खेती में फसल विविधीकरण की महत्ता
23 जून 2022, खेती में फसल विविधीकरण की महत्ता – भारतीय कृषि में हरित क्रांति के बाद से किसानों का एकमात्र ध्यान खाद्य फसलों के उत्पादन बढ़ाने की तरफ है। इसके लिए किसान अत्यधिक मात्रा में कृषि रसायन जैसे उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक व फफंूदनाशी का प्रयोग करने लगे हैं। किन्तु अत्यधिक कृषि रसायनों के प्रयोग से व निरंतर एक ही रसायन से कीट अथवा खरपतवार में धीरे- धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। गेहूं में पाए जाने वाले गुली डंडा नामक खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए कई सालों तक किसानों ने आइसोप्रोट्यूरॉन का प्रयोग किया, जिस कारण से उसमे प्रतिरोधकता आ गयी। कई बार तो कोई खरपतवार या कीट की संख्या कृषि रसायनों के प्रयोग से एक दफा के लिए नुकसान पहुंचने वाली आबादी से कम हो जाती है और कुछ समय बाद ही उनका पुनरुत्थान हो जाता है। इसके पश्चात उनकी आबादी को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो जाता है व फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हंै।
भारतीय कृषि में हरित क्रांति के बाद से किसानों का एकमात्र ध्यान खाद्य फसलों के उत्पादन बढ़ाने की तरफ है। इसके लिए किसान अत्यधिक मात्रा में कृषि रसायन जैसे उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक व फफंूदनाशी का प्रयोग करने लगे हैं। किन्तु अत्यधिक कृषि रसायनों के प्रयोग से व निरंतर एक ही रसायन से कीट अथवा खरपतवार में धीरे- धीरे उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है। गेहूं में पाए जाने वाले गुली डंडा नामक खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए कई सालों तक किसानों ने आइसोप्रोट्यूरॉन का प्रयोग किया, जिस कारण से उसमे प्रतिरोधकता आ गयी। कई बार तो कोई खरपतवार या कीट की संख्या कृषि रसायनों के प्रयोग से एक दफा के लिए नुकसान पहुंचने वाली आबादी से कम हो जाती है और कुछ समय बाद ही उनका पुनरुत्थान हो जाता है। इसके पश्चात उनकी आबादी को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल हो जाता है व फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हंै।
हरियाणा, पंजाब समेत उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में कपास उगाने वाले किसानों को सफेद मक्खी के पुनरुत्थान से उनकी फसलों की दुर्वाशा देखनी पड़ी थी। इनके अलावा कृषि रसायन मृदा, जल, जीव स्वास्थ्य एवं वातावरण को दूषित करते है। इस अवस्था का एक कारण किसानों द्वारा उनके खेतों में लगातार केवल एक ही फसल चक्रण या बार बार एक ही फसल का उत्पादन करना है। जैसे बार बार खेत में केवल एक ही फसल लगाई जाये, तो उसके लिए खेत को तैयार करते समय मृदा की एक निश्चित गहराई तक जुताई की जाती है, जिस कारण से उसके नीचे मिट्टी में एक सख्त परत का निर्माण हो जाता है, जो मृदा की पानी सोखने की क्षमता को कम कर देती है। साल दर साल अगर एक ही फसल चक्रण या एक ही फसल का अनुसरण करने से मृदा से कुछ पोषक तत्वों का अधिक खनन होता है और कुछ पोषक तत्वों की विषाक्तता हो जाती है। फसल विविधता के जरिये काफी हद तक इन सारी समस्याओं से निजात पाया जाता है और साथ में किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
फसल विविधता क्या है
फसल विविधता एक खेत में एक साथ विविधीकरण के प्रकार या एक फसल चक्रण में विभिन्न प्रकार की फसल अथवा एक ही फसल की अनेक किस्में लगाकर खेती करने की एक पद्धति है, जिसमें हर थोड़े अंतराल के पश्चात एक फसल को किसी अन्य फसल से प्रतिस्थापित करना फसल विविधता के आयाम को विविधीकरण के प्रकार बनाये रखने के लिए आवश्यक है। किसान निम्न अवधारणाओं का अनुसरण करके अपने खेत में फसल विविधता कर सकता है –
एकल फसल की अपेक्षा अंतर
फसल लगाना: जब विविधीकरण के प्रकार दो या दो से अधिक फसल एक ही खेत में एक समय पर एक साथ उगाई जाये, तब उसे अंतर – फसल लगाना कहते है। इसमें एक फसल मुख्य फसल होती है व दूसरी फसल जो कुछ हिस्सों में मुख्य फसल के स्थान पर लगाई जाती है, उसको अंतर्फसल कहते हंै। यदि मुख्य फसल और अंतर-फसल निश्चित पंक्तियों में लगाई जाये, तब वह पंक्ति अंतर-फसल करना होता है। पांच गेहूं की पंक्तियों के बाद एक सरसों की पंक्ति लगाना पंक्ति अंतर-फसल का उदहारण है। किसान अगर मक्का की पंक्तियों के साथ फलियां लगाए, तब फलियां पत्ता हॉपर एवं डंठल छेदक के लिए जाल फसल का कार्य करती है। और अगर किसान गेहूं व चने को बिना किसी पंक्ति क्रम के उगाता है, तब वह मिश्रित अंतर-फसल लगा रहा है। मिश्रित अंतर फसल में पौधों के बीच स्थानिक निकटता होने के कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है, जो पंक्ति अंतर फसल में नहीं होती। कुछ अंतर फसल आकर्षण- प्रतिकर्षण (पुश-पुल) तकनीक का प्रयोग करके कीड़ों को नियंत्रित करती है, जैसे मक्का के साथ पंक्ति अंतरफसल में डेस्मोडियम लगाने से डेस्मोडियम तना छेदक के व्यस्क कीट को विकर्षित करते है जिससे वो मक्का के पत्तों पर अंडे नहीं दे पाते और साथ में स्ट्रिगा नामक खरपतवार जो जड़ परजीवी है, उसको मक्का की जड़ो के साथ संलग्न होने से रोकती है।
