आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है
Iceberg एक प्रकार का आर्डर होता है, जो ज़्यादा क्वांटिटी (या ज़्यादा वैल्यू) वाले ऑर्डर को छोटे ऑर्डर में डिवाइड करता है। पिछला (प्रीवियस) आर्डर जब भर जाता है, तब ही हर छोटा आर्डर या लेग, एक्सचेंज को भेजे जातें है।
यह मार्केट डेप्थ के बिड्स और ऑफर्स में बड़े ऑर्डर्स (large orders) के बारे में नहीं बताता। इसके अलावा यह एक्सेक्यूशन के इम्पैक्ट कॉस्ट को कम करने में मदद भी करता है। Icebergs इंस्टीटूशनल ट्रेडर्स (institutional traders) के बीच एक बहुत लोकप्रिय ऑर्डर टाइप माना जाता है। भारत में रिटेल ट्रेडर्स को इससे परिचय कराने के लिए हम बहुत उत्साहित हैं।
ऑर्डर प्लेस करते समय, ऐक्चूअल ट्रेडेड प्राइस को जब इंस्ट्रूमेंट के प्राइस से तुलना करते हैं, तब उनमें जो अंतर होता है उसे इम्पैक्ट कॉस्ट कहतें है। उदाहरण के लिए, जब स्टॉक ₹100 पर ट्रेड हो रहा था, तब अगर 1000 शेयर्स को खरीदने के लिए मार्केट ऑर्डर प्लेस किया गया था, और अगर ऐक्चूअल एक्सेक्यूशन प्राइस ₹100.5 था, तब इस आर्डर के लिए इम्पैक्ट कॉस्ट ₹0.5 x 1000 = ₹500 होगा। इसी तरह, जब स्टॉक ₹100 पर ट्रेड हो रहा था, तब अगर 1000 शेयर्स को खरीदने के लिए ₹100 पर एक लिमिट ऑर्डर प्लेस किया गया था, और बाद में इसे भरने के लिए 100.3 में बदला दिया गया था, तब तकनीकी रूप से इम्पैक्ट कॉस्ट 0.3 x 1000 = ₹300 होगा।
जैसे-जैसे ऑर्डर का साइज बढ़ता है, वैसे-वैसे इम्पैक्ट कॉस्ट भी बढ़ता रहता है। जिन ट्रेडर्स के ऑर्डर्स वैल्यू ज़्यादा होते हैं उन्हें दूसरे सभी चार्जेस (STT, ब्रोकरेज, एक्सचेंज ट्रांजैक्शन, आदि) की तुलना में इम्पैक्ट कॉस्ट के लिए बहुत ज़्यादा पैसा गंवाना पड़ता है।
Icebergs कैसे काम करता है?
जैसा कि नाम से पता चलता है, जब एक बड़ा ऑर्डर प्लेस किया जाता है, तब इसे छोटे ऑर्डर या लेग में डिवाइड किया जाता है। सबसे पहले केवल पेहले लेग (first leg) को ही एक्सचेंज पर प्लेस किया जाता है। यह केवल iceberg के टिप के बारे में बताता है। जब यह लेग एक्सेक्यूट हो जाता है, तब उसके बाद प्रमुख ऑर्डर का अगला लेग प्लेस किया जाता है। यह तब तक चलता रहेगा, जब तब की वांछित (desired) क्वांटिटी ट्रेड नहीं हो जातें। लेग्स की संख्या कस्टमर द्वारा तय की जाती है।
Iceberg ऑर्डर प्लेस करने के लिए इन स्टेप्स को फॉलो करें :
- ऑर्डर विंडो पर Iceberg पर क्लिक करें।
- Intraday या Overnight को सेलेक्ट करें।
- Quantity और Price एंटर करें।
- Market या Limit को सेलेक्ट करें।
- लेग्स के नंबर्स को एंटर करें और Buy या Sell पर क्लिक करें। Iceberg के प्रति लेग्स के लिए मैक्सिमम संख्या 10 होती है।
उदाहरण सिनेरियो
Nifty CE के 3000 क्वांटिटी (60 लॉट्स) के लिए आर्डर को 5 ऑर्डर्स में डिवाइड किया जा सकता है, जहाँ हर एक आर्डर में 600 क्वांटिटी होगा। लेग्स की संख्या को सेलेक्ट करके ऐसा किया जा सकता है। इस तरह, 600 के बाद जो भी आर्डर प्लेस होता है, वह तभी एक्सेक्यूट होगा जब पिछले ऑर्डर्स एक्सेक्यूट हो चुके होंगे।
क्या आप जानते है?
