उदाहरण के लिए, 60 के दशक में, प्रवृत्ति ने बड़े रंगीन प्रिंट और ऑक्सफोर्ड पैंट ( हाथी के पैर के रूप में भी जाना जाता है) के साथ बहुत रंगीन कपड़ों के उपयोग को चिह्नित किया।
विदेशी मुद्रा रुझान: तकनीकी विश्लेषण में ट्रेंड लाइन्स
मूल अवधारणाओं में से एक है तकनीकी विश्लेषण प्रवृत्ति है.यह धारणा पर प्रवृत्ति के प्रकार आधारित है कि बाजार में भाग लेने वाले कुछ समय के लिए परिसंपत्ति मूल्य आंदोलनों को टिकाऊ बनाने वाले झुंडों में निर्णय लेते हैं.
ट्रेंड्स के प्रकार
परिसंपत्ति मूल्यों की प्रचलित दिशा के आधार पर तीन प्रकार के रुझान हैं:
- अपवर्ड ट्रेंड
- नीचे रुझा
- साइडवे या कोई स्पष्ट प्रवृत्ति नहीं
एक अपवर्ड प्रवृत्तिउच्च स्थानीय उतार और उच्च स्थानीय चढ़ाव के लिए जा रही कीमतों की विशेषता है । चढ़ाव को जोड़ने वाली एक ऊपर की प्रवृत्ति सकारात्मक ढलान प्राप्त करती है.
एक नीचे की प्रवृत्ति कम स्थानीय उतार और कम स्थानीय चढ़ाव बनाने की कीमतों की विशेषता है । उतार को जोड़ने वाली एक नीचे की रेखा नकारात्मक ढलान प्राप्त करती है.
एक साइडवेज प्रवृत्ति दो क्षैतिज ट्रेंडलाइन द्वारा तैयार की जाती है जो कीमतों को बड़े ऊपर या नीचे की ओर आंदोलनों से रोकती है, जो एक निश्चित सीमा में उतार-चढ़ाव को रखते हुए होती है.
प्रवृत्ति के प्रकार
Year: Jan, 2014
Volume: 7 / Issue: 13
Pages: 1 - 5 (5)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/303449
Published On: Jan, 2014
भारत में नगरीकरण की प्रवृत्ति, प्रभाव एवं समस्याऐं | Original Article
Ashish Shukla*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research
परिभाषा प्रवृत्ति
प्रवृत्ति एक निश्चित छोर की ओर एक वर्तमान या वरीयता है । उदाहरण के लिए: "लियोनेल मेस्सी एक महान खिलाड़ी हैं, हालांकि उनके पास बाईं ओर का सामना करने की प्रवृत्ति है, जो उनके आंदोलनों की भविष्यवाणी करने में मदद करता है", "कीमतों में ऊपर की ओर की प्रवृत्ति अर्थशास्त्रियों को चिंतित करती है", "दो घंटे के करीब चुनाव, कोई स्पष्ट प्रवृत्ति नहीं है जो हमें एक विजेता को देखने की अनुमति देती है ” ।
यह शब्द उस बल का नाम भी देता है जो किसी वस्तु को किसी अन्य शरीर की ओर झुकाव देता है और विचार एक निश्चित दिशा में उन्मुख होता है: "राज्यपाल ने समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध लगाते समय अपनी रूढ़िवादी प्रवृत्ति दिखाई", "यह फासीवादी प्रवृत्ति का एक उपाय है, जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कमजोर करता है । "
शरीर की प्रवृत्ति शुभ-अशुभ दोनों होती है : संयतमुनि
जीव अनादिकाल से शरीर पा रहा है, जब तक शरीर है तब तक शरीर की प्रवृत्ति है और जब तक कर्मों का बंध होता रहता है। शरीर की प्रवृत्ति शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार की होती है। जब काया की अशुभ प्रवृत्ति हो तो अशुभ कर्म एवं शुभ प्रवृत्ति हो तो शुभ कर्म का बंध होता है।
यह बात संयतमुनिजी ने काटजू नगर स्थित समता भवन में कही। उन्होंने कहा चिंतन करें कि हमारी काया की शुभ प्रवृत्ति अधिक होती है या अशुभ प्रवृत्ति। यह अशुभ प्रवृत्ति रूपी शास्त्र (भाव शस्त्र) हम स्वयं पर चलाते हैं। बरछी, भाला आदि द्रव्य शस्त्र हैं लेकिन भाव शस्त्र शस्त्र हैं यह पता नहीं चलता इस भाव शस्त्र को जानना आवश्यक है। हम द्रव्य शस्त्रों से उतना कर्मों का बंध नहीं करते जितना भाव शस्त्र से करते हैं। चार प्रकार के भाव शस्त्रों में से तीसरा शस्त्र है काया की अशुभ प्रवृत्ति, शस्त्र हम मन से चलाएं या बिना मन से तो प्रवृत्ति के प्रकार भी हानि होती है। हम शस्त्र (शुभ प्रवृत्ति) मन से चलाएं या बिना मन से तो भी लाभ ही होता है। किसी से झगड़ा होता है तो पहले मन का शस्त्र फिर वचन का शस्त्र व काया का शस्त्र चालू हो जाता है। जीव ने इस काया को शस्त्र का भंडार बना रखा है। शरीर को व्यसन में लगाना भी शस्त्र है। इसलिए बुरी प्रवृत्तियों को छोड़ना है। काया की अशुभ प्रवृत्ति को छोड़ेंगे तो यह शरीर शास्त्र बन जाएगा। अपने दुर्गुणों को दुर्गुण समझेंगे तो ही इन्हें छोड़ सकते हैं। यदि दुर्गुणों को सदगुण समझ लिया तो दुर्गुणों को नहीं छोड़ सकेंगे।