फसल चक्रण: किसी खेत में भिन्न-भिन्न प्रकार की फसल विविधीकरण के प्रकार लगाकर फसल चक्रण किया जाता है। किसान अपने पास उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से फसल चक्रण एक साल, दो साल अथवा तीन साल का भी कर सकते है। फसल चक्रण से पैदावार के साथ साथ मृदा की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। फसल चक्रण में हरी खाद वाली फसल जैसे ढेंचा या सनई और दलहनी फसल जैसे मूंग, लोबिया इत्यादि को सम्मिलित करने से कम उर्वरक की आवश्यकता होती है व मृदा में जैव पदार्थ की मात्रा अधिक और उसकी संरचना अच्छी बनी रहती है।
कृषि वानिकी: फसलों और पशुओं के साथ पेड़ों की खेती करना कृषि वानिकी है और कृषि वानिकी के बेहतर प्रयोग से बेहतर पोषण, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, पारिस्थितिक तंत्र एवं आजीविका सुधारने में किसानो को मदद मिलती है। कृषि वानिकी प्रणालियों से मृदा संवर्धन, जैव विविधता संरक्षण, कार्बन पृथक्करण एवं वायु और जल गुणवत्ता में सुधार करता है। झूम खेती, टोंग्या खेती, खेत की मेड़ों पर बहुउद्देशीय पेड़, रोपण फसलों विविधीकरण के प्रकार के साथ खाद्य फसल, विंडब्रेक और शेल्टर बेल्ट कृषि वानिकी के कुछ आयाम है।
कृषि-बागवानी: बागवानी फसलों के बीच में दलहनी, दाने वाली फसल, तिलहन या सब्जियां लगाने से किसानों को अतिरिक्त आय, खेत में कम खरपतवार व मृदा अपरदन से संरक्षण मिलता है। जैसे किसान किन्नू के बाग में खरीफ में मक्का, ज्वार, कपास, मूंग अथवा लोबिया लगाए और रबी में गेहूं, चना व लोबिया लगाए। और जब किन्नू के पेड़ों का तीन से चार साल बाद अच्छा विकास हो जाये, तब किसान को केवल चारे के लिए फसल जैसे लोबिया, ज्वार लगायें। किन्नू के पेड़ों के चार साल के होने के बाद भी अगर कपास लगायी जाये, तब वह किन्नू की शाखाओं में फुटाव को रोक देती है और अगर गेहूं लगाया जाये, तब उसे उचित सूर्य प्रकाश न मिलने से उसका अच्छा विकास नहीं हो पता। किसानों को इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए फसल का विविधीकरण करते रहें।
विविधीकरण के प्रकार
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ग्रामीण विकास : साख, विपणन, कृषि विविधीकरण तथा जैविक खेती संबंधी समस्याएँ
कृषि विविधीकरण से क्या अभिप्रा .
Solution : कृषि विविधीकरण से अभिप्राय विभिन्न प्रकार की फसलों को विविधीकरण के प्रकार उगाने तथा पशपालन को बढावा देने से है। कई राज्यों में मुर्गी पालन, मछली पालन तथा बागवानी को भी इसमें सम्मिलित किया जाता है।
फसल विविधीकरण के माध्यम से उत्पादन बढ़ाएं
17 नवंबर 2021, भोपाल । फसल विविधीकरण के माध्यम से उत्पादन बढ़ाएं – मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ाने के साथ निर्यात को भी बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ। अधिक मुनाफा देने वाली फसलों के उत्पादन को विविधीकरण के माध्यम से बढ़ाने के प्रयास हो। किसानों को कृषि एवं उद्यानिकी फसलों में किसी भी प्रकार का नुकसान न हो, इसका ध्यान रखा जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने यह निर्देश कृषि एवं उद्यानिकी से संबंधित फसलों की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को दिए। मुख्य सचिव श्री इकबाल सिंह बैंस सहित कृषि एवं उद्यानिकी के अधिकारी उपस्थित थे।
फसल विविधीकरण
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि खेती को लाभकारी बनाने के लिए विविधीकरण द्वारा वैकल्पिक फसलों के लिए किसानों को प्रेरित करें। इसके लिए अभियान चलाकर प्रयास करें और किसानों को प्रशिक्षित भी करें। फसलों के विविधीकरण में किसानों को यदि किसी प्रकार की दिक्कतें आती हैं तो उसका समाधान भी करें। उन्होंने कहा कि कम पानी से पैदा होने वाली फसलों के प्रति किसानों को समझाइश दें।
जैविक खेती एवं डेयरी उत्पादों को बढ़ावा
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि जैविक खेती के माध्यम से फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिकाधिक विविधीकरण के प्रकार प्रयास किए जाएँ।
खाद की वितरण व्यवस्था बेहतर हो
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रदेश विविधीकरण के प्रकार में पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध है। केंद्र से समय-समय पर खाद की रैक प्रदेश को प्राप्त हो रही है। किसानों को इसका वितरण बेहतर ढंग से सुनिश्चित किया जाए।
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