फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस क्या हैं? निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें

हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. आज हम वित्तीय निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है.

फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस क्या हैं? निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें

हर कोई अपने निवेश से मुनाफा कमाना चाहता है. मार्केट (बाजार) में निवेश के कई विकल्प मौजूद हैं. आज हम वित्तीय साधनों (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) के बारे में बात करेंगे, जिन्हें फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के तौर पर जाना जाता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के जरिए न केवल शेयरों में, बल्कि सोने, चांदी, एग्रीकल्चर कमोडिटी और कच्चे तेल (क्रड ऑयल) सहित कई अन्य डेरिवेटिव सेगमेंट में भी कारोबार करके पैसा कमाया जा सकता है. फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस को समझने से पहले उस मार्केट को समझना जरूरी है, जिसमें ये प्रोडक्ट्स खरीदे और बेचे जाते हैं.

इन दोनों प्रोडक्ट का डेरिवेटिव मार्केट में कारोबार होता है. ऐसे कई प्लेटफॉर्म हैं, जहां से ये ट्रेड किए जा सकते हैं. अगर आप भी इसमें शुरुआत करना चाहते हैं, तो 5paisa.com (https://bit.ly/3RreGqO) वह प्लेटफॉर्म है जो डेरिवेटिव ट्रेडिंग में आपका सफर शुरू करने में मदद कर सकता है.

डेरिवेटिव्स क्या होते हैं?

डेरिवेटिव वित्तीय साधन (फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट) हैं, जो एक अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) या बेंचमार्क से अपनी कीमत (वैल्यू) हासिल करते हैं. उदाहरण के लिए, स्टॉक, बॉन्ड, करेंसी, कमोडिटी और मार्केट इंडेक्स डेरिवेटिव में इस्तेमाल किए जाने वाले कॉमन एसेट हैं. अंतर्निहित परिसंपत्ति (अंडरलाइंग एसेट) की कीमत बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलती रहती है. मुख्य रूप से चार तरह के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट हैं – फ्यूचर (वायदा), फॉरवर्ड, ऑप्शन और स्वैप.

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (वायदा अनुबंध) क्या है?

फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदार (या विक्रेता) भविष्य में एक पूर्व निर्धारित तिथि पर एक पूर्व निर्धारित मूल्य पर संपत्ति खरीद या बेच सकता है. वायदा कारोबार (फ्यूचर ट्रेडिंग) करने वाले दोनों पक्ष अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं. इन अनुबंधों का स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है. वायदा अनुबंध की कीमत अनुबंध खत्म होने तक मार्केट के हिसाब से बदलती रहती है.

एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (विकल्प अनुबंध) क्या है?

ऑप्शन एक अन्य तरह का डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है, जो खरिदार (या विक्रेता)को भविष्य में एक खास कीमत पर एक अंतर्निहित परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन उस तारीख पर शेयर खरीदने या बेचने की कोई बाध्यता नहीं होती है. इस स्थिति में अगर जरूरी हो, तो वह किसी भी समय ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (विकल्प अनुबंध) से बाहर निकल सकता है. लेकिन फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट (वायदा अनुबंध) में ऐसा करना संभव नहीं है. आपको फ्यूचर डिलीवरी के समय कॉन्ट्रैक्ट (अनुबंध) पूरा करना होगा. दो तरह के ऑप्शन (विकल्प) हैं. पहला है कॉल ऑप्शन और दूसरा है पुट ऑप्शन. कॉल ऑप्शन संपत्ति (एसेट) खरीदने का अधिकार देता है जबकि पुट ऑप्शन बेचने का अधिकार देता है.

समझें IPO का पूरा गणित, ऐसे कर सकते हैं निवेश, बस ध्यान रखें ये 7 बातें!

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वर्ष 2021 को अगर IPO का साल कहें तो कुछ गलत नहीं होगा. अभी तक मार्केट में करीब 40 से ज्यादा नए IPO लॉन्च हो चुके है, और एक बड़ी लंबी लाइन बाकी है. हालत ये है कि पिछले कुछ हफ्तों में 4 IPO तक एक साथ लॉन्च हुए. अब ऐसे में आपके मन में सवाल होगा कि इनमें निवेश कैसे करें, क्या होता है IPO का गणित, तो बस इसके लिए आपको जाननी है ये 7 बातें.
(Photo : Getty)

IPO असल में क्या है?

