सांकेतिक फोटो :Pixabay

विदेशी मुद्रा की कीमतें

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रुपये की गिरती कीमत और आरबीआई की भूमिका

हाल ही में रुपये की कीमत, डॉलर के मुकाबले और अधिक गिर गई है। इसका कारण है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अल्ट्रा-हॉकिश रेट में बढ़ोत्तरी जारी रखी है, जिससे डॉलर दो दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।

भारतीय मुद्रा की यह गिरावट इस कारण भी है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा बाजार में एक प्रकार से हस्तक्षेप रखा है। इसने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले वर्ष के मुकाबले 14% की कमी की है। हालांकि, भारत बढ़ी हुई ऊर्जा-कीमतों के साथ भी नौ महीने के आयात को एक विदेशी मुद्रा कवर के साथ रखने की नियत रखता है, फिर भी बाजार अपने रिजर्व की गिरावट पर नजर रखेंगे, क्योंकि 2022-23 में चालू खाता घाटा, पिछले वर्ष के विदेशी मुद्रा की कीमतें 4% की तुलना में लगभग तिगुना है।

विनिमय दर प्रबंधन के व्यापार लाभ मिश्रित हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरने के बावजूद निर्यात में तेजी नहीं आ रही है, क्योंकि व्यापारजनित विनिमय दर सपाट बनी हुई है। मांग की कमी के दौर में फ्लोटिंग रुपये के साथ निर्यात प्रतिस्पर्धा को बनाए नहीं रखा जा सकता है। साथ ही, व्यापार विखंडन और आपूर्ति की बाधा भी है।

एक डॉलर को खूंटी मानकर पकड़े रहने से आयातित मुद्रास्फीति सीमित हो सकती है, क्योंकि दुनिया का अधिकांश ऊर्जा व्यापार उस मुद्रा के इर्द-गिर्द ही घूम विदेशी मुद्रा की कीमतें रहा है। भारत अपने ऊर्जा आयात के लिए स्थानीय मुद्रा व्यापार विकसित करने की भी कोशिश कर रहा है।

भारत उन देशों की बढ़ती सूची में से एक है, जो निरंतर डॉलर की मजबूती का मुकाबला करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहे हैं। गिरती हुई मुद्रा से बढ़ी मुद्रास्फीति को ब्याज दरों के एडजस्टमेन्ट से भी ठीक किया जा सकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि रुपये की कीमत को एक सुरक्षित स्तर तक रखने के लिए आरबीआई को अधिक आक्रामक मौद्रिक नीति की आवश्यकता होगी। आरबीआई के रुख को देखते हुए ऐसा लगता है कि फिलहाल रुपये का गिरना जारी रहेगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 24 सितम्बर, 2022

गिरावट की मुद्रा

एक बार फिर डालर के मुकाबले रुपए की कीमत में चिंताजनक गिरावट दर्ज हुई है। इससे स्वाभाविक ही भारत को महंगाई के मोर्चे पर लड़ने में कठिनाई पैदा हो गई है।

गिरावट की मुद्रा

सांकेतिक फोटो :Pixabay

विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में एक डालर की कीमत इक्यासी रुपए नौ पैसे आंकी गई, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपए के अवमूल्यन के पीछे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज दरों में सख्ती, डालर का मजबूत होना और भारत में निवेशकों का भरोसा कमजोर होना माना जा रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए अपनी मौद्रिक नीति में सख्ती का रुख अपनाए हुए है, जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम भी नजर आया है।

मगर रुपए की कीमत में गिरावट महंगाई से पार पाने और निवेश आकर्षित करने की दिशा में चुनौतियां पेश करेगी। भारत पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य तेलों के मामले में बड़े पैमाने पर दूसरे देशों पर निर्भर है।

जब रुपए का अवमूल्यन होता है तो वस्तुओं के आयात पर अधिक खर्च करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि उन वस्तुओं की कीमतें घरेलू बाजार में बढ़ जाती हैं। रुपए के अवमूल्यन से पार पाने के लिए आयात के मुकाबले निर्यात बढ़ाने की रणनीति अपनानी पड़ती है। मगर निर्यात के मामले में भारत अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहा।

