इस निवेश के सहारे ही सेंसेक्स 2007 में 20000 का आंकड़ा लांघने में कामयाब रहा । शेयर बाजार जहां एक ओर उफान के नित नये रिकॉर्ड बनाकर नई-नई ऊंचाइयों की ओर बढता नजर आता है, वहीं दूसरी ओर गिरावट के भी ऐतिहासिक स्तर बनाने में इसका कोई साथी नहीं है । बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस उतार-चढाव की अहम वजह बाजार में लगा विदेशी पैसा है ।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन की चुनौती पर निबंध | Essay on Challenge for Management of Foreign Currency in Hindi
सचमुच अब वह समय बीत गया है, जब भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए पसीना बहाना पड़ता था । अब तो विदेशी मुद्रा भारत की ओर दौड़ लगाकर आते हुए दिखाई दे रही है । इतना ही नहीं, देश में विदेशी पूंजी के बढ़ते ढेर से तरह-तरह के खतरे उत्पन्न हो रहे हैं ।
देश में निवेश का उपयुक्त माहौल, उदार नीतियां और सरल प्रक्रियाओं के साथ-साथ रुपये की मजबूती पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक के भारी दखल की वजह से नवम्बर 2011 में देश में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 320 अरब डॉलर के रिकार्ड स्तर पर पहुंच चुकी है ।
अक्टूबर 2006 से विदेशी मुद्रा भडार की स्थिति उत्साहवर्द्धक है वर्ष 1991 में हमारे सामने विदेशी मुद्रा का संकट पैदा हो गया था, जब हमारा मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद सिर्फ दो सप्ताह के आयात के लायक रह गया था और पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए हमें सोना ब्रिटेन के पास बंधक रखना पड़ा था । अब विदेशी मुद्रा के भरपूर प्रवाह का प्रबंधन चुनौती बन गया है ।
2 साल के निचले स्तर पर विदेशी मुद्रा भंडार, डॉलर के आगे रेंग रहा रुपया, आप पर क्या असर?
अमेरिका के सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व द्वारा ब्याज दर बढ़ाए जाने के बाद भारतीय करेंसी रुपया एक बार फिर रेंगने लगा है। इस बीच, विदेशी मुद्रा भंडार ने भी चिंता बढ़ा दी है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार सातवें सप्ताह गिरा है और अब यह 2 साल के निचले विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद स्तर पर आ चुका है।
रुपया की स्थिति: डॉलर के मुकाबले रुपया ने पहली बार 81 के स्तर को पार किया है। शुक्रवार को कारोबार के दौरान गिरावट ऐसी रही कि रुपया 81.23 के स्तर तक जा पहुंचा था। हालांकि, कारोबार के अंत में मामूली रिकवरी हुई। इसके बावजूद रुपया 19 पैसे गिरकर 80.98 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर बंद हुआ। यह पहली बार है जब भारतीय करेंसी की क्लोजिंग इतने निचले स्तर पर हुई है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में उफान
भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को लेकर सरकार भी पॉजिटिव नजर आ रही है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट बतलाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढऩे लगा है। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा फिर से बढऩे लगा है और अगस्त महीने की 12 तारीख तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश किया जा चुका है। इस वर्ष की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का विदेशी निवेश हुआ, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 11.6 अरब डालर था…
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खुशनुमा खबर है। देश के सकल घरेलू उत्पाद में 13.5 फीसदी की वृद्धि देखी जा रही है। सकल घरेलू उत्पाद देश के भीतर एक निश्चित समय के भीतर उत्पादित हुए सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य होता है। यह वास्तव में किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आइना होता है। इसमें देश की सीमा के अंदर रहकर जो विदेशी कंपनियां प्रोडक्शन करती हैं, उन्हें भी शामिल किया जाता है। इस समय भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और मार्च 2023 में समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष में इसके सात प्रतिशत से अधिक बढऩे की उम्मीद है जो इसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं में प्रमुखता से खड़ा करती है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2050 तक संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। हालांकि इसकी प्रति व्यक्ति आय कम रह सकती है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 2000 के बाद से चौगुनी से अधिक हो गई है। तब यह आंकड़ा 500 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष का था। 1947 के बाद से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 30 गुना की, तो प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में 8 गुना वृद्धि हुई है। लेकिन विकास के ये आंकड़े इतने प्रभावशाली नहीं हैं कि हमें विकासशील से विकसित देश की श्रेणी में तेजी से आगे ले जा सकें। 