जब इस मसले पर वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार आनिंदो चक्रवर्ती से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि निर्मला सीतारमण जो कह रही हैं वह बात सही है। डॉलर मजबूत हो रहा है और रुपया गिर रहा है। रुपया जिस दर से गिर रहा है, उससे ज्यादा तेजी से यूरोप की दूसरी करेंसी गिर रही हैं। इस पूरे मसले की जड़ में भारत की आर्थिक नीतियां है। पिछले 30 साल के आर्थिक नीतियों का नतीजा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया लागातर गिर रहा है। भारत ने खुली अर्थव्यवस्था की नीति पूरी तरह से अपना ली। इसलिए यह हो रहा है।
डॉलर की मजबूती के क्या फायदे और नुकसान
करीब एक साल से डॉलर की कीमत का लगातार बढ़ना जारी है. ब्रिटेन से लेकर, अटलांटिक पार के देशों और दक्षिण कोरिया से लेकर पूरे प्रशांत के चारों ओर डॉलर सिर चढ़ कर बोल रहा है. डॉलर की कीमत का असर पूरी दुनिया पर होता है.
यूरो और जापानी येन समेत दुनिया की छह बड़ी मुद्राओं से जुड़े सूचकांक में शुक्रवार की बढ़ोत्तरी के साथ डॉलर बीते दो दशकों में सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है. बहुत से पेशेवर निवेशकों को इसके जल्दी नीचे जाने के आसार नहीं दिख रहे हैं.
जो लोग कभी अमेरिका की सीमा से बाहर नहीं गये उन पर भी डॉलर की कीमत के बढ़ने का असर होगा. आखिर डॉलर की कीमत इतनी ज्यादा क्यों बढ़ रही है और इसका निवेशकों और आम लोगों पर क्या असर होगा?
डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?
एक डॉलर से पहले की तुलना में अब दूसरी मुद्राएं ज्यादा खरीदी जा सकती हैं. जापान के येन को ही लीजिये. एक साल पहले एक डॉलर के बदले 110 येन से थोड़ा कम मिलता था वह आज 143 येन मिल रहा है यानी 30 फीसदी से ज्यादा. अमेरिकी डॉलर की मजबूती का सबसे ज्यादा असर यहीं दिख रहा है.
विदेशी मुद्रा का भाव एक दूसरे की तुलना में लगातार बदलता रहता है क्योंकि बैंक, कारोबार और व्यापारी उन्हें पूरी दुनिया में टाइमजोन के हिसाब से खरीदते और बेचते रहते हैं. यूएस डॉलर इंडेक्स यूरो, येन और दूसरी प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कीमत आंकता है. यह सूचकांक इस साल 14 फीसदी से ज्यादा बड़ गया. निवेश के दूसरे माध्यमों की तुलना में यह ज्यादा आकर्षक दिख रहा है क्योंकि बाकियों के लिये तो यह साल अच्छा नहीं रहा. अमेरिकी शेयर बाजार 19 फीसदी नीचे है, बिटकॉइन ने अपनी आधी कीमत खो दी है और सोना 7 फीसदी नीचे गया है.
डॉलर मजबूत क्यों हो रहा है?
अमेरिकी अर्थव्यवस्था दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अच्छा प्रदर्शन कर रही है और यही डॉलर की मजबूती का कारण है. महंगाई की दर ऊंची है, रोजगार की स्थिति मजबूत है और सेवा क्षेत्र जैसे अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टरों का भी हाल अच्छा है. इन सब ने धीमे पड़ते निर्माण क्षेत्र और कम ब्याज दर में अच्छा करने वाले सेक्टरों से उपजी चिंताएं दूर की हैं. इसके नतीजे में व्यापारी उम्मीद कर रहे हैं कि फेडरल रिजर्व ब्याज बढ़ाते रहने का अपना वादा निभाता रहेगा और कुछ समय के लिये यह व्यवस्था लागू रहेगी. इसके सहारे ऊंची महंगाई दर का सामना करने की तैयारी है जो 40 सालों में फिलहाल सबसे ऊंचे स्तर पर है.
इन सब उम्मीदों ने सरकार के 10 सालों के सरकारी प्रतिभूतियों के राजस्व में एक साल पहले के 1.33 फीसदी की तुलना में 3.44 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है.
डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है?
डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। आज 1 डॉलर तब मिलेगा जब 82.38 रुपये दिए जाएंगे। आप कहेंगे कि डॉलर से आप के ऊपर तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ता तो चिंता की क्या बात है? आपका 100 रुपया आज भी 100 रुपया है। उससे उतना ही सामान और सेवा खरीदी जा सकती है जितनी पहले मिलती थी तो चिंता की क्या बात? लेकिन यहीं आप ग़लत हैं। हकीकत यह है कि जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है तो भले ही आप चिंता करे या न करे,भले ही आपने जीवन में कभी डॉलर न देखा हो, मगर आप और हम जैसों आम लोगों पर ही असर पड़ता है।
भारत में सब कुछ तो पैदा नहीं होता। अपनी कई बुनियादी जरूरतों के लिए भारत विदेशों पर निर्भर है। विदेशी व्यापार डॉलर में होता है। क्रूड आयल यानी कच्चे तेल को ही देखिये। भारत की जरूरत का तकरीबन 85 फीसदी बाहर से आयात होता है। जब तेल की खरीदारी डॉलर में होगी तो इसका मतलब है कि बाहर से तेल मंगाने पर आपको ज़्यादा रुपया देना होगा। इससे क्या होगा। आपके देश में तेल के दाम बढ़ंगे। तेल यानी पेट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़गें तो आपको ज़्यादा रुपया चुकाना पड़ेगा। साथ ही अन्य सामानों पर भी महंगाई बढ़ेगी। महंगाई बढ़ेगी तो इसका सबसे ज्यादा असर उन्हीं 90 प्रतिशत कामगारों पर पड़ेगा जो महीने में 25 हजार रुपये से कम कमाते हैं। यानी डॉलर के मुकाबले जब रुपया गिरता है तो आम आदमी की कमर तोड़ने वाले महंगाई अर्थव्यवस्था के गहरी जड़ों में समाने लगती हैं।
दुनिया की अन्य बड़ी करेंसी के सामने रुपए का प्रदर्शन
ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) के लिए अक्टूबर 2021 में 103 भारतीय रुपए खर्च करने पड़ते थे, जो अक्टूबर 2022 में घटकर 93 रुपए हो गई. यानी पॉउंड से सामने भारतीय रुपया करीब 10 फीसदी मजबूत हुआ है. वहीं यूरो की कीमत सालभर पहले 87 रुपए थी, जो अब 81 रुपए हो गई. यहां भी भारतीय रुपया यूरो के मुकाबले करीब 9 फीसदी मजबूत हुआ है. इसके अलावा जापान की करेंसी येन का भाव अक्टूबर 2021 में 0.65 रुपए थी, जो इस साल अक्टूबर में 0.55 रुपए हो गई. यानी येन के सामने भारतीय रुपया मजबूत हुआ है.
अनिल सिंघवी ने बताया कि भारतीय रुपया केवल डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है. जबकि दुनिया की अन्य बड़ी करेंसी के सामने 8 से 10 फीसदी तक मजबूत हुआ है. उन्होंने यह भी बताया कि डॉलर क्यों मजबूत हुआ. उन्होंने बताया कि एक साल में डॉलर दुनिया के लगभग सभी करेंसी के मुकाबले मजबूत हुआ है. यह बढ़त करीब 20 फीसदी तक की है. दूसरी ओर भारतीय रुपया केवल 10 फीसदी ही कमजोर हुआ है. इसका मतलब है कि भारतीय रुपया अन्य करेंसी के मुकाबले कम कमजोर हुआ है. इसीलिए यह माना जाता है कि रुपए के सामने डॉलर कम मजबूत हुआ है.
डॉलर इंडेक्स क्या होता है?
डॉलर इंडेक्स में दुनिया की 6 बड़ी करेंसी शामिल हैं, जिनको डॉलर के सामने नापा जाता है. इंडेक्स यूरो, पाउंड, येन, स्विस फ्रैंक और स्वीडिश क्रोना शामिल हैं. एक साल में डॉलर इंडेक्स 93 से बढ़कर 112 पर पहुंच गया है. यानी डॉलर इंडेक्स सालभर में करीब 20 फीसदी चढ़ा है.
अनिल सिंघवी के मुताबिक रुपए की कमजोरी में बड़ी भूमिका कच्चे तेल की है. क्योंकि देश के इंपोर्ट बिल में 30 से 40 फीसदी हिस्सेदारी क्रूड का है. ऐसे में जब हम क्रूड के बिल पेमेंट करते हैं तो इसके लिए डॉलर का इस्तेमाल होता है. इसीलिए डॉलर की डिमांड बढ़ती है. दूसरी वजह है अमेरिका में ब्याज दरों में इजाफा होना. इसी डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? साल फरवरी में US में ब्याज दर जीरो था, जो अब बढ़कर 3.5 फीसदी हो गया है. इससे डॉलर में मजबूती आई. चुंकि निवेशक ज्यादा से ज्यादा रकम डॉलर में रखना चाहते हैं, तो ऐसी स्थिति में डॉलर की डिमांड बढ़ती है. क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से सुरक्षित निवेश के तौर पर डॉलर की डिमांड बढ़ती है.
डॉलर इंडेक्स का इतिहास
डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.
डॉलर इंडेक्स में डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की डॉलर की मजबूती का क्या मतलब है? वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.
रुपया नहीं फिसल रहा बल्कि डॉलर हो रहा है मजबूत : सीतारमण
वाशिंगटन, 16 अक्टूबर (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस वर्ष भारतीय मुद्रा रुपये में आई आठ फीसदी की गिरावट को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हुए कहा है कि कमजोरी रुपये में नहीं आई बल्कि डॉलर में मजबूती आई है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक की सालाना बैठकों में शामिल होने के बाद सीतारमण ने शनिवार को यहां संवाददाताओं से बातचीत में भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद को मजबूत बताते हुए कहा कि अमेरिकी डॉलर की मजबूती के बावजूद भारतीय रुपया में स्थिरता बनी हुई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में भारत में मुद्रास्फीति कम है और मौजूदा स्तर पर उससे निपटा जा सकता है।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 457