मूल प्रवृत्ति और संवेग / मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां
दोस्तों अगर आप बीटीसी, बीएड कोर्स या फिर uptet,ctet, supertet,dssb,btet,htet या अन्य किसी राज्य की शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आप जानते हैं कि इन सभी मे प्रवृत्ति के प्रकार बाल मनोविज्ञान विषय का स्थान प्रमुख है। इसीलिए हम आपके लिए बाल मनोविज्ञान के सभी महत्वपूर्ण टॉपिक की श्रृंखला लाये हैं। जिसमें हमारी साइट articlehindi.com का आज का टॉपिक मूल प्रवृत्ति और संवेग / मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां है।
मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां / मूल प्रवृत्ति और संवेग
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संवेग का अर्थ एवं परिभाषाएं (EMOTION psychology)
Emotion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द Emovere से हुई है जिसका अर्थ है- उत्तेजित करना। संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रदर्शित करता हैं। संवेग जन्मजात होता है। सभी संवेगों का विकास एक साथ न होकर धीरे-धीरे होता है।
वाटसन के अनुसार- नवजात शिशु में 3 संवेग पाये जाते हैं। (भय, क्रोध, प्रेम)
ब्रिजेज के अनुसार- जन्म के समय शिशु मे केवल 1 संवेग ‘उत्तेजना’ होता है तथा 2 वर्ष की आयु तक सभी संवेगों का विकास हो जाता है।
बुडवर्थ के अनुसार– “प्रवृत्ति के प्रकार संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
जरशील्ड के अनुसार– किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं।
रॉस के अनुसार– संवेग चेतना की अवस्था है जिसमें रागात्मक तत्व की प्रधानता रहती है।
मूलप्रवृत्ति और संवेग
(1) संवेग के तुरंत बाद होने वाली क्रिया ही मूल-प्रवृत्ति कहलाती है। अर्थात पहले संवेग होता है उसके परिणाम स्वरूप मूल प्रवृत्ति होती है।
(2) मैक्डूगल को मूल प्रवृत्ति का जनक कहा जाता है।
(3) विलियम मेक्डूगल व गिलफोर्ड ने ‘भय’ को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संवेग माना है।
(4) एक बालक में निम्न 14 प्रकार के संवेग होते हैं।
फ्रायड की मूल प्रवृत्ति
यह दो प्रकार की है–
(1) जीवन की मूल प्रवृत्ति – यह ऊर्जा तथा जीवन से सम्बन्ध रखती है। इसे (“इरोस”) कहा गया है।
(2) मृत्यु की मूल प्रवृत्ति – यह विनाश से सम्बन्ध रखती है। इसे (“येनाटोस”) कहा गया है।
मैकडूगल के 14 संवेग एवं मूल प्रवृत्तियां / मैकडूगल के अनुसार 14 संवेग एवं उनकी मूल प्रवृत्तियां
मैकडूगल ने कुल 14 संवेगों को बताया है। इनमें से कुछ संवेग प्रवृत्ति के प्रकार सकारात्मक तथा कुछ संवेग नकारात्मक हैं। मैकडूगल ने अधिकार, आत्म अभियान,आश्चर्य, आमोद, करुणा, कृतभाव, वात्सल्य आदि को सकारात्मक संवेग की श्रेणी में रखा है। मैकडूगल ने भय, क्रोध,भूख, कामुकता, घृणा, आत्महीनता, एकाकीपन आदि को नकारात्मक संवेग की श्रेणी में रखा है।
क्र०सं० | संवेग | मूल प्रवृत्ति |
1 | भय | पलायन |
2 | क्रोध | युयुत्सा (युद्ध करने की इच्छा) |
3 | भूख | भोजन तलाश |
4 | कामुकता | काम प्रवृत्ति |
5 | घृणा | निवृत्ति |
6 | आत्महीनता | दैत्य (दानव प्रवृत्ति) |
7 | एकाकीपन | सामूहिकता |
8 | अधिकार | संग्रहण |
9 | आत्म-अभियान | आत्म गौरव |
10 | आश्चर्य | जिज्ञासा |
11 | आमोद | हास |
12 | करुणा | शरणागति |
13 | कृतभाव | रचना |
14 | वात्सल्य | संतान |
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