एडगर डेल
एडगर डेल (27 अप्रैल, 1900 को बेन्सन, मिनेसोटा में - 8 मार्च, 1985 कोलंबस, ओहियो में ) एक अमेरिकी शिक्षक थे, जिन्होंने कोन ऑफ एक्सपीरियंस विकसित किया, जिसे लर्निंग पिरामिड के रूप में भी जाना जाता है । उन्होंने ऑडियो और विजुअल निर्देश में कई योगदान दिए, जिसमें मोशन पिक्चर्स की सामग्री के विश्लेषण के लिए एक पद्धति भी शामिल है ।
एडगर डेल का जन्म 27 अप्रैल 1900 को मिनेसोटा के बेन्सन में हुआ था। उन्होंने नॉर्थ डकोटा विश्वविद्यालय से बीए और एमए और शिकागो विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की । [1] उनकी डॉक्टरेट थीसिस का शीर्षक था "व्यावसायिक शर्तों की बच्चों की समझ के विशेष संदर्भ के साथ अंकगणित में पाठ्यचर्या संशोधन के लिए तथ्यात्मक आधार।" [२] और शब्दावली और पठनीयता के साथ अपने बाद के काम के लिए अग्रदूत हैं ।
1921 से 1924 तक, डेल वेबस्टर, नॉर्थ डकोटा में एक शिक्षक और स्कूलों के अधीक्षक थे । 1924 में, वे विन्नेटका, इलिनोइस में जूनियर हाई स्कूल में शिक्षक बन गए , जहाँ वे 1926 तक रहे। 1928 में, फिल्म में डेल की रुचि ने ईस्टमैन कोडक के साथ रोचेस्टर में ईस्टमैन टीचिंग फिल्म्स के संपादकीय स्टाफ के सदस्य के रूप में एक पद प्राप्त किया । एक साल के लिए न्यूयॉर्क । [३]
1929 में, डेल ने ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने के लिए कोडक छोड़ दिया । [४] डेल १९७० में अपनी सेवानिवृत्ति तक ओएसयू में प्रोफेसर बने रहे। [५]
1933 में, डेल ने एक हाई स्कूल फिल्म प्रशंसा वर्ग को प्रभावी ढंग से कैसे बनाया जाए, इस पर एक पेपर लिखा । इस पत्र को उस समय के फिल्म नियंत्रण बोर्डों द्वारा लिए गए फिल्मों के साथ किशोरों की बातचीत के बारे में बहुत अलग दृष्टिकोण रखने के लिए नोट किया गया है । [6]
8 मार्च 1985 को कोलंबस, ओहियो में डेल की मृत्यु हो गई।
1946 में, डेल ने शिक्षण में दृश्य-श्रव्य विधियों पर एक पाठ्यपुस्तक में कोन ऑफ़ एक्सपीरियंस अवधारणा को पेश किया। उन्होंने 1954 में और फिर 1969 में दूसरी छपाई के लिए इसे संशोधित किया। [7]
डेल के "कॉन ऑफ एक्सपीरियंस", जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार के दृश्य-श्रव्य मीडिया की संक्षिप्तता का एक सहज मॉडल प्रदान करना था , को व्यापक रूप से गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। अक्सर "सीखने का शंकु" के रूप में जाना जाता है, यह दर्शकों को यह सूचित करने के लिए है कि लोगों को जानकारी का सामना करने के आधार पर कितना याद है।
हालांकि, डेल ने कोई संख्या शामिल नहीं की और वैज्ञानिक अनुसंधान पर अपने शंकु को आधार नहीं बनाया, और उन्होंने पाठकों को शंकु को बहुत गंभीरता से न लेने की चेतावनी भी दी। [८] इन नंबरों की उत्पत्ति १९६७ से हुई, जब मोबिल ऑयल कंपनी के एक कर्मचारी, डीजी ट्रेचलर ने फिल्म और ऑडियो-विजुअल कम्युनिकेशंस में एक गैर-विद्वान लेख प्रकाशित किया। [9] [10]
अनुभव शंकु किसकी देन है?
इसे सुनेंरोकेंइसका शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया में स्थान सुनिश्चित कीजिए। एडगर डेल के अनुभवों का मनोवैज्ञानिक उपयोग समझाइये। उत्तर : एडगर त्रिकोण का अर्थ – बहुइन्द्रिय अनुदेशन के लिए एडगर डेल ने दृश्य – श्रव्य साधनों की मदद से अनुभवों के आधार पर एक विशेष तरह का वर्गीकरण पेश किया है, जिसे उसने “अनुभव का त्रिकोण” की संज्ञा दी है।
एडगर डेल के अनुभव शंकु में प्रदर्शित कौन सी शिक्षण विधि अधिक प्रभावी है और क्यों?
इसे सुनेंरोकेंएडगर डेल ने अपने अनुभव शंकु (चित्र-1) के माध्यम से शिक्षा में तकनीकी के प्रयोग को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान करते हुए यह स्पष्ट किया है सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर समर्थित तकनीकी, शिक्षण विधियों तथा उपकरणों का प्रयोग कर शिक्षण को प्रभावी बना सकते हैं।
एडगर डेल का अनुभव शंकु क्या है?