सबसे पहले आपको ये जानना होगा कि IPO होता क्या है? देश में कई प्राइवेट कंपनियां काम कर रही हैं. इनमें कई कंपनियां परिवार या कुछ शेयर होल्डर आपस में मिलकर चलाते हैं. जब इन कंपनियों को पूंजी की जरूरत होती है तो ये खुद को शेयर बाजार में लिस्ट कराती हैं निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें और इसका सबसे कारगर तरीका है IPO यानी Initial Public Offer जारी करना.
(Photo : Getty)

IPO में आम जनता बनती है मालिक

शेयर मार्केट में लिस्ट होने के लिए प्राइवेट कंपनी जो IPO लाती है, असल में वो बड़ी संख्या में आम लोगों, निवेशकों और अन्य को कंपनी के शेयर अलॉट करती है. अगर आसान भाषा में समझें तो अब उस कंपनी का मालिक सिर्फ उसे चलाने वाला परिवार या शेयर होल्डर नहीं होते बल्कि वो सब होते हैं जिनको IPO में शेयर अलॉट होता है.
(File Photo)

IPO में अलॉट हुए शेयर की खरीद-फरोख्त

IPO में जो शेयर अलॉट होते हैं, वो आमतौर पर BSE या NSE जैसे स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होते हैं. जहां लोग इन शेयरों की आराम से खरीद बिक्री कर सकते हैं. अब समझते हैं कि IPO लाया कैसे जाता है और किसी निवेशक के हितों की सुरक्षा होती है.
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ऐसे लाती है कोई कंपनी IPO

कोई कंपनी अगर IPO लाने का निर्णय करती है तो उसे मार्केट रेग्युलेटर SEBI के नियमों का पालन करना होता है. इन सब नियमों पर खरा उतरने के लिए कंपनी एक मर्चेंट बैंकर नियुक्त करती है, ये बैंकर सेबी में रजिस्टर्ड होता है और वही IPO से जुड़े सारे कंप्लायंस पूरे करके फिर IPO के लिए आवेदन करता है.
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क्या होता है DRHP

जब कोई कंपनी IPO लाती है तो वो सेबी के पास आवेदन करते समय कुछ दस्तावेज जमा कराती है. इसे लोग Draft Red Herring Prospectus (DRHP) नाम से भी जानते हैं. किसी भी कंपनी के IPO का DRHP असल में उस कंपनी, उसके शेयरधारक, उसकी वित्तीय हालत, कंपनी के कामकाज, उसके कानूनी पचड़ों, उस पर कर्ज, IPO से मिलने वाले पैसे के यूज, उससे जुड़े जोखिम वगैरह की जानकारी देता है. सेबी इसका असेसमेंट करती है और अगर सब सही लगता है तभी कंपनी को IPO लाने की अनुमति मिलती है.
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अनुमति मिलने के बाद IPO में आती हैं बोलियां

सेबी से IPO लाने की मंजूरी मिलने के बाद कंपनी अपने शेयरों के लिए बोलियां मंगवाती है. इसमें अलग-अलग तरह के निवेशकों जैसे कि रिटेल, इन्स्टीट्यूशनल के लिए अलग-अलग शेयर रिजर्व रखे जाते हैं. आम तौर पर किसी भी कंपनी का IPO तीन दिन के लिए खुलता है. अब समझते हैं कि IPO में निवेश कैसे कर सकते हैं.
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IPO में निवेश के लिए चाहिए Demat Account

किसी निवेशक को अगर IPO में निवेश करना है तो सबसे पहले उसके पास एक Demat Account होना चाहिए. Demat Account आप किसी भी ब्रोकिंग फर्म से खोल सकते हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स की राय है कि हमेशा Demat Account एक जानी-मानी ब्रोकिंग फर्म से खोलना चाहिए. अब लोगों को शेयर अलॉटमेंट पेपर फॉर्म में नहीं बल्कि Demat फॉर्म में होता है, इसलिए IPO में निवेश के लिए Demat Account होना अनिवार्य है. Demat Account में ही आपके शेयर अलॉट होते हैं.
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पेमेंट करना होता है डिजिटल

