बाजार की चाल से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर का रिकॉर्ड रखता है अहमियत
यूटिलिटी डेस्क. निवेश करने के लिए जितना अहम सही म्यूचुअल फंड का चुनाव है उतनी ही अहमियत म्यूचुअल फंड डिस्ट्रिब्यूटर भी रखता है। ऐसे किस एसेट क्लास में निवेश? में जरूरी है कि इस तरह के वित्तीय सलाहकार की मदद, जो निवेश के फैसलों पर सलाह दे सकता है।
Mutual Fund: मल्टी असेट फंड किस एसेट क्लास में निवेश? में निवेश से मिलते हैं कई तरह के लाभ, जानिए इसकी क्या है विशेषता
हर असेट क्लास का पर्फोमेंस (Asset Class Performance) एक तरह से नहीं होता है। कभी-कभी इक्विटी (Equity) अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कभी डेट (Debt) या सोना (Gold) अच्छा प्रदर्शन करता है। यदि आपके फंड (Fund) में इन सबका समावेश होगा तो आपको हर स्थिति में फायदा ही होगा।
मल्टी असेट क्लास में इक्विटी, बॉण्ड, कैश सभी का होता है समावेश
हाइलाइट्स
- लोग म्यूचुअल फंड में निवेश के वक्त इस बात को समझना भूल जाते हैं कि उनके फंड में किस तरह का असेट है
- विशेषज्ञ कहते हैं कि आपके फंड में कई तरह के असेट क्लास हो
- इंवेस्टमेंट पोर्टफोलियो को कई असेट क्लास में फैलाने का एक महत्वपूर्ण लाभ यह होता है कि इससे रिस्क काफी हद तक कम हो जाता है
मुंबई
बात जब म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में इंवेस्टमेंट (Investment in Mutual Fund) की आती है तो एक अहम सवाल सामने आता है। यह सवाल है पोर्टफोलियो (Portfolio) में किस तरह का असेट क्लास (Asset Class) हो? इंवेस्टमेंट पोर्टफोलियो (Investment Portfolio) को कई असेट क्लास में फैलाने का एक महत्वपूर्ण लाभ यह होता है कि इससे रिस्क (Risk) काफी हद तक कम हो जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी असेट क्लास एक निश्चित समय में समान तरीके से प्रदर्शन नहीं करते हैं। आज हम बात करेंगे मल्टी असेट फंड (Multi Asset Fund) की। इसमें निवेश से आपको कई तरह के लाभ मिलते हैं जो कि अन्य फंड में नहीं मिलते।
कभी इक्विटी, कभी डेट तो कभी गोल्ड का पर्फोमेंस बेहतर
PM इन्वेस्टमेंट के प्रोपराइटर प्रेम सुंदरदास मंगतानी कहते हैं कि हर असेट क्लास का पर्फोमेंस एक तरह से नहीं होता है। कभी-कभी इक्विटी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो कभी डेट या सोना अच्छा प्रदर्शन करता है। इसी तरह, जब एक असेट क्लास नेगेटिव होता है तो दूसरा असेट क्लास पॉजिटिव की ओर होने लगता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी एक विशेष असेट क्लास में तेज नकारात्मक उतार-चढ़ाव का आपके निवेश पोर्टफोलियो पर बड़ा प्रभाव न पड़े। नतीजतन, अपने पोर्टफोलियो को कई असेट क्लास में विविधता (diversification) प्रदान कर, आप अपने पोर्टफोलियो में भारी नुकसान के जोखिम को कम करते हैं। इसे ही म्यूचुअल फंड की भाषा में मल्टी असेट क्लास के नाम से जानते हैं।