- चूंकि हर एक लेग को एक अलग आर्डर माना जाता है, ब्रोकरेज को अलग से चार्ज किया जाता है। यानी, अगर ऑर्डर को 5 लेग्स में डिवाइड किया जाता है, तब ब्रोकरेज ये 5 एक्सेक्यूटेड ऑर्डर्स पर लागू होंगे और वो भी अलग से। देखिए list of all charges and taxes ।
- अगर आप एक्सचेंज पर प्लेस किये गए Iceberg ऑर्डर के किसी भी लेग को कैंसिल करते हैं, तब बाक़ी बचे सभी पेंडिंग लेग जिन्हें अभी तक प्लेस नहीं किया गया हैं, उसे खुद भ खुद कैंसिल कर दिए जाते हैं। इसी तरह, अगर आप एक्सचेंज पर प्लेस किये गए Iceberg के किसी भी लेग के प्राइस को मॉडिफाई करते हैं, तब सभी पेंडिंग लेग्स का प्राइस, नए प्राइस में मॉडिफाई हो जाएगा।
- इक्विटी के लिए मिनिमम ऑर्डर वैल्यू ₹1,00,000 है और F&O के लिए 5 लॉट है।
- Iceberg ऑर्डर केवल NSE इक्विटी, F&O, करेंसी और BSE इक्विटी के लिए उपलब्ध हैं। Iceberg ऑर्डर टाइप MCX के लिए अभी उपलब्ध नहीं है।
- Iceberg का इस्तेमाल करके BSE में मार्केट और SL-M ऑर्डर को प्लेस नहीं किया जा सकता है।
- प्री-ओपन और पोस्ट-मार्केट सेशंस, Iceberg ऑर्डर और मिनट वैलिडिटी को सपोर्ट नहीं करते हैं।
- आप इक्विटी ट्रेड्स के लिए डिस्क्लोज़्ड (disclosed) क्वांटिटी फीचर का इस्तेमाल कर सकते हैं जो कि Icebergs के तरह ही काम करेगा। डिस्क्लोज़्ड (disclosed) क्वांटिटी फीचर बहुत सारे ऑर्डर्स को नहीं बनाती है और इसलिए कोई अलग से चार्ज इसके लिए नहीं लगता है। F&O ट्रेड्स के लिए डिस्क्लोज़्ड (disclosed) क्वांटिटी फीचर उपलब्ध नहीं है। देखिए What is disclosed quantity feature and how to use it?
मिनट्स में ऑर्डर की वैलिडिटी।
DAY (जब तक भर ना जाए तब तक पूरे ट्रेडिंग दिन के लिए वैलिड रहता है) और IOC (इमीडियेट या कैंसिल) ऑर्डर्स के साथ, हम एक नई मिनट वैलिडिटी फीचर की शुरुआत करने जा रहे हैं। अगर आर्डर दिए गए समय में पूरा नहीं होता है, तब आर्डर खुद ही कैंसिल हो जाए, वैसा सेट किया जा सकता है। इस पीरियड को मिनटों में सेट किया जाता है। Iceberg ऑर्डर को रेगुलर ऑर्डर के साथ मिनटों में वैलिडिटी के साथ भी प्लेस किया जा सकता है।
ऑर्डर फ्रीज़ लिमिट्स की समस्या को Icebergs दूर कर सकता है ।
एक्सचैंजेस में इक्विटी डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए maximum order (मैक्सिमम ऑर्डर) लिमिट सेट आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है होता है। देखिए Quantity freeze limits उदाहरण के लिए, एक ऑर्डर में Nifty के लॉट के लिए ज़्यादा से ज़्यादा 36 लॉट (1800 Qty) प्लेस किया जा सकता है, Bank Nifty के लिए, यह 48 लॉट (1200 Qty) होता है। यह उन ट्रेडर्स के लिए फ़ायदेमंद नहीं होता है जो बड़ी क्वांटिटी में एक्सेक्यूट करना चाहते हैं। इसके चलते उन्हें कई ऑर्डर प्लेस करना पड़ता है। Iceberg ऑर्डर के साथ, अब आप एक ही समय में 10000 या 200 लॉट या उससे ज़्यादा का Nifty के बाय आर्डर प्लेस कर सकतें है। इसका मतलब यह है की बड़े ऑर्डर के केस में कई ऑर्डर्स प्लेस करने की ज़रुरत नहीं होगी और साथ ही इम्पैक्ट कॉस्ट को भी कम करेगा।
कैसे सरकार के मजबूत हाथ ने आईओसी के पुथुवाईपे एलपीजी परियोजना में मदद की
जबकि अडानी समूह की विझिंजम बंदरगाह परियोजना विरोध में घिरी हुई है, कोच्चि के पुथुवाइप में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) का एलपीजी आयात टर्मिनल परियोजना, जिसे इसी तरह के आंदोलन का सामना करना पड़ा, जिसने इसके काम को बार-बार चौपट कर दिया, लगभग ढाई साल से बिना किसी हिचकिचाहट के आगे बढ़ रहा है।
