बाजार क्या है बाजार कितने प्रकार के होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाज़ार में कई बेचने वाले एक जगह पर होतें हैं ताकि जो उन चीज़ों को खरीदना चाहें वे उन्हें आसानी से ढूँढ सकें। बाजार जहां पर वस्तुओं और सेवाओं का क्रय व विक्रय बाजार के प्रकार होता है उसे बाजार कहते हैं .
अर्थशास्त्र में बाजार का क्या अर्थ है?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर – बाजार शब्द का अर्थ अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का तात्पर्य उस सम्पूर्ण क्षेत्र से होता है, जहाँ कि वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता आपस में और परस्पर प्रतिस्पर्धा के द्वारा उस वस्तु का एक ही मूल्य बने रहने में योग देते हैं।
बाजार किसे कहते हैं बाजार के आवश्यक तत्व कौन से हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार की विशेषताएं या आवश्यक तत्व (bazar ki visheshta) इस प्रकार इसका क्षेत्र स्थान विशेष तक सीमित न होकर विस्तृत होता है। इसका क्षेत्र अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकता है। मांग और पूर्ति के बिना किसी वस्तु के बाजार की कल्पना ही नही जा सकती है। वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता दोनों की उपस्थिति ही बाजार बनाती है।
बाजार क्या है बाजार को कौन कौन से घटक प्रभावित करते हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार से आशय साधारणतया उस जगह से लगाया जाता है। जहां क्रेता और विक्रेता होते हैं अर्थात खरीदने वाला व्यक्ति उस स्थान पर जाता है और अपनी और अपनी आवश्यकता के अनुसार उस वस्तु या सेवा को खरीदता हैं। ठीक वैसे ही वहां पर विक्रेता भी अपने वस्तुओं एवं सेवाओं के बेचने के लिए जाता है। आज का बाजार बहुत ही विस्तृत हो गया है।
बाजार को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व – (1) व्यापक मांग-वस्तु की मांग अधिक होने पर बाजार व्यापक होता है। (2) वहनीयता- वस्तुओं का भार कम एवं मूल्य अधिक होने पर बाजार विस्तृत होता है। (3) टिकाऊपन – टिकाऊ वस्तुओं का बाजार विस्तृत होता है। (4) पूर्ति की मात्रा- वस्तु की पूर्ति अधिक होने पर बाजार विस्तृत होता है।
बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक कौन कौन है?
इसे सुनेंरोकें(i) सक्ष्म वातावरण- सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कम्पनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। ये शक्तियाँ बाह्य होती हैं परंतु कम्पनी की बाजार व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन शक्तियों में माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, प्रतियोगी, ग्राहक तथा जनता आती है।
आप बाजार को क्या समझते हैं बाजार के दायरे को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?
इसे सुनेंरोकेंबाजार में मूल उत्पादक तथा विक्रेता एक व्यक्ति अथवा भिन्न-भिन्न व्यक्ति हो सकते हैं। यदि वे भिन्न है तो इसका सीधा अर्थ है कि विक्रेताओं ने इन वस्तुओं को बाजार में क्रेताओं को बेचने के लिये मूल उत्पादकों से प्राप्त किया है। अतः कृषक, विनिर्माताएं तथा विक्रेता बाजार में वस्तुओं की आपूर्ति करते हैं।
बाजार को परिभाषित कीजिए। उन चार आधारों को समझाइए जिन पर विभिन्न बाजारों को परिभाषित किया जाता है?
Solution : बाजार-"अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का अर्थ किसी स्थान विशेष से है जहाँ पर वस्तुओं का क्रय व विक्रय होता है, बल्कि उस समस्त क्षेत्र से है जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच इस प्रकार स्वतंत्र पारस्परिक संपर्क होता 1 है कि एक ही वस्तु के मूल्यों में सुगमता तथा शीघ्रता से समान होने की प्रवृति पाई जाती है।" सामान्य अर्थ में बाजार शब्द से आशय उस स्थान से होता है जहाँ क्रेता तथा विक्रेता वस्तु का सौदा करने के लिए किसी जगह एकत्र होते हैं।
बाजार से तात्पर्य उस संपूर्ण क्षेत्र व व्यवस्था से है जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के बीच संबंध स्थापित होता है। बाजार का संबंध किसी वस्तु विशेष स्थान विशेष से होता है। यही कारण है कि विभिन्न वस्तुओं के बाजार इन दिनों अलग-अलग होते जा रहे हैं।
बाजार वर्गीकरण के आधार-बाजार को वर्गीकृत करने के चार आधार हैं-
(i) बाजार का स्थान, (ii) वस्तु, (iii) प्रतियोगिता एवं (iv) समयावधि। इन आधारों पर बाजार के निम्न प्रकार हैं
(i)अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार : यह बाजार की यह स्थिति है, जिसमें विक्रेताओं एवं क्रेताओं की वस्तु की कीमत के बारे में बाजार की अपूर्ण जानकारी होती है तथा उत्पादक वस्तु विभेद की नीति अपनाते हैं।
(ii) पूर्ण प्रतियोगिाता बाजार (Perfect Competition), उस बाजार को कहते हैं जिसमें असंख्य क्रेता तथा समरूप वस्तु के असंख्या विक्रेता होते हैं और वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है। बाजार में केवल एक ही कीमत प्रचलित होती है और सभी फर्मों को अपनी वस्तु इसी प्रचलित कीमत पर बेचनी होती है।
(iii) एकाधिकार (Monopoly): उस बाजार को कहते हैं जिसमें वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है और उसका वस्तु की कीमत पर पूर्ण नियंत्रण होता है|
(iv) अल्कालीन बाजार : पैसे बाजार जिसमें बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा बहुत ही कम होती है या वस्तु शीघ्र नष्ट होने वाली होती है। जैसे नीलामी के लिए स्थापित बाजार, कच्चे सौदों जैसे-बर्फ या मौसमी फलों सब्जियों का बाजार।
किस प्रकार की बाजार व्यवस्था में, बाजार अथवा उद्योग पर कुछ ही विक्रेताओं का वर्चस्व होता है?