इस कैटेगरी में कई ऑफर्स
उनका कहना है कि यूं तो इस कैटेगरी में कई ऑफर्स हैं, पर एक फंड जिसने लगातार सकारात्मक निवेश का अनुभव दिया है, वह है आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल मल्टी एसेट फंड। इसमें महत्वपूर्ण सवाल यह होता है कि निवेश के माहौल में जब बदलाव होता है तो आप दूसरे असेट क्लास में कैसे किस एसेट क्लास में निवेश? निवेश किस एसेट क्लास में निवेश? करते हैं और कैसे एक क्लास से दूसरे में शिफ्ट होते हैं।
मल्टी असेट क्लास में कहां-कहां होता है निवेश
मंगतानी कहते हैं कि पूरी तरह से विविधीकरण (diversification) प्राप्त करने के लिए कई तरह के असेट में निवेश करना होता है। इस प्रयास में ये फंड इक्विटी, कैश, बॉण्ड समेत कई असेट क्लास में निवेश करते हैं। जबकि, अधिकांश फंड मुख्य रूप से इक्विटी और डेट में निवेश करते हैं। हालांकि, कई ऐसे भी फंड हैं जो अतिरिक्त रूप से सोने, आरईआईटीएस, इनविट में निवेश करते हैं। मल्टी असेट म्यूचुअल फंड में निवेश करने के कई फायदे हैं। हालांकि, जब म्यूचुअल फंड निवेश में खरीदते और बेचते हैं, तो वे इन टैक्स का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं होते हैं। इस प्रकार, मल्टी असेट फंड में निवेश अपेक्षाकृत अधिक टैक्स बचाने वाला होता है।
मार्केट कैपिटलाइजेशन में मिलता है डाइवर्सिफिकेशन का लाभ
उनका कहना है कि जब आप मल्टी असेट फंड (Multi Asset Fund) में निवेश करते हैं तो आपको न केवल असेट क्लास डायवर्सिफिकेशन (Asset Class Diversification) मिलता है बल्कि बाजार पूंजीकरण में लार्ज-कैप (Large Cap), मिड-कैप (Mid Cap) और स्मॉल-कैप (Small Cap) निवेश करके डाइवर्सिफिकेशन भी प्राप्त किया जा सकता है। नतीजतन, आप यथायोग्य डाइवर्सिफिकेशन प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं। यह शायद मल्टी असेट फंड का सबसे बड़ा लाभ है। मल्टी असेट फंड में, कुशल फंड मैनेजर (Fund Manager) निवेश पोर्टफोलियो को स्वचालित रूप से पुनर्संतुलित करते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एक्सपोजर असेट क्लास के सही सेट पर बना रहे।
कैपिटल गेन टैक्स का करना होगा भुगतान
उनके मुताबिक, एक निवेशक के रूप में, यदि आप अपने पोर्टफोलियो को पुनर्संतुलित या री-बैलेंसिंग करना चाहते हैं, तो आपको अपने निवेश को एक असेट क्लास में भुनाना होगा और फिर दूसरे असेट क्लास में पुन: आवंटित करना होगा। इसका मतलब यह है कि जब आप रिडीम करते हैं, तो आपको होल्डिंग अवधि के आधार पर शार्ट टर्म या लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (Capital Gain Tax) का भुगतान करना होगा।
किसी व्यक्ति को ETF का चुनाव कैसे करना चाहिए?
