ्यूचर या ऑप्शंस, इन सभी तरीकों में पैसे लगाने पर मुनाफा अलग-अलग हासिल होता है. स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है.

इन चार तरीकों से होती है ट्रेडिंग

  • Intra-Day Equity: जब आप शेयर की खरीद-बिक्री यानी लांग या शॉर्ट पोजिशन सिर्फ एक ही दिन के लिए लेते हैं यानी कि आज ही खरीदकर बेच दिया तो यह इंट्रा-डे के तहत माना जाता है. इसमें इक्विटी की होल्डिंग नहीं मिलती है.
  • Delivery Equity: इंट्रा-डे के विपरीत डिलीवरी ट्रेडिंग में आप जो शेयर खरीदते हैं, उसे डीमैट खाते में रखा जाता है और इसकी होल्डिंग कुछ समय के लिए मिलती है. इंट्रा-डे में चाहे घाटा हो या फायदा, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना जरूरी होता है, जबकि डिलीवरी इक्विटी ट्रेडिंग में अपने हिसाब से जब चाहें किसी भी कारोबारी समय पर शेयरों की बिक्री कर सकते हैं.
  • Future: यह खरीदार और विक्रेता के बीच एक वायदा है जिसके तहत एक खास दिन निश्चित प्राइस पर स्टॉक्स का लेन-देन होता है. सौदा हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियों को इस सौदे को पूरा करना अनिवार्य है और कोई भी पक्ष मुकर नहीं सकता है.
  • Options: ऑप्शंस के तहत किसी खास दिन निश्चित प्राइस पर लेन-देन के लिए एक सौदा होता है जिसमें कुछ प्रीमियम चुकाना होता है. ऑप्शंस के तहत कॉल और पुट दो विकल्प मिलते हैं. कॉल ऑप्शंस के तहत खरीदार को खरीदने का अधिकार मिलता है और पुट ऑप्शंस के तहत बेचने का.

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मुनाफे पर ऐसे पड़ता है असर

ऊपर चार तरीकों के बारे में जानकारी दी गई जिससे आप शेयर मार्केट के जरिए पैसे कमाते हैं. अब नीचे देखते हैं कि आपको सभी तरीके से कितना मुनाफा हो रहा है-

  • मान लेते हैं कि आप किसी कंपनी के 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर इंट्रा-डे में ही 1100 रुपये में बेच देते हैं तो कुल टर्नओवर 8.40 लाख रुपये का हुआ. इस पर ब्रोकरेज, एसटीटी, एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस, जीएसटी, सेबी शुल्क और स्टांप ड्यूटी मिलाकर करीब 202.24 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इस ट्रेडिंग में आपको 39795.76 रुपये का मुनाफा होगा.
  • अगर आप 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर डिलीवरी लेते हैं यानी कि उनकी बिक्री किसी और दिन 1100 रुपये के भाव पर करते हैं तो कुल टर्नओवर 8.40 लाख रुपये का हुआ लेकिन टैक्सेज व शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? चार्जेज के रूप में 935.04 रुपये चुकाने होंगे. इसमें 39064.96 रुपये का मुनाफा हुआ जो इंट्रा-डे ट्रेडिंग से कम है. हालांकि इंट्रा-डे में बहुत रिस्क है क्योंकि इसमें मुनाफा हो या नुकसान, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना ही होगा.
  • फ्यूचर के मामले में अगर आपने 400 शेयरों को 1000 रुपये में खरीदकर 1100 रुपये में बेचा है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर वाले इस ट्रांजैक्शन में 119.86 रुपये शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? का टैक्स व चार्जेज चुकाने होंगे. इसमें 39880.14 रुपये का मुनाफा होगा.
  • अगर ऑप्शंस के तहत 1 हजार रुपये के 400 शेयरों के लिए सौदा किया है जिसकी बिक्री 1100 रुपये के भाव पर होती है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर के इस सौदे में 805.38 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इसमें 39194.62 रुपये का मुनाफा होगा.
    (यह कैलकुलेशन ब्रोकरेज फर्म Zerodha के कैलकुलेटर से किया गया है और इसमें एनएसई- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग का कैलकुलेशन है. सभी फर्मों के लिए ब्रोकरेज जैसे चार्जेज भिन्न होते हैं.)

F&O ट्रेडिंग में BSE पर NSE की तुलना में अधिक मुनाफा

Zerodha कैलकुलेटर के मुताबिक अगर आप एनएसई की बजाय बीएसई पर फ्यूचर एंड शेयर बाज़ार में ब्रोकरेज शुल्क की गणना कैसे करें? ऑप्शंस ट्रेडिंग करते हैं तो मुनाफा बढ़ सकता है. बीएसई पर F&O के लिए कोई एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस नहीं लगता है और इससे जीएसटी भी कम हो जाता है. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे इक्विटी और डिलीवरी इक्विटी में बीएसई पर एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस एनएसई के बराबर ही चुकानी होती है.

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