इक्विटी, कर्ज के रास्ते धन जुटाने की गतिविधियां 2022 में घटीं, 20 प्रतिशत कम वित्त जुटा

नयी दिल्ली, 26 दिसंबर (भाषा) कंपनियों की इक्विटी या ऋण मार्ग के जरिये कोष जुटाने की कवायद 2022 में करीब 20 प्रतिशत घटकर 11 लाख करोड़ रुपये रह गई। कर्ज महंगा होने और बाजारों में अस्थिरता की वजह से भी उत्साह ठंडा पड़ा है। ऐसे में 2023 की पहली छमाही चुनौतीपूर्ण रह सकती है।

कोष जुटाने के लिहाज से 2021 एक शानदार वर्ष था जबकि 2022 में दुनियाभर में आसमान छूती मुद्रास्फीति और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से आई अस्थिरता के कारण इसमें कमी आई।

ट्रस्टप्लूटस वेल्थ (भारत) प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध साझेदार (उत्पाद) एवं मुख्य परिचालन अधिकारी विशाल चांदीरमानी ने कहा, ‘‘वैश्विक स्तर पर हो रहे घटनाक्रमों की वजह से 2023 की पहली छमाही चुनौतीपूर्ण रह सकती है। अमेरिका में मंदी का प्रभाव यदि मामूली रहता है तो हम अगले वर्ष की दूसरी छमाही में वैश्विक बाजारों में तेजी की उम्मीद कर सकते हैं।’’

हालांकि, उन्होंने कहा कि बाजारों में तेजी आ भी जाए तब भी पहले की तुलना में अगले कुछ वर्षों में कोष जुटाना मुश्किल भरा हो सकता है।

गुजरते वर्ष में ऋण बाजार के जरिये जुटाए गए वित्त में कुछ वृद्धि हुई है जबकि इक्विटी के जरिये जुटाया नया वित्त बहुत तेजी कम हुआ है। दरअसल, भू-राजनीतिक तनाव की वजह से 2022 में आईपीओ के जरिये वित्त जुटाने की कवायद घटकर आधी रह गई। इस वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? वर्ष वित्त जुटाने की कुल गतिविधियों में सर्वाधिक हिस्सेदारी ऋण बाजार से वित्त जुटाने की रही है।

विश्लेषण करने वाली कंपनी प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष दिसंबर महीने के मध्य तक कुल 11 लाख करोड़ रुपये का कोष जुटाया गया जिसमें से 6.92 लाख करोड़ रुपये कर्ज बाजार से, 1.62 करोड़ रुपये इक्विटी बाजार से और 2.52 लाख करोड़ विदेशी मार्गों से आए।

वर्ष 2021 में कंपनियों ने 13.6 लाख करोड़ रुपये जुटाए थे जिसमें 6.8 लाख करोड़ रुपये कर्ज के जरिये, 2.85 लाख करोड़ रुपये इक्विटी से जिसमें से रिकॉर्ड 1.2 लाख करोड़ रुपये आईपीओ से जुटाए थे।

ये आंकड़े दिखाते हैं कि कोष जुटाने की गतिविधियों के लिए 2021 में माहौल बहुत ही आकर्षक था जबकि 2022 में यह बिलकुल अलग है।

फिस्डम में अनुसंधान प्रमुख नीरव कारकेरा ने कहा, ‘‘वर्ष 2021 कम लागत पर ऋण पुनर्वित्त करने, अत्यधिक अनुकूलित लागत पर ऋण के माध्यम से नई पूंजी जुटाने के साथ-साथ सकारात्मक भावनाओं के बीच अच्छे मूल्यांकन का लाभ उठाने के लिहाज से बढ़िया साल रहा।’’

उन्होंने कहा कि 2022 में प्रोत्साहन नहीं मिला, मौद्रिक नीतियां सख्त हो गईं, दुनियाभर में मुद्रास्फीतिक चिंताएं बढ़ीं और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान समेत कई चुनौतियां आईं।

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Budget 2023: निर्मला सीतारमण के यूनियन बजट से ठीक पहले IMF ने सरकार को वित्तीय स्थिति ठीक करने की सलाह दी

Budget 2023: आईएमएफ ने यह भी कहा है कि इंडियन इकोनॉमी की सेहत अच्छी है। ग्लोबल इकोनॉमी में मुश्किल के बीच इंडिया उम्मीद की किरण जगाता है। फिर भी, सरकार को फिस्कल डेफिसिट में कमी का ठोस प्लान बनाना चाहिए। अभी सरकार का फिस्कल डेफिसिट बहुत ज्यादा है

IMF की यह रिपोर्ट इसलिए काफी अहम है, क्योंकि यह वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के यूनियन बजट से कुछ ही हफ्ते पहले आई है। इकोनॉमिस्ट्स का भी कहना है कि फाइनेंस मिनिस्टर अगले फाइनेंशियल ईयर के लिए फिस्कल डेफिसिट का करीब 6 फीसदी का लक्ष्य तय कर सकती हैं।

Budget 2023: इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति ठीक करने की सलाह दी है। इंडिया में आईएमएफ के मिशन चीफ Nada Choueiri ने कहा है कि फाइनेंशियल ईयर 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) के 4.5 फीसदी टारगेट को हासिल किया जा सकता है। पिछले दो-तीन साल में इंडिया का फिस्कल डेफिसिट काफी बढ़ा है। इसकी वजह यह है कि सरकार ने कोरोना की महामारी की वजह से अपना खर्च काफी बढ़ाया है। कई एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकार अब अपनी वित्तीय स्थिति को ठीक करने पर फोकस वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? कर सकती है। फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) 1 फरवरी, 2023 को यूनियन बजट (Union Budget 2023) पेश करेंगी। इसमें वह फिस्कल डेफिसिट घटाने के उपायों का ऐलान कर सकती हैं।

ईयर 2027-28 तक फिस्कल डेफिसिट में 4 फीसदी तक की कमी हो सकती है

Choueiri ने कहा कि हमने कई स्थितियों को ध्यान में रख अथॉरिटीज को अपनी राय बताई है। इनमें सब्सिडी में रिफॉर्म्स, जीएसटी, एक्साइज टैक्स और इनकम टैक्सेज में एडिशिलन टैक्स रिफॉर्म्स शामिल हैं। उन्होंने कहा, "हमारा अनुमान है कि सरकार अब से लेकर फाइनेंशियल ईयर 2027-28 तक फिस्कल डेफिसिट में 4 फीसदी तक की कमी कर सकती है।" सरकार ने इस फाइनेंशियल ईयर के लिए फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 6.4 फीसदी तक रखने का वित्तीय बाजारों में क्या कमी है? टारगेट तय किया है। सरकार इसे फाइनेंशियल ईयर 2025-26 तक घटाकर 4.5 फीसदी तक लाना चाहती है।

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