IPO में निवेश करने के लिए अब आप कोई चेक या कैश पेमेंट नहीं कर सकते हैं. आपके Demat Account से एक खाता लिंक होता है. इसी खाते से आपके IPO के सारे लेनदेन होते हैं. जब तक आपको शेयर अलॉट निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें नहीं हो जाते तब तक खाते में उतनी रकम ब्लॉक रहती है. हर IPO के लिए कंपनी शेयर का एक इश्यू प्राइस और लॉट तय करती है. एक रिटेल इन्वेस्टर एक बार में 2 लाख तक का निवेश ही IPO में कर सकता है.
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ऐसे होते हैं शेयर अलॉट

अब अगर आपने IPO में निवेश कर दिया है तो शेयर का अलॉटमेंट IPO बंद होने के बाद होता है. IPO बंद होने के बाद सभी बिड्स का असेसमेंट होता है और अगर कोई बिड अवैध होती है तो शेयर अलॉट नहीं होता. अगर किसी IPO को कुल जारी शेयर के मुकाबले कम शेयरों या उतने ही शेयरों की बोली मिलती है तो सभी इन्वेस्टर को उनकी बोली के मुताबिक शेयर अलॉट हो जाते हैं. वहीं जब कोई IPO ओवर सब्सक्राइब्ड होता है तो शेयरों का अलॉटमेंट प्रो-राटा बेस पर होता है. ये आपकी बोली से कम भी हो सकते हैं.
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Investment Tips : विदेशी शेयर बाजार में पैसा लगाने से पहले समझें जरूरी बातें, फिर यूं करें शुरुआत

विदेशी बाजार में पैसा लगाने से पहले कुछ जरूरी बातें जरूर समझ लें.

विदेशी बाजार में पैसा लगाने से पहले कुछ जरूरी बातें जरूर समझ लें.

निवेशक जागरूक हुए हैं और डायवर्सिफिकेशन के लिए विदेशों बाजारों में पैसा लगाना पसंद कर रहे हैं. आरबीआई के आंकड़ों को देख . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 24, 2022, 17:30 IST

हाइलाइट्स

भारत के लोगों का विदेशी बाजारों में निवेश लगाता बढ़ रहा है.
तकनीक ने ओवरसीज़ निवेश करना काफी आसान बना दिया है.
भारत में कई म्यूचुअल फंड हाउस विदेशी निवेश का विकल्प मुहैया कराते हैं.

नई दिल्ली. निवेशक इन दिनों विदेशी शेयरों में भी निवेश कर रहे हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के हिसाब से 2021-22 में भारतीयों ने 19,611 मिलियन डॉलर का निवेश विदेशी बाजारों में किया है. इससे पिछले साल यह महज 12,684 मिलियन डॉलर था.

भारत सरकार की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत एक भारतीय एक वित्त वर्ष में 2,50,000 (ढाई लाख) डॉलर विदेश भेज सकता है. रिजर्व बैंक ने समय के साथ इस सीमा में बढ़ोतरी की है. साल 2004 में जब यह स्कीम शुरू हुई थी, तब इसकी सीमा महज 25 हजार डॉलर थी. म्यूचुअल फंड में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश करना आसान हो गया है. इसका प्रोसेस कुछ यूं है…

यहां एक महत्वपूर्ण बात ये है, चूंकि आपने भारतीय रुपये में निवेश किया है तो यह निवेश LRS के तहत कवर नहीं होते हैं. ACE MF के आंकड़ों को देखा जाए तो 15 अक्टूबर तक ऐसी 63 स्कीमें बाजार में मौजूद थीं, जो विदेशों में निवेश कराती हैं. इनमें निवेश लगातार बढ़ रहा है.

विदेशों में निवेश करना आसान
हेक्सागन वेल्थ के हेक्सागन कैपिटल एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक श्रीकांत भागवत कहते हैं कि इसका एक बड़ा कारण जागरूकता का बढ़ा है. भागवत मनीकंट्रोल के सिंपली सेव पॉडकास्ट में बतौत मुख्य अतिथि शामिल हुए थे. उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में, कई मंच सामने आए हैं, जिससे भारतीय निवेशकों के लिए न केवल विदेशों में निवेश करना आसान हो गया है, बल्कि वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के विकास में भाग लेना भी संभव हो गया है, जिनके उत्पादों और ऑफरिंग्स का उपयोग हम लगभग हर दिन करते हैं, जैसे कि Apple, Alphabet (Google), Facebook इत्यादि. भागवत कहते हैं, “इन सबसे ऊपर, इकोसिस्टम की उपलब्धता के साथ हमने पिछले एक दशक में अमेरिकी बाजार में एक शानदार तेजी देखी है, जिसने हर किसी का ध्यान खींचा है.”