1950-51 में भारत की जीडीपी 2.79 लाख करोड़ रुपए से बढक़र 2021-22 में अनुमानित रूप से 147.36 लाख करोड़ रुपए हो गई है। भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में 3.17 ट्रिलियन पर है, जिसके 2022 में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। भारत की प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय (सकल घरेलू उत्पाद से घटाया गया मूल्यह्रास, विदेशी स्रोतों से आय) 1950-51 में 12493 रुपए थी। 2021-22 में यह बढक़र 91481 रुपए हो गई है। 1947-48 में जहां सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियां 171.15 करोड़ रुपए थीं जो अब 2021-22 में बढक़र 2078936 करोड़ रुपए हो गई हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1950-51 में 911 करोड़ रुपए से बढक़र 2022 में 4542615 करोड़ रुपए हो गया है। इन आंकड़ों के आधार अब भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। भारत का खाद्यान्न उत्पादन जो 1950-51 में 50.8 मिलियन टन था, वह बढक़र अब 316.06 मिलियन टन हो गया है। देश में साक्षरता दर भी बढ़ी है। 1951 में यह 18.3 प्रतिशत थी जो अब बढक़र 78 प्रतिशत हो गई है। महिलाओं में भी साक्षरता दर 8.9 प्रतिशत से बढक़र 70 प्रतिशत से अधिक हो गई है। देश की प्रगति के ये आंकड़े भले ही अपने आप में कितने प्रभावशाली दिखें, फिर भी एक विकसित राष्ट्र का लेबल मिलने की आकांक्षा को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। आज विकसित देशों में, आबादी के एक बड़े हिस्से के पास गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और परिवहन जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पहुंच है। उन देशों में समृद्धि स्पष्ट रूप से नजर आती है जिसके प्रतीक बड़ी कारों और उच्च आवासीय और वाणिज्यिक टावरों के अलावा मजबूत पर्यावरण संरक्षण और नागरिक मानदंडों का पालन भी है। इसके ठीक विपरीत हमारे गांवों में लाखों लोग अब भी भूखे सोते हैं और स्कूलों, अस्पतालों, सडक़ों जैसी तमाम बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। शहरों की स्थिति भी बेहतर नहीं है जहां कचरे के पहाड़ खड़े रहते हैं तो अपर्याप्त पाइप्ड सीवरेज नेटवर्क के अलावा पानी और बिजली की कमी का संकट भी आए दिन रहता है। हमें इस पर ध्यान देना होगा। कुल मिला कर भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय रिकवरी के मोड पर है। आर्थिक सेहत से जुड़े ताजा आंकड़े इकोनॉमी में वापसी की गवाही भी दे रहे हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 13.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर एक और अच्छी खबर है कि वैश्विक वित्तीय सेवा फर्म मॉर्गन स्टेनली ने अनुमान लगाया कि भारतीय अर्थव्यवस्था साल 2023 में पूरी दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ेगी, यानि भारत का विकास अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक तेज गति से होगा।
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एक बाजार जो दैनिक मात्रा में लगभग $ 5.2 ट्रिलियन को आकर्षित करता है, जिसे दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रूप विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद में मान्यता प्राप्त है, जो विश्व स्तर पर 24 घंटे उपलब्ध है - बिल्कुल यही मुद्रा बाज़ार होता है। छोटी मार्जिन आवश्यकताओं और कम प्रवेश बाधाओं का लाभ इसे खुदरा निवेशक के पोर्टफोलियो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाता है।
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व्यापार डेरिवेटिव के लिए न्यूनतम निवेश कितना है?
यह कदम तब आया जब बाज़ार नियामक सेबी ने छोटे निवेशकों को उच्च जोखिम वाले उत्पादों से बचाने के प्रयास में वर्तमान में किसी भी इक्विटी डेरिवेटिव उत्पाद के लिए न्यूनतम निवेश आकार में 2 लाख रुपए से 5 लाख रुपए तक की बढ़ोतरी की।
सरकार की PLI योजना कर रही है कमाल
विदेशी मुद्रा के संचय का यह लाभ है कि जब दूसरे देश मुद्रा की तरलता कम करेंगे, भारत तब भी अपने संचयित मुद्रा कोष का प्रयोग कर सकेगा। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की वृद्धि में निवेश और निजी विदेशी मुद्रा निवेश उत्पाद उद्यमों की सबसे बड़ी भूमिका रही है। ऐसे में सरकार की योजना निजी उद्यमियों को बढ़ावा देने की होनी चाहिए और सरकार यह कर भी रही है। PLI योजना भारत के औद्योगिकीकरण को सर्वांगीण विकास का अवसर दे रही है। PLI के कारण भारत कई नए सेक्टर, जैसे- सेमी कंडक्टर, ड्रोन, फूड प्रोसेसिंग आदि में मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की ओर अग्रसर है। PLI के जरिये बड़े औद्योगिक इकाइयों का विस्तार होगा। वहीं, स्टार्टअप की बात करें तो इस समय भारत में स्टार्टअप के लिए अनुकूल वातावरण है और यह बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन का कारण बन रहा है। IT सेक्टर में लगातार नौकरियों का विस्तार इसी का परिणाम है।
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