कमोडिटी बाजार से कमाई करने से पहले इन 7 बातों को जानना है जरूरी
कमोडिटी मार्केट में मार्जिन शेयर बाजार के मुकाबले काफी कम है
सवाल नंबर 2. क्या वे वही ब्रोकर्स हैं जो शेयर बाजार में भी ब्रोकिंग की सेवा देते हैं?
जवाब: आमतौर पर नहीं, लेकिन इक्विटी में ब्रोकिंग की पेशकश करने वाले कई ब्रोकर्स ने कमोडिटी ब्रोकिंग सेवाओं के लिए सहायक कंपनी बनाई हैं. उदाहरण के तौर पर एंजेल कमोडिटीज, कार्वी कमोडिटीज जैसी कंपनियां कमोडिटी एफएंडओ (फ्यूचर एवं ऑप्शन) ब्रोकिंग की पेशकश अपनी सहायक कंपनियों के जरिए करती हैं. इसका मतलब है कि यदि आप ट्रेड करना चाहते हैं तो आपको अपने इक्विटी खाते से अलग डीमैट / ट्रेडिंग अकाउंट खोलना होगा.
सवाल नंबर 3. क्या कमोडिटीज की एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है डिलीवरी अनिवार्य है?
जवाब: ज्यादातर कृषि वायदा, जैसे खाद्य तेल, मसाले, आदि की डिलीवरी अनिवार्य है. लेकिन आप डिलीवरी से पहले पोजीशन खत्म कर सकते हैं. गैर-कृषि नॉन एग्री कमोडिटीज में, अधिकांश वस्तुओं जैसे सोने और चांदी में नॉन डिलीवरी आधारित हैं.
सवाल नंबर 4. क्या कमोडिटी में यह ट्रेडिंग शेयरों में एफएंडओ ट्रेडिंग जैसी है?
जवाब: हां. उसमें, मार्क-टू-मार्केट दैनिक आधार पर तय किया जाता है, लेकिन मार्जिन शेयर बाजार के मुकाबले काफी कम है.
सवाल नंबर 5. ट्रेडिंग करने के लिए मार्जिन क्या हैं?
जवाब: आम तौर पर 5-10 फीसदी, लेकिन कृषि वस्तुओं में, जब उठापटक आती है, एक्सचेंज अतिरिक्त मार्जिन लगा देते हैं. एक्सचेंज लॉन्ग या शॉर्ट साइड में स्पेशल मार्जिन लगा देते हैं, जो मौजूदा मार्जिन का कभी-कभी 30-50 फीसदी अधिक हो सकता है.
सवाल नंबर 6.कमोडिटी एफएंडओ बाजार को कौन नियंत्रित करता है?
जवाब:सेबी मेटल्स और एनर्जी मार्केट के शीर्ष कमोडिटी एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज यानी एमसीएक्स और कृषि कमोडिटी एक्सचेंज एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है एनसीडीईएक्स जैसे एक्सचेंजों को रेगुलेट करता है.
सवाल नंबर 7. किन कमोडिटीज में ज्यादा ट्रेड होता है ?
जवाब: नॉन-एग्री कमोडिटीज में सबसे ज्यादा ट्रेडिंग सोने, चांदी, कच्चा तेल, कॉपर आदि जैसी कमोडिटीज में होती है, एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है जबकि नॉन एग्री कमोडिटीज की बात करें तो सोयाबीन, सरसों, जीरा, ग्वारसीड जैसे काउंटर्स में ठीक-ठाक ट्रेडिंग होती है.
'Option trading'
OTC ट्रांजैक्शंस आमतौर पर बड़ी होती हैं और इनमें इंस्टीट्यूशनल ट्रेडर्स की अधिक हिस्सेदारी रहती है। Goldman Sachs के OTC क्रिप्टो ऑप्शंस में उतरने से बड़ी ट्रेडिंग फर्मों का इसमें कारोबार बढ़ाने का संकेत भी मिल रहा है
OTC ट्रांजैक्शंस आमतौर पर बड़ी होती हैं और इनमें इंस्टीट्यूशनल ट्रेडर्स की अधिक हिस्सेदारी रहती है. Goldman Sachs के OTC क्रिप्टो ऑप्शंस में उतरने से बड़ी ट्रेडिंग फर्मों का इसमें कारोबार बढ़ाने का संकेत भी मिल रहा है
Goldman Sachs ने पिछले वर्ष Galaxy Digital के साथ बिटकॉइन फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की ट्रेडिंग शुरू की थी। हालांकि, इसकी नई OTC क्रिप्टो ऑप्शंस ट्रेडिंग में रिस्क अधिक है
Goldman Sachs एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है ने पिछले वर्ष Galaxy Digital के साथ बिटकॉइन फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की ट्रेडिंग शुरू की थी. हालांकि, इसकी नई OTC क्रिप्टो ऑप्शंस ट्रेडिंग में रिस्क अधिक है
जेटली ने यहां एक समारोह में स्वर्ण ऑप्शन ट्रेडिंग की शुरुआत करते हुए कहा, "यह पीले धातु के व्यापार में बहुत ही महत्वपूर्ण विकास का प्रतीक है. यह व्यापारियों को वायदा का विकल्प देकर सभी जोखिमों से बचाव करता है."