Solution : अल्पाधिकार बाजार, बाजार का वह रूप है जिसमें बी फर्मों की संख्या कम होती है, इन फर्मों का बाजार पर प्रभुत्व होता है, ये फम उद्योग में प्रवेश पर महत्त्वपूर्ण अवरोधों के साथ या तो एक समान या विशिष्ट उत्पादों की बिक्री करती बाजार के प्रकार हैं। यह चार मूलभूत बाजार संरचनाओं में से एक है। अल्पाधिकार कई प्रकार की मिलिभगत का परिणाम हो सकता है जिससे प्रतियोगिता में कमी आती है और उपभोक्ताओं के लिए कीमत स्तर में वृद्धि होती है।
बाजार की परिभाषा दीजिए। विभिन्न प्रकार के बाजारों के लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
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1. संगठित पूंजी बाजार(FORMAL OR ORGANISED CAPITAL MARKET)- संगठित पूंजी बाजार के अंतर्गत वित्त संबंधी कार्य पंजीबद्ध विभिन्न वित्तीय संस्थाएं करती हैं, जो विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों से निजी वस्तुओं को एकत्र कर दीर्घकालीन पूंजी की व्यवस्था करती है जैसे-
भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI), जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक(SIDBI), वाणिज्य बैंक, उद्योग वित्त निगम (IFC), भारतीय उद्योग साख एवं विनियोग निगम (ICICI, भारतीय उद्योग विकास बैंक (IDBI), राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (NIDC), भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (IRBI), सामान्य बीमा निगम (GIC), राज्य वित्तीय संस्थाएं (SFCs), आवासीय वित बैंक (RFB) आदि प्रमुख है। इन सभी का नियंत्रण भारतीय विनियम बोर्ड (SEBI) द्वारा किया जाता है।
2. असंगठित या गैर संगठित बाजार (INTERNAL OR UNORGANISED MARKET)- इसे अनौपचारिक बाजार भी कहा जाता है, इसमें देसी बैंकर्स, साहूकार, महाजन आदि प्रमुख होते हैं। काले धन का बहुत बड़ा भाग गए असंगठित क्षेत्र में वित्त व्यवस्था करता है। यह उद्योग व्यापार तथा कृषि क्षेत्रों में पूंजी का विनियोजन करते हैं। इनकी ब्याज दरें और वित्तीय नीति कभी भी एक समान नहीं होती है। जिसके परिणाम स्वरुप यह साहूकार कभी-कभी ऊंची दर पर ऋण देकर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इन पर नियंत्रण करने के लिए प्रयास करता है।
प्राथमिक पूंजी बाजार क्या है
prathmik punji bajar kya hai;प्राथमिक पूंजी बाजार का आशय उस बाजार से है, जिसमें नए ब्रांड का निर्माण किया जाता है, इसे नवीन निर्गम बाजार भी कहा जाता है। जिस बाजार में कंपनियों द्वारा प्रथम बार कोई नई चीज बेची जाती है, उसे प्राथमिक बाजार कहा जाता है।
प्राथमिक पूंजी बाजार की पांच विशेषताएं | prathmik punji bajar ki panch vhishestayen
1. प्राथमिक बाजार में नवीन प्रतिभूतियों के व्यवहार का निर्गम होता है।
2. कीमत का निर्धारण- प्रतिभूतियों की कीमत कंपनी के प्रबंधकों द्वारा निर्धारित की जाती है।
3. प्रत्यक्ष निर्माण- प्राथमिक बाजार में कंपनी सीधे बिचौलियों के माध्यम से नियोजकों को प्रतिभूतियों का निर्गम कराती है।
4. स्थान- प्राथमिक बाजार के लिए कोई विशेष स्थान नहीं होता है।
5. पूंजी निर्माण- प्राथमिक बाजार प्रत्यक्ष रूप से पूंजी निर्माण में वृद्धि करता है, और उससे नए यंत्र, मशीनरी भवन आदि के लिए उनका उपयोग करते हैं।
पूंजी बाजार के महत्व | punji bajar ke mahatv
1. पूंजी बाजार पूंजी निवेशकों और बचत करने वालों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
2. अपनी समस्त आय खर्च ना करने वाले बचत कर्ताओं के लिए सरल साधन पूंजी बाजार होता है।
3. आम जनता की छोटी-छोटी बचतों के लिए पूंजी बाजार एक अच्छा व लाभकारी क्षेत्र प्रदान करता है।
4. इस प्रकार कम दर पर अधिक समय के लिए पूंजी प्राप्त करने का एक अच्छा मार्ग पूंजी बाजार होता है।
5. पूंजी बाजार में मांग व पूर्ति के मध्य संतुलन बनाए रखने का कार्य पूंजी बाजार अपने उपकरणों के माध्यम से करता है।
पूंजी बाजार की विशेषता | punji bajar ki vhishestayen
1. पूंजी बाजार निगमों और सरकारी ब्रांड प्रतिभूतियों आदि में लेन-देन करता है।
2. पूंजी बाजार में कार्य करने वाले व्यक्ति, व्यापारिक बैंक, वाणिज्य बैंक, बीमा कंपनियां और औद्योगिक बैंक, औद्योगिक वित्त निगम, यूनिट ट्रस्ट, निवेश ट्रस्ट, भवन समिति आदि प्रमुख होते बाजार के प्रकार हैं।
3. पूंजी बाजार में नई एवं पुराने सभी प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय होता है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
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