इसे सुनेंरोकेंअध्यापन अधिगम सामग्री अध्येताओं को विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अधिगम अनुभव प्रदान करते हैं। एडगर डेल (1969) ने अधिगम अनुभवों को प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष के एक सातत्यक (continuum) पर व्यवस्थित किया जिसका “मूर्त से अमूर्त” के सांतत्यक के साथ एक सहसम्बन्ध देखा गया। उन्होंने इसे “अनुभवों का शंकु की संज्ञा दी।
शिक्षण अधिगम सामग्री क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षण अधिगम सामग्री क्या है? What is teaching learning material (What is TLM)? वह सामग्री जो शिक्षा को सरल, सुगम, आकर्षक, हृदयग्राही तथा बोधगम्य बनाती हो तथा शिक्षण में मददगार सामग्री, शिक्षण अधिगम सामग्री (TLM) कहलाती है। शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री (Teaching Aids) सोच और खोज की प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करती है।
भारतीय सामाजिक अध्ययन कक्षा में डेल्स शंकु अनुभव का उपयोग कैसे किया जाता है?
एडगर डेल का ‘अनुभव का शंकु’:
- शंकु मूल रूप से एडगर डेल द्वारा एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण 1946 में विकसित किया गया था, और इसे विभिन्न सीखने के अनुभवों और उनकी अवधारण दरों का वर्णन करने के तरीके के रूप में किया गया था।
- शंकु सबसे ठोस (शंकु के तल पर) से सबसे अमूर्त (शंकु के शीर्ष पर) के अनुभवों की प्रगति को दर्शाता है।
दृश्य श्रव्य सामग्री से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंश्रव्य-दृश्य सामग्री, “वे साधन हैं, जिन्हें हम आँखों से देख सकर हैं, कानों से उनसे सम्बन्धित ध्वनि सुन सकते हैं। वे प्रक्रियाएँ जिनमें दृश्य तथा श्रव्य इन्द्रियाँ सकिय होकर भाग लेती हैं, श्रव्य-दृश्य एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण साधन कहलाती हैं।”
ईजी नोट्स
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बी.एड.-I प्रश्नपत्र-4 (वैकल्पिक) जैव विज्ञान शिक्षण के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार हिन्दी माध्यम एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण में सहायक-पुस्तक।
प्रश्न 10. जैव विज्ञान शिक्षण में भ्रमण से क्या तात्पर्य है ? भ्रमण के महत्व व योजना का वर्णन कीजिए।
अथवा
जैव विज्ञान शिक्षण में भ्रमण के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। किसी दृश्य स्थल हेतु भ्रमण के आयोजन में किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है ? (कानपुर 2009)
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जैव विज्ञान शिक्षण में भ्रमण से क्या तात्पर्य है?
2. विज्ञान भ्रमण का एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण वर्णन कीजिए।(कानपुर 2016)
3. जीव विज्ञान के शिक्षण अध्ययन में भ्रमण अथवा पर्यटनों का क्या महत्व हैं ? विवेचना कीजिए।
4. भ्रमण की योजना पर प्रकाश डालिए।
5. जैव विज्ञान में शैक्षिक भ्रमण का महत्व बताइए। (कानपुर 2011, 13, 17)
6. विज्ञान भ्रमण का कार्यक्रम बनाते समय एक विज्ञान भ्रमण कार्यक्रम की कार्य क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिए ?(कानपुर 2017)
उत्तर-भ्रमण
(Excursion)
विद्यालय एक सीमित स्थान है जो निश्चित सीमाओं में बँधा रहता है। इस कारण यहाँ छात्रों के लिये अनुभव अर्जन की सम्भावना भी सीमित रहती है। बाह्य जगत विस्तृत है; अत: वहाँ छात्रों को नवीन अनुभव अर्जित करने की सम्भावना भी असीमित हो जाती है। भ्रमण छात्रों को नवीनतम (first hand) अनुभव प्रदान करते हैं, जिसे छात्र अधिगम परिस्थितियों के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आकर प्राप्त करते हैं। अत: यह निश्चित रूप से कक्षा व प्रयोगशालाओं में अर्जित अनुभवों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली व उपयोगी एवं स्थायी होते हैं।
भ्रमण का महत्त्व
(Importance of Excursion)
भ्रमण शिक्षा में अधिक रुचि उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि यह अधिक अर्थपूर्ण अनुभवों पर आधारित होते हैं, इस कारण अधिगम स्थानान्तरण (Transfer of learning) भी इनके माध्यम से अधिक होता है, क्योंकि इसमें वास्तविक रूप में वस्तुओं को देखने का अवसर मिलता है। इस कारण यह अधिक उत्सुकता जगा सकता है।