अन्य निवेशों की ही तरह, ETF का चुनाव करना आपकी आवश्यक एसेट ऐलोकेशन, वित्तीय लक्ष्य, जोखिम की वरीयता और समय अवधि पर निर्भर करता है। ETF का चुनाव करना इस पर निर्भर करता है कि आप अपने पोर्टफोलियो में ETF को शामिल करके किस प्रकार की एसेट ऐलोकेशन हासिल करना चाहते हैं क्योंकि ETF विभिन्न प्रकार की एसेट क्लासेज़, जैसे इक्विटीज़, बॉन्ड्स, रीयल एस्टेट, कमोडिटीज़, के लिए उपलब्ध हैं। पहले ETF के लिए एसेट क्लास तय करें।
यह तय करें कि आप किस प्रकार की विविधता चाहते हैं और आप किस इंडेक्स को ट्रैक करना चाहते हैं। किसी व्यापक बाज़ार इंडेक्स को ट्रैक करने वाला ETF सबसे कम जोखिम के साथ अधिकतम विविधता हासिल करने के लिए उपयुक्त है। अगर आप जोखिम लेना चाहते हैं और बाज़ार के विशेष क्षेत्रों, सेक्टर्स या देशों तक पहुँच प्राप्त करना चाहते हैं, तो एक विशिष्ट ETF चुनें।
वह ETF आपको क्या पहुँच प्रदान करेगा, इसे समझने के लिए ETF का पोर्टफोलियो देखें। आप जिस एसेट क्लास और बाज़ार के क्षेत्र को फ़ॉलो करना चाहते हैं, उसके भीतर कम ट्रैकिंग एरर वाले ETF चुनें। कम कारोबार वाले ETF से दूर रहें क्योंकि उनके बोली/मांग प्रसार व्यापक होते हैं और यह आपके ट्रेडिंग से जुड़े खर्चों को बढ़ाएगा, जिससे ETF से आपका रिटर्न कम हो जाएगा। बाज़ार के सीमित क्षेत्रों को ट्रैक करने वाले या एसेट्स के कम स्तरों ( AUM) वाले ETF में नकदी कम होती है और वे ऐसी कीमत पर कारोबार करते हैं जो उनकी अंतर्निहित NAV के अनुरूप नहीं होती। ऐसे ETF ढूँढें जो अपनी NAV के करीब कारोबार करते हैं।
किस एसेट क्लास में निवेश?
हम म्यूचुअल फंड में बेहतर रिटर्न पाने के उद्देश्य से निवेश करते हैं। जी हां वह रिटर्न जो महंगाई दर को मात दे सके साथ ही इन फंड्स से मिलने वाला रिटर्न दूसरे पारंपारिक निवेश विकल्पों से मिलने वाले मुनाफे से बेहतर भी होना चाहिए। क्योंकि जहां निवेशक जब ऐसे विकल्प में निवेश करता है जहां रिटर्न की पूरी गारंटी नहीं होती, लेकिन फिर भी वह जोखिम उठाकर निवेश करता है। ऐसे में ऐसे विकल्पों से मिलने वाला रिटर्न दूसरे पारंपारिक निवेश विकल्पों से मिलने वाले रिटर्न से अच्छा होना चाहिए। हालांकि इसमें जरूरी है कि हम उचित लक्ष्य के साथ अपने पोर्टफोलियो में सही फंड्स का चुनाव करें।
म्यूचुअल फंड में निवेश में सामान्य तौर पर होने वाली गलतियां-
1- सही एसेट क्लास का चयन: यदि आप म्यूचुअल फंड में निवेश बिना किसी लक्ष्य के साथ करते हैं तो यह मुमकिन नहीं की आप यहां से एक अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि निवेशक अपने लक्ष्यों को ठीक तरह तय करें उसके मुताबिक ही अपने पोर्टफोलियो में फंड्स का चुनाव करे। इस चुनाव में डेट या इक्विटी दोनों ही फंड्स का समावेश हो सकता है।
हर एसेट क्लास में बाजार के वातावरण के अनुसार बदलाव होते रहते हैं, निवेशक को इसके प्रति सजग रहना चाहिए। इक्विटी को ज्यादा अस्थिरता वाला विकल्प माना जाता है इसलिए इसमें जोखिम का स्तर भी ज्यादा होता है। वहीं डेट और गोल्ड फंड्स को इक्विटी की तुलना में कुछ सुरक्षित माना जाता है। हालांकि लंबी अवधि के लक्ष्यों के लिए इक्विटी का चयन ही बेहतर होता है। वहीं छोटी अवधि के लक्ष्यों की पूर्ति डेट या गोल्ड फंड्स से बेहतर होती है। ऐसे में निवेशक को अपने लक्ष्य के मुताबिक ही फंड्स का चुनाव करना चाहिए।