देश के शेयर बाजार में आगामी सप्ताह वायदा और विकल्प सौदे की परिपक्वता के कारण उतार-चढ़ाव रहने की संभावना है। अप्रैल के एफएंडओ सौदे बुधवार 23 अप्रैल को परिक्व हो जाएंगे। शेयर बाजार 24 अप्रैल को मुंबई में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के मद्देनजर बंद रहेंगे।
F&O Stocks: HAL समेत 10 स्टॉक्स की फ्यूचर एंड ऑप्शंस सेग्मेंट में होगी एंट्री, 27 अगस्त से ट्रेडिंग की शुरुआत
F&O Stocks: एनएसई के मुताबिक मार्केट लॉट की जानकारी इन स्टॉक्स की F&O segment में एंट्री के एक दिन पहले उपलब्ध होगी.
स्टॉक्स को बाजार नियामक सेबी द्वारा तय मानकों के आधार पर ही सेग्मेंट में शामिल करने का फैसला लिया गया है.
F&O Stocks: अगर आप Futures and Options (F&O) segment में ट्रेडिंग करते हैं तो 27 अगस्त से 10 और विकल्प उपलब्ध हो जाएंगे. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के मुताबिक 27 अगस्त से इस सेग्मेंट में 10 और स्टॉक्स की ट्रेडिंग शुरू हो जाएगी. इसमें डिक्सॉन टेक्नोलॉजीज, कैन फाइनेंस होम्स, इंडियामार्ट, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL), पॉलीकैब इंडिया, इप्का लैब, ओरेकल फाइनेंशियल, सिंजीन इंटरनेशनल, इंडियन एनर्जी एक्सचेंज और एमसीएक्स शामिल हैं. एनएसई के मुताबिक मार्केट लॉट की जानकारी इन स्टॉक्स की F&O segment में एंट्री के एक दिन पहले उपलब्ध होगी. इन स्टॉक्स को बाजार नियामक सेबी द्वारा तय मानकों के आधार पर ही सेग्मेंट में शामिल करने का फैसला लिया गया है.
F&O में शामिल होने के लिए ये हैं मानक
- रोलिंग कैलकुलेशन के आधार पर पिछले छह महीनों में डेली बैसिस पर औसतन मार्केट कैप और औसतन डेली ट्रेडेड वैल्यू के आधार पर टॉप 500 स्टॉक्स में शामिल होना चाहिए.
- पिछले छह महीनों में स्टॉक का मीडियन क्वार्टर सिग्मा ऑर्डर साइज 25 लाख रुपये से अधिक होना चाहिए. मीडियन क्वार्टर सिग्मा का मतलब है कि ऑर्डर साइज कम से कम इतना होना चाहिए कि इससे स्टॉक के प्राइस पर असर पड़ सके. इस क्राइटेरिया को लेकर सेबी की मंजूरी लेनी होती है.
- रोलिंग बेसिस पर स्टॉक की मार्केट वाइड पोजिशन लिमिट 500 करोड़ रुपये से अधिक होनी चाहिए. इसके तहत ये देखा जाता है कि स्टॉक सक्रिय रूप से ट्रेड हो रहा है या सिर्फ कुछ ही लोगों के पास सीमित है.
- सेबी के मुताबिक अगर लगातार तीन महीनों तक एलिजिबिलिटी शर्तें नहीं पूरी होती हैं तो उस सिक्योरिटी के नए मासिक कांट्रैक्ट नहीं जारी होंगे. हालांकि जो वर्तमान कांट्रैक्ट हैं और एक्सपायर नही हुए हैं, उन्हें एक्सपायरी तक ट्रेडिंग की मंजूरी रहेगी. इसके अलावा चालू कांट्रैक्ट महीने में फ्रेश स्ट्राइक्स को इंट्रोड्यूस किया जा सकता है.
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फ्चूयर और ऑप्शंस कांट्रैक्टस क्या हैं?
- फ्यूचर कांट्रैक्ट में दो पार्टियों के बीच एक फ्यूचर डेट पर एक प्राइस में सिक्योरिटीज को बेचने या खरीदने के लिए कांट्रैक्ट होता है. इस प्राइस का निर्धारण कांट्रैक्ट के समय ही हो जाता है. यह कांट्रैक्ट बीएसई या एनएसई के जरिए होता है. वहीं दूसरी तरफ ऑप्शंस एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है कांट्रैक्ट में एक अंडरलाइंग एसेट को किसी खास दिन या प्राइस पर बिक्री या खरीदने के राइट्स मिलते हैं और इसमें कोई ऑब्लिगेशन नहीं होता है.