कारण: एलडीएफ सरकार द्वारा दिसंबर 2019 में सीआरपीसी की धारा आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है 144 लागू करना, द्वीप गांव में सार्वजनिक समारोहों पर रोक लगाना। "धारा 144 IOC पुथुवाइप साइट पर 16 दिसंबर, 2019 को एक वर्ष के लिए लगाया गया था। हालाँकि, सरकार ने अभी तक क्लैंपडाउन हटाने की घोषणा नहीं की है। पुलिस बंदोबस्त साइट पर जारी है, जिससे हमें काम के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में मदद मिलती है, "नाम न छापने की शर्त पर एक आईओसी अधिकारी ने कहा।
पुथुवाइपे: धारा 144 ने काम फिर से शुरू करने में मदद की
715 करोड़ रुपये के एलपीजी आयात टर्मिनल, जिसकी कल्पना 2000 के दशक के अंत में की गई थी, में दो घटक हैं: कोचीन पोर्ट पर एलपीजी उतारने के लिए मल्टी-यूजर लिक्विड टर्मिनल (एमयूएलटी) जेट्टी और पुथुवाइप में एलपीजी स्टोरेज टर्मिनल। जबकि मल्टी के लिए प्रारंभिक परियोजना लागत 225 करोड़ रुपये तय की गई थी, आयात टर्मिनल की लागत 490 करोड़ रुपये थी।
MULT पर काम, जिसमें IOC द्वारा रसोई गैस आयात सुविधा शामिल है, इस मार्च में पुथुवाइप द्वीप पर पूरा किया गया। अधिकारियों ने कहा कि एलपीजी टर्मिनल पर काम, जो सड़क के माध्यम से मंगलुरु से एलपीजी परिवहन की आवश्यकता को समाप्त कर देगा, अगले साल की पहली छमाही में पूरा होने की उम्मीद है, पुलिस सुरक्षा के लिए धन्यवाद।
आईओसी की एलपीजी टर्मिनल परियोजना ने जनता का ध्यान तब आकर्षित किया जब 2013 में केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसे हरी झंडी दे दी, जब यूडीएफ सत्ता में थी। तब से, सीपीएम और कांग्रेस सहित निवासियों, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और राजनीतिक दलों के विरोध के कारण परियोजना को अलग-अलग आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है समय में व्यवधान का सामना करना पड़ा।
हलचल तब भी जारी रही जब 2016 में एलडीएफ सत्ता में आई। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा बुलाई गई हितधारकों की बैठक विफल रही और फरवरी 2017 में, आईओसी ने परियोजना को रोक दिया। निषेधाज्ञा लागू होने के बाद ही काम फिर से शुरू हुआ।
"पुथुवाइप विरोध बहुत स्थानीय था। इससे सरकार को उन्हें रोकने में मदद मिली," कोच्चि स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च (सीपीपीआर) के अध्यक्ष डी धनुराज ने कहा। "विझिंजम में, विरोध अधिक व्यापक हैं। एलडीएफ सरकार लोहे के हाथ का उपयोग करके स्थानीय निवासियों के क्रोध को आमंत्रित नहीं करना चाहती है, इस तथ्य को देखते हुए कि 2021 के विधानसभा चुनावों में तिरुवनंतपुरम जिले में उसका पलड़ा भारी रहा है, "उन्होंने कहा।
आईओए के मसौदा अपनाने से जुड़ी याचिका पर सात दिसंबर को सुनवाई करेगा उच्चतम न्यायालय
पीठ ने कहा, ‘‘आपकी आपत्तियों पर सुनवाई सात दिसंबर को होगी। आप उसी दिन इसके बारे में बतायें।’’
उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के संविधान के मसौदे से संबंधित आपत्तियों और मुद्दों पर सुनवाई सात दिसंबर को करेगा। आईओए की यहां आम सभा की विशेष बैठक के दौरान संविधान के मसौदे को अपनाया गया था।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने हालांकि एक अंतरिम याचिका में तत्काल सुनवाई खारिज कर दी जिसमें खेल संस्था के संविधान के मसौदे में कुछ अनधिकृत बदलाव का आरोप लगाया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘आपकी आपत्तियों पर सुनवाई सात दिसंबर को होगी। आप उसी दिन इसके बारे में बतायें।’’
आईओए ने उच्चतम न्यायालय और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) की देखरेख में तैयार अपने संविधान के मसौदे को गुरुवार को स्वीकार कर लिया लेकिन कई सदस्यों ने कहा कि शीर्ष अदालत के इसे अनिवार्य बनाने के बाद उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया।