2- बिना किसी उद्देश्य के फंड में निवेश करना: हर म्यूचुअल फंड का एक निवेश लक्ष्य होता है जिसका पालन फंड मैनेजर्स को करना होता है। वहीं इसी से निवेशक के निजी लक्ष्यों को भी आसानी से हासिल किया जा सकता है। निवेश का लक्ष्य ही आपको फंड्स में निवेश की सही भूमिका तैयार करता है। क्योंकि लक्ष्य के मुताबिक ही निवेशक को अपने पोर्टफोलियो में फंड का चयन करता होता है। उदाहरण के लिए इक्विटी फंड्स का चयन लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किया जाता है। फंड में निवेश करते समय निवेशक को निवेश का लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए। वहीं कई निवेशक बाजार की गिरावट में ज्यादा रिटर्न की लालच में बैलेंस्ड फंड में निवेश कर बैठते हैं। लेकिन बाद में उन्हें पछताना पड़ता है जब बाजार ऊपर की ओर जाते हैं।
3- जब निवेश में जोखिम को नजरअंदाज किया जाता है: हर निवेशक अपने निवेश से ज्यादा से ज्यादा रिटर्न कमाना चाहता है, साथ इसमें जोखिम का स्तर भी कम होने की उम्मीद करता है। वहीं कई निवेशक ऐसे होते हैं कि फंड्स का चुनाव करते वक्त केवल रिटर्न पर ध्यान देते हैं, जबकि इसमें मौजूद जोखिम को नजरअंदाज कर जाते हैं। वहीं जब जोखिम सामने आता है तो निवेशक को पछताना पड़ा है और वह उस एसेट क्लास में दोबारा निवेश किस एसेट क्लास में निवेश? नहीं करने का मन बना लेता है। बाजार पर आधारित किसी भी निवेश विकल्प को जोखिम रहित बनाने की गारंटी नहीं दी जा सकती है। क्योंकि जोखिम बाजार की अस्थिरता का एक प्रमाण है।
ऐसी परिस्थितियों में बेहतर है कि निवेशक खुद निवेशक का कोई चुनाव करने से पहले किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार की मदद लें। वहीं उससे अपने पोर्टफोलियों में लक्ष्यों के मुताबिक फंड का चयन करवाएं। क्योंकि छोटी अवधि के किस एसेट क्लास में निवेश? लक्ष्यों के लिए आप इक्विटी फंड या फिर लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए डेट फंड का चयन कर लेते हैं तो आपका यह निर्णय पूरी तरह से गलत है।
निवेशक अपना पोर्टफोलियो बनाते समय उपरोक्त जानकारियों का सही तरीके से पालन करना चाहिए। जिसके अपने भविष्य अपने फैसलों पर पछताना नहीं पड़ेगा। निवेशक को यह देखना बंद करना चाहिए की लोग किस फंड में पैसा लगा रहे हैं और ऐसे फंड्स के पीछे नहीं भागना चाहिए। क्योंकि हर निवेशक अलग-अलग लक्ष्य के साथ फंड में निवेश करता है।
नोट: इस लेख को एफपीजीआई के सदस्य और वित्तीय सलाहकार मनीकरन सिंघल ने लिखा है।
निवेश पर अच्छे रिटर्न के लिए क्या है बेहतर विकल्प, आइये जानें
नई दिल्ली, डेस्क रिपोर्ट। अक्सर लोग निवेश करने से पहले इस उलझन में फंसे रहते हैं कि सोना-चांदी, रियल एस्टेट, फिक्स डिपॉजिट या शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में से किस एसेट क्लास में निवेश किया जाए, ताकि बेहतर रिटर्न मिले। निवेश सलाहकार (investment advisor) का कहना है कि इनमें कोई भी निवेश विकल्प सबसे बढ़िया या खराब नहीं है। अच्छा निवेश विकल्प व्यक्ति की जरूरतों, वित्तीय लक्ष्य और जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
कैसे तय करें विकल्प