- फ्यूचर कांट्रैक्ट्स का अधिकतम तीन महीनों का ट्रेडिंग साइकिल होता है, जिसमें नियर (Near), नेक्स्ट (Next) और फार (Far) मंथ हैं. नए कांट्रैक्ट नियर मंथ कांट्रैक्ट्स के एक्सपायरी के बाद आते हैं. किसी भी कारोबारी दिन तीनों कांट्रैक्ट उपलब्ध रहते हैं. ऑप्शंस कांट्रैक्ट्स का भी तीन महीनों का साइकिल होता है.
- F&O contracts तीसरे महीने के अंतिम गुरुवार को समाप्त होते हैं और अगर इस दिन छुट्टी पड़ती है तो उसके एक कारोबारी दिन पहले यह कांट्रैक्ट एक्सपायर होगा.
- निफ्टी50 कांट्रैक्ट्स के लिए लॉट साइज 50 है. इसके अलावा अन्य स्टॉक्स का लॉट साइज 40 है.
(सोर्स: ब्रोकरेज एंड रिसर्च फर्म एंजेल वन)
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ट्रेडर्स के लिए कमोडिटी में ट्रेडिंग से जुड़ीं कई अहम जानकारियां
इक्विटी के अलावा अन्य ऐसेट क्लासेज में निवेश करने में दिलचस्पी रखने वाले ट्रेडर्स के लिए कमोडिटी में ट्रेड से जुड़ी हुई अहम जानकारियां.
इस तरह की ब्रोकिंग सेवा देने वाले किसी ब्रोकर के यहां एक डीमैट अकाउंट खोलकर (अगर आप डिलीवरी चाहते हैं) आप ऐसा कर सकते हैं।
2. क्या ये वही ब्रोकर होते हैं, जो इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं?
नहीं, लेकिन इनमें से कई इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं और उन्होंने कमोडिटी एफएंडओ ब्रोकिंग के लिए अलग सब्सिडियरी एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है खोल ली है। इनमें एंजेल कमोडिटीज, कार्वी कमोडिटीज जैसी इकाइयां शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि अगर आप कमोडिटी में ट्रेड करना चाहते हैं तो अलग अकाउंट खोलना पड़ेगा।
3. क्या डिलीवरी अनिवार्य है?
ज्यादातर एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है एग्रीकल्चर फ्यूचर्स जैसे एडिबल ऑयल्स, स्पाइसेज वगैरह में डिलीवरी अनिवार्य है, लेकिन आप अपनी पोजिशन को डिलीवरी से पहले काट सकते हैं। नॉन-एग्री सेगमेंट में ज्यादातर कमोडिटीज नॉन-डिलीवरी बेस्ड होती हैं।
4. क्या ट्रेडिंग इक्विटी एफएंडओ की तरह है?
हां। इसमें मार्क-टु-मार्केट डेली बेसिस पर सेटल होते हैं, लेकिन मार्जिन स्टॉक्स जितने ऊंचे नहीं होते।
5. ट्रेड का मार्जिन क्या होता है?
आमतौर पर 5-10 फीसदी, लेकिन एग्री कमोडिटीज में जब उतार-चढ़ाव बढ़ता है तो एक्सचेंज अतिरिक्त मार्जिन लगाता है। कई बार यह 30 से 50 फीसदी तक हो सकता है।
6. कमोडिटी एफएंडओ मार्केट को कौन रेगुलेट करता है?
मेटल्स और एनर्जी एक्सचेंज एमसीएक्स और एग्री एक्सचेंज एनसीडीईएक्स को सेबी रेगुलेट करता है।
7. क्या कमोडिटी मार्केट में पर्याप्त लिक्विडिटी होती है?
लिक्विडिटी गोल्ड, सिल्वर, क्रूड, कॉपर जैसे नॉन-एग्री काउंटर्स पर ज्यादा होती है। हालांकि, सोयाबीन, मस्टर्ड, जीरा, ग्वारसीड में भी काफी भागीदारी देखने को मिलती है। ज्यादातर रिटेलर्स डिलीवरी लेने या देने की बजाय मेटल्स और एनर्जी में कीमतों पर दांव लगाने पर जोर देते हैं।
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एफ एंड ओ ट्रेडिंग और एमसीएक्स ट्रेडिंग क्या है
Futures and options on stocks and indices offered by exchanges such as NSE and BSE. A stock futures contract facilitates purchase or sale of a stock at a preset price for delivery on a later date. A call option on a stock allows you to purchase the underlier at a preset price on a future date, while, a put option allows you to sell the underlier. Normally, delivery is not taken or given on F&O segment, only the difference in buy or sell price at squaring off to when position was initiated is exchanged between buyers and sellers.
F&O की पाठशाला के इस एपिसोड़ में जानिए - फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या है? कैसे करते हैं F&O ट्रेडिंग? फ्यूचर्स ट्रेडिंग में रिस्क क्या है? ट्रेडर्स और निवेशकों में फर्क?
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