आईओए महासचिव राजीव मेहता ने बाद में आईओसी को बताया कि संविधान के मसौदे में कुछ स्वीकृत प्रावधान सितंबर में स्विट्जरलैंड में संयुक्त बैठक में हुई सहमति से ‘काफी अलग’ थे।
आईओसी ने सितंबर में आईओए को अंतिम चेतावनी दी थी कि दिसंबर तक चुनाव करायें या फिर या निलंबन का सामना करें।
यहां आईओए की आम सभा की विशेष बैठक के दौरान कुछ सदस्यों ने मसौदा संविधान में कम से कम आधा दर्जन संशोधनों पर आपत्ति जताई और कहा कि ‘आम सभा के लोकतांत्रिक अधिकारों को पूरी तरह से छीन लिया गया।’।
दिसंबर तक चुनाव नहीं कराने की स्थिति में आईओसी से निलंबन की धमकी के साथ उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के बाद आईओए के पास अपने संविधान में बदलाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
संविधान का मसौदा उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त किये गये शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एल नागेश्वर राव ने तैयार किया और आईओसी ने पहले ही इसे मंजूरी दे दी है।
मुक़दमेबाज़ी का डर दिखा कर अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाया नहीं जा सकता
किसी निवेश के भले-बुरे पर ज़ाहिर की गई राय को अडानी समूह द्वारा मानहानि कैसे समझा जा सकता है? The post मुक़दमेबाज़ी का डर दिखा कर अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाया नहीं जा सकता appeared first on The Wire - Hindi.आईओसी एक दिन के आदेश से अलग कैसे है
किसी निवेश के भले-बुरे पर ज़ाहिर की गई राय को अडानी समूह द्वारा मानहानि कैसे समझा जा सकता है?
पिछले सप्ताह अदानी समूह ने द वायर की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख को हटाने की मांग करते हुए इसके खिलाफ 100 करोड़ रुपये का एक सिविल मानहानि का मुकदमा दायर किया. साथ ही इस लेख को अडानी समूह की तौहीन करने वाला बताते हुए इस विषय पर आगे कोई स्टोरी छापने से रोक लगाने की मांग भी की.
इस लेख में ओडिशा में अडानी समूह द्वारा समर्थित एक एलएनजी टर्मिनल परियोजना में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) जैसी सार्वजनिक कंपनियों द्वारा 49 प्रतिशत इक्विटी निवेश के फैसले की आर्थिक समझदारी पर सवाल उठाया गया है.
इसी तरह से आईओसी ने अलग से गुजरात में जीएसपीसी एलएनजी नाम के एक एलएनजी टर्मिनल में भी 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदी है. यह अडानी समूह और गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (जीएसपीसी) के बीच का एक साझा उपक्रम है.
द वायर का आलेख एक सीधा सा और किसी के भी मन में सहज तरीके से उठने वाला सवाल पूछता है: सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कंपनी को करदाताओं का पैसा किसी परियोजना की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने में क्यों खर्च करना चाहिए, जबकि वह 51 प्रतिशत हिस्सेदारी लेकर इसके पूरे प्रबंधन को अपने हाथों में ले सकती थी.
49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के बाद भी उस परियोजना का नियंत्रण निजी खिलाड़ी के हाथों में रहने देना निश्चित तौर पर यह सवाल उठाता है कि आखिर इससे सरकार या उस सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को क्या हासिल हो रहा है?
आईओसी के एक पूर्व अध्यक्ष, जो अपने नाम को उजागर करना नहीं चाहते थे, ने द वायर को बताया कि अडानी की परियोजना में किसी किस्म का प्रबंधकीय नियंत्रण लिए बगैर 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने से आईओसी को कोई रणनीतिक फायदा नहीं हो रहा है.
हमारा यह मानना है कि उनका नजरिया काफी अहमियत रखता है, क्योंकि उन्होंने आईओसी के शीर्ष पद पर काम किया है और वे भी कंपनी के हितों को उतनी ही अच्छी तरह से समझते हैं, जितनी अच्छी तरह से मौजूदा प्रबंधन समझता है.