कैसे लगाएं विदेशी बाजारों में पैसा
श्रीकांत भागवत ने बताया कि आपको डायवर्सिफिकेशन को ध्यान में रखना चाहिए, न कि अतिरिक्त पैसा बनाने के बारे में. और यदि आप डायवर्सिफिकेशन पर ध्यान केंद्रित रखते हैं तो आपको सभी जियोग्राफिक्स को देखना होगा. आप सिर्फ अमेरिकी इक्विटी बाजारों को ही क्यों देख रहे हैं? दुनियाभर में कई अच्छे बिजनेस हैं. तो आपको सभी बाजारों को देखना चाहिए.निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें

यदि आप कंपनियों के बारे में रिसर्च कर सकते हैं तो अच्छी कंपनियां खोजकर सीधे उनके स्टॉक लेने चाहिएं. परंतु यदि आप नहीं कर सकते हैं तो आपको पैसिवली मैनेज्ड (इंडेक्स) फंड्स पर फोकस करना चाहिए. निवेश करते समय गलती की गुंजाइश नहीं होती. हर गलती का बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है. यदि आप पहली बार निवेश कर रहे हैं तो सीधा विदेशों बाजारों पर ध्यान न लगाएं. आपको पहले भारतीय बाजारों में मौजूद म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना चाहिए. जैसे-जैसे आपकी समझ बढ़ेगी, आप विदेशों के इंडेक्स को समझने लगेंगे और वहां निवेश करना आपके लिए आसान हो जाएगा. अपने पोर्टफोलियो का 10-15 फीसदी पैसा विदेशी बाजारों में लगाना चाहिए.

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निवेश के मंत्र 76: करना चाहते हैं शेयर बाजार में निवेश? तो फायदे में रहने के लिए जानिए इन फंडामेंटल्स के बारे में

निवेश

कम उम्र में ट्रेडिंग शुरू करना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह वित्तीय अनुशासन लाता है और पर्याप्त बचत के साथ भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार करता है। ज्ञान की कमी के कारण लंबे समय तक लोगों में शेयर बाजार में निवेश करने को लेकर हिचकिचाहट थी। उन्हें पारंपरिक दृष्टिकोण का ही पता था जिसमें उन्हें शेयर खरीदने या बेचने के लिए स्टॉक ब्रोकर के पीछे जाना पड़ता था। इस प्रयास में भारी-भरकम ब्रोकरेज फीस और अन्य छिपी लागत भी हावी थी। अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं और आपको इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है, तो ये खबर आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। हम आपको कुछ ऐसे अनुपातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप आसानी से शेयर का मूल्यांकन कर सकेंगे।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (पीई)
किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू का पता लगाने के लिए पीई रेश्यो का इस्तेमाल होता है। यह शेयर की कीमत और शेयर से आय का अनुपात होता है। मालूम हो कि शेयर से आय को ईपीएस भी कहते हैं। आसान भाषा में समझें, तो इसका अर्थ है अर्निंग प्रति शेयर। यह एक ही सेक्टर में दो कंपनियों के बीच चयन में मददगार होता है।
पी/ई = (प्रति शेयर मूल्य/प्रति शेयर आय)

पीईजी अनुपात
पीईजी अनुपात का उपयोग कंपनी की आय में वृद्धि को ध्यान में रखकर शेयर के मूल्य को खोजने में किया जाता है। यह पीई की तुलना में ज्यादा उपयोगी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पीई कंपनी की विकास निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें दर को अनदेखा कर देता है, लेकिन पीईजी अनुपात में ऐसा नहीं है।
पीईजी अनुपात = (पीई अनुपात/आय में अनुमानित वार्षिक वृद्धि)

प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात को कंपनी का शुद्ध संपत्ति मूल्य भी कहा जाता है। आसान भाषा में समझें, तो यह कुल संपत्ति माइनस अमूर्त संपत्ति और देनदारियों के रूप में गणना कर निकलता है। जिन कंपनियों का प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात कम होता है, उन्हें कम मूल्यवान माना जाता है।
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात = (प्रति शेयर बाजार मूल्य/प्रति शेयर बुक वैल्यू)