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रुपए के अवमूल्यन का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है। भारतीय शेयर बाजार का रुख कमजोर बना हुआ है, विदेशी निवेशकों में उत्साह नजर नहीं आ रहा। इसके चलते लगातार विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है। फिर सबसे बड़ी चुनौती चालू खाता घाटे से पार पाने का होता है।

भारत का चालू खाता घाटा पहले ही चिंताजनक स्तर पर है, रुपए के अवमूल्यन से इसके और बढ़ने की आशंका है। सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक विकास दर की भागीदारी काफी नीचे चल रही है। सरकार उसे रफ्तार देने और निवेश आकर्षित करने के लिए करों में कटौती, कर्ज माफी, उद्योग-धंधे लगाने संबंधी नियम-कायदों और श्रम कानूनों को लचीला बनाने का प्रयास करती रही है।

मगर इसका असर नजर नहीं आ रहा। ऐसे में रुपए के अवमूल्यन से एक बार फिर कच्चे तेल की खरीद और अंतत: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होगी। इसका असर उद्योगों की लागत पर पड़ेगा। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। अभी रिजर्व बैंक ने माना है कि अगर महंगाई छह फीसद तक रहती है, तो अर्थव्यवस्था विदेशी मुद्रा की कीमतें में बेहतरी की उम्मीद बलवती होगी, मगर खुदरा महंगाई इस स्तर पर भी नहीं पहुंच पा रही।

आगे के दिनों में महंगाई पर काबू पाने की संभावना भी धुंधली बनी हुई है, क्योंकि इस बार बरसात पर निर्भर फसलों का उत्पादन लक्ष्य से काफी कम होने की उम्मीद जताई जा रही है। असमान वर्षा ने आगामी फसलों के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है। ऐसे में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाना भी कठिन हो सकता है।

पहले ही सरकार कुछ जिन्सों के निर्यात पर रोक और कुछ पर आयात शुल्क घटा कर महंगाई को काबू में करने का प्रयास कर चुकी है। मगर यह तरीका लंबे समय तक नहीं आजमाया जा सकता।

सरकार दावा तो करती है कि कोरोना काल के बाद निर्यात में तेजी आई है और लक्ष्य से अधिक निर्यात हुआ है, मगर हकीकत सामने है कि रुपए विदेशी मुद्रा की कीमतें का अवमूल्यन हो रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद के लिए अधिक से अधिक जगह घेरने का प्रयास किया जाए।

गिरते रुपया को संभालने में जुटा RBI, विदेशी मुद्रा भंडार पर दिख रहा असर!

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक15 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 7.541 अरब डॉलर घटकर 572.712 अरब डॉलर रह गया। स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 83 करोड़ डॉलर घटकर 38.356 अरब डॉलर रह गया।

गिरते रुपया को संभालने में जुटा RBI, विदेशी मुद्रा भंडार पर दिख रहा असर!

भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से रुपया की गिरावट को रोकने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, इसका असर देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दिख रहा है। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार में एक बार फिर गिरावट आई है। वहीं, रुपया की बात करें तो शुक्रवार को अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 5 पैसे की गिरावट के साथ 79.90 रुपये पर बंद हुआ।

कैसी रही रुपया की चाल: भारतीय करेंसी रुपया कमजोर खुला और कारोबार के अंत में यह पिछले बंद भाव के मुकाबले पांच पैसे की गिरावट के साथ 79.90 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान रुपया 79.86 के दिन के उच्चतम स्तर और 79.92 के निम्नतम स्तर तक गया।

विदेशी मुद्रा भंडार का हाल: आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक15 जुलाई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 7.541 अरब डॉलर घटकर 572.712 अरब डॉलर रह गया। इससे पहले के सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 8.062 अरब डॉलर घटकर 580.252 अरब डॉलर रह गया था। स्वर्ण भंडार का मूल्य भी 83 करोड़ डॉलर घटकर 38.356 अरब डॉलर रह गया।