सोना और रियल एस्टेट, दोनों लंबी अवधि के लिए अच्छे निवेश विकल्प हैं। गोल्ड भारत में भरोसेमंद निवेश के तौर पर देखा जाता है। आप फिजिकल गोल्ड के साथ डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं। सोना महंगाई के खिलाफ सबसे सुरक्षित निवेश है। वहीं, रियल एस्टेट हमेशा ही एक बड़े निवेश के तौर पर देखा जाता है। रियल एस्टेट में जहां जोखिम कम रहता है, वहीं, गोल्ड में चोरी होने का डर बना रहता है। रियल एस्टेट में अतिरिक्त टैक्स बेनिफिट के साथ नियमित आय पैदा करने की क्षमता है। चाहे आवासीय हो या वाणिज्यिक, रियल एस्टेट में मासिक किराए के रूप में निवेशकों के लिए आय उत्पन्न करने की क्षमता होती है, जो कि सोने के निवेश में संभव नहीं है। जबकि इक्विटी और म्यूचुअल फंड में लंबी अवधि मे सबसे अधिक रिटर्न मिलता है, पर इनमें जोखिम भी सबसे अधिक है, तो आइये जानते है…
रियल एस्टेट
प्रॉपर्टी में निवेश मोटी पूंजी निवेश करने वालों के लिए अतिरिक्त आय का बेहतर विकल्प है। इसमें प्रॉपर्टी की कीमत और वैल्यू लगातार बढ़ती जाती है, लेकिन इसके रजिस्ट्रेशन में स्टांप ड्यूटी सहित कई तरह के शुल्क चुकाने पड़ते हैं। इसके मेंटेनेंस की लागत भी अधिक है व तरलता की कमी है।
जो निवेशक मासिक नियमित आय चाहते हैं और जो लंबी अवधि के लिए मोटा निवेश कर सकते हैं, यह उनके लिए बेहतर है।
इक्विटी में बेहतर रिटर्न
कंपनियों के स्टॉक्स यानी किस एसेट क्लास में निवेश? इक्विटी में सबसे अधिक जोखिम है, लेकिन इसमें रिटर्न भी अधिक है। निवेशक इसमें 500-1000 रुपए की छोटी रकम भी निवेश कर सकते हैं। अगर लंबी अवधि के लिए निवेश किया जाए तो सालाना 14 से 15 फीसदी तक रिटर्न मिल सकता है। हालांकि बाजार की उठापटक के कारण शॉर्ट टर्म में पैसे डूबने का जोखिम भी अधिक होता है।
जो निवेशक जोखिम उठाकर अधिक रिटर्न पाना चाहते हैं, यह उनके लिए सबसे बेहतर विकल्प है। लेकिन निवेशकों को कम से कम 5 साल के लिए निवेश करना चाहिए।
सोना
गोल्ड में निवेश हमेशा बेहतर विकल्प रहा है। इसमे लंबी अवधि में तगड़ा रिटर्न मिला है, लेकिन वैश्विक कारणों और रुपए में उतार-चढ़ाव से सोने की कीमतों में भी उतार-चढ़ाव किस एसेट क्लास में निवेश? देखने को मिलता है। साथ ही यह शॉर्ट टर्म के लिए अच्छा निवेश विकल्प नहीं है। साथ ही टैक्स बेनिफिट भी नहीं मिलता है।
जो कमोडिटीज में निवेश कर लंबी अवधि में मुनाफा कमाना चाहते हैं और महंगाई दर से अधिक स्थिर रिटर्न चाहते हैं। साथ ही जोखिम भी नहीं लेना चाहते, उनके लिए सोना बेहतर विकल्प है। पिछले 10 साल में गोल्ड ने औसतन 10 फीसदी रिटर्न दिया है।
म्यूचुअल फंड
म्यूचुअल फंड्स इक्विटी, सरकारी प्रतिभूतियों, सोना, कॉर्पोरेट बॉन्ड जैसे कई एसेट क्लास में निवेश करते हैं, जिससे निवेश का जोखिम कम हो जाता है और बेहतर रिटर्न मिलता है। इक्विटी में निवेश करने वाले म्यूचुअल फंड किसी एक कंपनी के शेयर में निवेश नहीं करते, बल्कि कई कंपनियों के शेयर में निवेश करते हैं। म्यूचुअल फंड्स में सालाना औसतन 10 से 12 फीसदी रिटर्न मिलता है।
अगर जो निवेशक सीधे स्टॉक में निवेश करने से घबराते हैं, लेकिन मध्यम से ऊंचा स्तर का जोखिम उठाने को तैयार हैं, उनके लिए म्यूचुअल फंड्स बेहकर रिटर्न पाने का बेहतर विकल्प है।
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