प्रति शेयर आय (ईपीएस)
प्रति शेयर आय (ईपीएस) प्रत्येक शेयर के लिए आवंटित कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है। यह कंपनी की लाभप्रदता के संकेतक के रूप में कार्य करता है। प्रति शेयर आय एक वित्तीय अनुपात है, जो शुद्ध आमदनी को आम में विभाजित करता है। मालूम हो कि प्रति शेयर आय बढ़ाने वाली कंपनियों के शेयर को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है।
ईपीएस = (शुद्ध आय/कुल शेयर)

रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई)
रिटर्न ऑन इक्विटी यानी इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) दर्शाता है कि कंपनी शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कितनी अच्छी है। यह शेयरधारक को इक्विटी के फीसदी के रूप में दी गई शुद्ध आय की राशि है। अक्सर निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे उन्हीं कंपनियों के शेयरों में निवेश करें, जिनका पिछले तीन सालों का औसत आरओई ब्याज दर और महंगाई दर की कुल राशि से ज्यादा है।
आरओई = (शुद्ध आय/शेयरधारकों का कुल फंड)

कम उम्र में ट्रेडिंग शुरू करना एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि यह वित्तीय अनुशासन लाता है और पर्याप्त बचत के साथ भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के लिए तैयार करता है। ज्ञान की कमी के कारण लंबे समय तक लोगों में शेयर बाजार में निवेश करने को लेकर हिचकिचाहट थी। उन्हें पारंपरिक दृष्टिकोण का ही पता था जिसमें उन्हें शेयर खरीदने या बेचने के लिए स्टॉक ब्रोकर के पीछे जाना पड़ता था। इस प्रयास में भारी-भरकम ब्रोकरेज फीस और अन्य छिपी लागत भी हावी थी। अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं और आपको इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है, तो ये खबर आपके लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। हम आपको कुछ ऐसे अनुपातों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप आसानी निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें से शेयर का मूल्यांकन कर सकेंगे।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (पीई)
किसी कंपनी के शेयर की वैल्यू का पता लगाने के लिए पीई रेश्यो का इस्तेमाल होता है। यह शेयर की कीमत और शेयर से आय का अनुपात होता है। मालूम हो कि शेयर से आय को ईपीएस भी कहते हैं। आसान भाषा में समझें, तो इसका अर्थ है अर्निंग प्रति शेयर। यह एक ही सेक्टर में दो कंपनियों के बीच चयन में मददगार होता है।

पी/ई = (प्रति शेयर मूल्य/प्रति शेयर आय)

पीईजी अनुपात
पीईजी अनुपात का उपयोग कंपनी की आय में वृद्धि को ध्यान में रखकर शेयर के मूल्य को खोजने में किया जाता है। यह पीई की तुलना में ज्यादा उपयोगी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पीई कंपनी की विकास दर को अनदेखा कर देता है, लेकिन पीईजी अनुपात में ऐसा नहीं है।

पीईजी अनुपात = (पीई अनुपात/आय में अनुमानित वार्षिक वृद्धि)

प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात को कंपनी का शुद्ध संपत्ति मूल्य भी कहा जाता है। आसान भाषा में समझें, निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें तो यह कुल संपत्ति माइनस अमूर्त संपत्ति और देनदारियों के रूप में गणना कर निकलता है। जिन कंपनियों का प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात कम होता है, उन्हें कम मूल्यवान माना जाता है।
प्राइस टू बुक वैल्यू अनुपात = (प्रति शेयर बाजार मूल्य/प्रति शेयर बुक वैल्यू)

प्रति शेयर आय (ईपीएस)
प्रति शेयर आय (ईपीएस) प्रत्येक शेयर के लिए आवंटित कंपनी के लाभ का हिस्सा होता है। यह कंपनी की लाभप्रदता के संकेतक के रूप में कार्य करता है। प्रति शेयर आय एक वित्तीय अनुपात है, जो शुद्ध आमदनी को आम में विभाजित करता है। मालूम हो कि प्रति शेयर आय बढ़ाने वाली कंपनियों के शेयर को निवेश के लिए बेहतर माना जाता है।
ईपीएस = (शुद्ध आय/कुल शेयर)

रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई)
रिटर्न ऑन इक्विटी यानी इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) दर्शाता है कि कंपनी शेयरधारकों को पुरस्कृत करने में कितनी अच्छी है। यह शेयरधारक को इक्विटी के फीसदी के रूप में दी गई शुद्ध आय की राशि है। अक्सर निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे उन्हीं कंपनियों के शेयरों में निवेश करें, जिनका पिछले तीन सालों का औसत आरओई ब्याज दर और महंगाई दर की कुल राशि से ज्यादा है।
आरओई = (शुद्ध आय/शेयरधारकों का कुल फंड)

Mutual Funds: म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए अपनाएं यह तरीका, हर महीने ₹15 हजार के निवेश से बन जाएंगे करोड़पति!