रुपया में गिरावट की वजह: विदेशी बाजारों में डॉलर के मजबूत होने से निवेशकों की निवेश धारणा प्रभावित हुई। हालांकि, घरेलू शेयर बाजारों की तेजी ने रुपये की गिरावट पर अंकुश लगा दिया। जानकारों ने कहा कि घरेलू बाजारों में तेजी, एफआईआई निवेश और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी ने रुपये को समर्थन दिया। लेकिन, डॉलर की मजबूती ने तेजी पर रोक लगा दी।

रुपये के मोर्चे पर लगा झटका, डॉलर के मुकाबले गिरी भारतीय करेंसी

सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 52 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.26 पर खुला.

रुपये के मोर्चे पर लगा झटका, डॉलर के मुकाबले गिरी भारतीय करेंसी

रेपो दरों में बढ़ोतरी के साथ साथ कर्ज दरों में भी बढ़त देखने को मिली है और ग्राहकों की होम लोन ईएमआई बढ़ गई है. हालांकि इसका दूसरा पहलू ये भी है कि जिन लोगों के पास अतिरिक्त रकम हैं उनके लिए अब बैंक में पैसा जमा करना पहले से ज्यादा फायदे सौदा बन गया है. दरअसल कई बैंकों ने अपने ग्राहकों के लिए जमा दरों में बढ़ोतरी कर दी है. यानि रेपो दरें बढ़ाने का नुकसान के साथ फायदा भी हो रहा है. अगर आप भी किसी बैंक में पैसा जमा कराने की सोच रहे हैं तो हम आपको बताते हैं कि रेपो में बदलाव के बाद एफडी में बढ़ोतरी के इन नए दौर में कहां पैसा लगाना आपके लिए ज्यादा फायदे मंद विदेशी मुद्रा की कीमतें होगा.

घरेलू बाजार में कमजोर रुख और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी की वजह से सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 52 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.26 पर खुला. बाद में रुपये का शुरुआती फायदा गुम हो गया और कारोबार के आखिर में यह 52 पैसे की गिरावट के साथ 81.85 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. यह छह हफ्ते से ज्यादा समय में रुपये में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है.

आज रुपये का कैसा रहा ट्रेंड?

कारोबार के दौरान रुपये ने 81.25 के ऊंचे स्तर और 81.82 के निचले स्तर को छुआ. इससे पिछले कारोबारी सत्र में रुपया सात पैसे की गिरावट के साथ 81.33 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. इस बीच दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दिखाने वाला डॉलर सूचकांक 0.10 फीसदी की गिरावट के साथ 104.44 रह गया है. वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 1.82 फीसदी बढ़कर 87.13 डॉलर प्रति बैरल हो गया है.

बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 33.9 अंक घटकर 62,834.60 अंक पर बंद हुआ. शेयरखान बाय बीएनपी परिबा के शोध विश्लेषक अनुज चौधरी ने कहा कि कमजोर बाजार और कच्चे तेल के दाम ऊंचे रहने की वजह से सोमवार को रुपये में गिरावट आई है. हालांकि, कमजोर डॉलर की वजह से रुपये की गिरावट पर कुछ अंकुश लगा है. शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) पूंजी बाजार में शुद्ध लिवाल रहे और उन्होंने शुक्रवार को 214.76 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर खरीदे.

रुपये का आप पर क्या होगा असर?

आपको बता दें कि रुपये में तेजी और गिरावट का असर आम जन जीवन पर देखा जा सकता है. हाल के दिनों में महंगाई दर के रूप में यह देखा भी जा रहा है. रुपये में कमजोरी से अंतररराष्ट्रीय बाजार से आयात की गई कमोडिटी में किसी भी कमी का असर घट जाती है.

इस वजह से कच्चे तेल में गिरावट का फायदा पाने में और समय लगेगा, क्योंकि कीमतों में गिरावट के बीच रुपये में कमजोरी से आयात बिल बढ़ जाएगा और इससे सरकारी खजाने पर बोझ बना रहेगा.

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