सवाल है, किसी निवेश से होने वाले फायदों या उसकी खामियों के बारे में मात्र अपनी राय रखना इस परियोजना पर पूरा नियंत्रण रखने वाले प्राइवेट पार्टनर अडानी समूह की मानहानि करने वाला कैसे माना जा सकता है?
वैसे भी, किसी भी नजरिए से इन निवेशों के फायदे को लेकर उठने वाले सवालों का जवाब देने की जिम्मेदारी भारत सरकार या पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ही बनती है, न कि किसी और की, इसलिए इस मामले में अडानी समूह द्वारा द वायर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करना थोड़ा विचित्र है.
इसके साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) परियोजनाओं पर, खासकर अगर वे बुनियादी ढांचे के क्षेत्र की हों, मीडिया में नियमित बहसें होती रही हैं.
ऐसा इन परियोजनाओं की जटिल प्रकृति के कारण भी होता है और इस कारण भी होता है कि कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) जैसी संवैधानिक संस्थाओं के अलावा अन्य सरकारी ऑडिटरों द्वारा भी इनकी जांच नियमित तौर पर और अनिवार्य तरीके से होती है.
हाल के वर्षों में सड़कें, हवाई अड्डे, तेल की खोज और बुनियादी ढांचे से संबंधित पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप परियोजनाओं पर मीडिया में काफी कुछ लिखा गया है और उन पर अच्छी-खासी बहसें भी चली हैं.
इसलिए हमारा यह मानना है कि सार्वजनिक तेल कंपनियों के निवेश को लेकर उठाए गए कुछ सवालों के जवाब में अडानी समूह द्वारा दायर किया गया सिविल मानहानि का मुकदमा इस विषय पर विचार-विमर्श और बहसों को हतोत्साहित करने की एक कोशिश है.
दिलचस्प यह है कि मीडिया का गला घोंटने की यह कोशिश एक ऐसे समय में हुई है जब कई बड़े कॉरपोरेट समूह भारी कर्जे में डूबे हुए हैं और बैंकों से पैसा हासिल करने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं.
ऐसा लगता है कि नकद की ढेर पर बैठी सार्वजनिक कंपनियां, खासकर तेल क्षेत्र की कंपनियां निजी क्षेत्र के निवेश की कमी की भरपाई कर रही हैं और कई मामलों में ऐसे निवेश निजी क्षेत्र के साथ साझीदारी में हो रहे हैं.
लेकिन हमारे द्वारा उठाया जाने वाला सवाल यह है कि आखिर यह निवेश किस तरह की शर्तों पर हो रहा है? यह एक बेहद जायज सवाल है. इसे मानहानि करनेवाला करार देना, बड़ी रकम वाले मानहानि के मुकदमों से डराने की नई रणनीति का ही एक और उदाहरण नजर आता है.
अंग्रेजी में जिसे स्लैप- (स्ट्रैटेजिक लॉ सूट अगेंस्ट पब्लिक पार्टिसिपेशन यानी जन भागीदारी को रोकने के लिए रणनीतिक मुकदमेबाजी) की संज्ञा दी गई है.
मीडिया को डराने और सरकार और बड़े व्यावासायिक सवालों के बीच सांठ-गांठ को लेकर असहज करने वाले सवालों को सार्वजनिक बहसों से दूर रखने के लिए एक हथियार के तौर पर ‘स्लैप’ का इस्तेमाल पहले की तुलना में आज कहीं ज्यादा संख्या में किया जा रहा है.
मीडिया द्वारा करदाताओं के पैसे का पब्लिक-प्राइवेट परियोजनाओं में निवेश करने को लेकर सरकार से जवाब मांगे जाने पर कॉरपोरेट समूहों द्वारा मानहानि का मुकदमा दायर करना, निस्संदेह बेहद हैरान करने वाला है.
मीडिया के पास जनहित से जुड़े मामलों में सरकार और कॉरपोरेट घरानों से सवाल पूछने का पूरा अधिकार है. कभी-कभी कॉरपोरेटों के द्वारा रिपोर्टिंग की वैसी छोटी-मोटी चूकों को काफी तूल दिया जाता है, जो वास्तव में मीडिया द्वारा उठाए गए असली सवाल का केंद्रीय हिस्सा नहीं होता.
इस संदर्भ में दो दिन पहले एक मानहानि के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी प्रासंगिक है. शीर्ष अदालत ने मौखिक तौर पर इस बात पर जोर दिया कि मीडिया को अभिव्यक्ति की आजादी का पूरी तरह से इस्तेमाल करना चाहिए और किसी घोटाले या उसमें शामिल लोगों की रिपोर्टिंग के दौरान हुई छोटी-मोटी चूकों को मानहानि करने वाला नहीं कहा जा सकता है.
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