15×15×15 नियम से म्यूचुअल फंड में निवेश करके आप करोड़पति बन सकते हैं.

15×15×15 नियम से म्यूचुअल फंड में निवेश करके आप करोड़पति बन सकते हैं.

अगर आप भी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं या इसमें निवेश करना चाहते हैं तो इसके लिए 15×15×15 के नियम का पालन करके आप कर . अधिक पढ़ें

  • News18 हिंदी
  • Last Updated : December 11, 2022, 15:56 IST

हाइलाइट्स

15×15×15 का नियम म्यूचुअल फंड में निवेश करके ज्यादा रिटर्न लेने का एक आसान तरीका है.
लंबी अवधि के निवेश में आपको 12 फीसदी का रिटर्न आराम से मिल जाता है.
एसआईपी में निवेश करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें आपको चक्रवृद्धि ब्याज मिलता है.

नई दिल्ली. म्यूचुअल फंड निवेश करने के पसंदीदा विकल्पों में से एक है जिसमें लोगों की दिलचस्पी और बढ़ रही है. ज्यादातर लोग अपनी इनकम का कुछ हिस्सा बचाकर इसमें रेगुलर निवेश करते हैं ताकि उन्हें अच्छा रिटर्न मिल सके. अगर आप भी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं या इसमें निवेश करना चाहते हैं तो हम आपको एक ऐसा तरीका बता रहे हैं जिसकी मदद से आप जल्द ही करोड़पति बन सकते हैं. इसके लिए आपको बस एक आसान से नियम का पालन करना है.

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के इस नियम को 15×15×15 का नियम कहा जाता है. इस नियम के तहत सबसे पहले 15 फीसदी का रिटर्न टारगेट फिक्स किया जाता है. फिर आपको यह समझने में आसानी हो जाती है कि आपको हर महीने कितनी बचत करनी है और निवेश कितने समय तक करना है.

ऐसे समझें 15×15×15 का नियम
तीन बार 15 रिटर्न टारगेट, निवेश की अवधि और मासिक निवेश करने वाली राशि को दर्शाता है. हम अगर इसे आसान भाषा में बताएं तो इस नियम से निवेश करने पर आपको सबसे पहले 15 फीसदी का रिटर्न टारगेट फिक्स करना होता है. फिर आपको हर निवेश करने से पहले आसान भाषा में समझें महीने 15 हजार रुपये की बचत करके उसे लगातार 15 साल तक म्यूचुअल फंड में निवेश करना है. इस हिसाब से हर महीने 15 हजार रुपये का निवेश करने पर 15 साल में आपका निवेश 27 लाख रुपये हो जाएगा. जबकि सालाना 15 फीसदी के हिसाब से मैच्योरिटी पर आपको 1 करोड़ रुपये का रिटर्न मिल सकता है. इस तरह 15×15×15 नियम से निवेश करके आप करोड़पति बन सकते हैं.

कैसे मिलेगा 15 फीसदी का सालाना रिटर्न?
हालांकि 15 फीसदी का सालाना रिटर्न मिल पाना संभव नहीं लगता है. लेकिन लंबी अवधि के निवेश में आपको 12 फीसदी का रिटर्न आराम से मिल जाता है. इसे बढ़ाकर 15 फीसदी तक ले जाने के लिए आप एसआईपी में निवेश की राशि को बढ़ा सकते हैं. इस तरह आपको एक साथ ज्यादा बोझ भी नहीं झेलना पड़ेगा और जमा राशि बढ़ने से उस पर रिटर्न भी ज्यादा मिलेगा. एसआईपी में निवेश को आप महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए बढ़ा सकते हैं.

एसआईपी का यह है सबसे बड़ा फायदा
एसआईपी में निवेश करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें आपको चक्रवृद्धि ब्याज (Compound Interest) मिलता है. यानी इसमें आप जितने ज्यादा समय तक निवेश करेंगे उतना ही ज्यादा आपको फायदा मिलेगा. इस तरह आपके पास प्लान की मैच्योरिटी के समय एकसाथ बड़ी राशि मिलती है.

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