विशेष रूप से जीवित वस्तुओं का अध्ययन तो प्राकृतिक वातावरण में ही अच्छा हो सकता है, क्योंकि अधिकतर प्राणी (जीव-जन्तु व पौधे) नियन्त्रित वातावरण में अपना स्वाभाविक व्यवहार नहीं करते हैं।
इसी प्रकार बहुत-सी वस्तुएँ अपनी स्थिति व आकार के कारण विद्यालय की सीमित परिधि में नहीं लाई जा सकतीं; जैसे- पर्वत, झरने, पेड़ आदि, उनका बाहर ही एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण अध्ययन किया जा सकता है।
कहा गया है कि इन्द्रियाँ ज्ञानार्जन का द्वार हैं (Sences are one gateway of knowledge)। भ्रमण में अनुभवार्जन हेतु सभी इन्द्रियों का सक्रिय होने का अवसर मिलता है। भ्रमण में छात्रों को स्वयमेव विभिन्न वस्तुएँ एकत्रित करने का अवसर मिलता है, जिसे वह विद्यालय के संग्रहालय में रख सकते हैं। साथ ही उन्हें परस्पर सहयोग करने का अवसर भी मिलता है।
बाह्य जगत के सीधे सम्पर्क में आने के फलस्वरूप छात्रों की निरीक्षण शक्ति भी विकसित होती है जिससे वह नई-नई समस्याओं को खोजता है और उनके ढूँढने का प्रयास करता है, उदाहरणार्थ-
"ध्वनि यान्त्रिकों एवं गति के नियम आदि का अनुभव प्रत्यक्षत: ही प्रभावशाली ढंग से प्राप्त किया जा सकता है।"
विज्ञान अध्यापक अपने शिक्षण को समृद्ध तथा समयायत करने के लिये समुदाय के साधनों को इस दृष्टिकोण से समुचित उपयोग कर सकता है। उदाहरणार्थ-
संग्रहालय, चिड़ियाघर, उद्यान, टेलीफोन एक्सचेंज, रेडियो स्टेशन, हवाई अडडे, बन्दरगाह, मौसम कार्यालय, फार्म, डेरी आदि अनेक एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण ऐसे सामुदायिक साधन हैं जिनका भ्रमण में सदुपयोग किया जा सकता है।
भ्रमण की योजना
(Planning of an Excursion)
एक सफल भ्रमण योजना निम्न पदों में बनाई जा सकती है-
1. योजना निर्माण (Planning)-भ्रमण को निश्चित रूप से सफल बनाने हेतु समूची योजना का निर्माण छात्रों के सहयोग से अग्रिम रूप में कर लिया जाना चाहिये। इसके लिये एक निर्देशिका (Guide sheet) तैयार कर लेनी चाहिये, जिसमें मुख्यत: तीन पक्षों का ध्यान रखना चाहिये-
1. शिक्षण सम्बन्धी पक्ष,
2. भौतिक आवश्यकता सम्बन्धी,
3. प्रशासकीय पक्ष।
शिक्षण सम्बन्धी पक्ष में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये-
1. साथ ले जाने वाले उपकरण आदि।
2. छात्रों को या छात्र वर्गों को सामग्री संकलन की जिम्मेदारी सौंपना व विवरण लिखने की जिम्मेदारी सौंपना।
3. व्यावहारिक प्रयोगों हेतु प्रश्नों व सिद्धान्तों की सूची बनाना।
भौतिक आवश्यकता सम्बन्धी पक्ष में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये-
1. मार्ग निर्देशन हेतु निर्देशन पुस्तिका।
2. वस्त्र, जलपान व भोजन व्यवस्था।
3. यातायात के साधन का प्रबन्ध।
4. प्राथमिक उपचार के साधन।
प्रशासकीय पक्ष में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये-
1. निश्चित समय।
2. स्कूल अधिकारियों की अनुमति व सहयोग।
3. अन्य सहयोगी अध्यापकों से सहयोग।
4. छात्रों के माता-पिता की अनुमति।
5. यात्रा का साधन (बस अथवा रेलवे रियायत आदि)
2. तैयारी (एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण Preparation)-इस स्तर पर छात्रों को स्पष्ट रूप से भ्रमण के उद्देश्यों के विषय में बता देना चाहिये कि उनसे कैसा व्यवहार अपेक्षित एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण है और उन्हें किन नियमों का पालन करना होगा। यह स्पष्ट कर देना चाहिये जिससे कि भ्रमण अनुशासित प्रकार से किया जा सके।
3. क्रियान्वयन (Execution)-इस स्तर पर अध्यापक का दायित्व बढ़ जाता है। उसे अनावश्यक रूप से प्रावधान न करते हुए भी छात्रों एड़गर के अनुभवों का त्रिकोण की क्रियाओं का सूक्ष्म निरीक्षण करना चाहिये एवं आवश्यकता पड़ने पर मार्ग-दर्शन करना चाहिये, उसे छात्रों का उत्साहवर्धन उनकी प्रगति के अनुकूल प्रतिक्रिया द्वारा करना चाहिये।
4. अनुवर्ती कार्य (Follow up work)-अनुवर्ती कार्य के रूप में प्रतिरूप (models) चार्ट, चित्र पुस्तिका आदि का निर्माण किया जा सकता है। छात्र एकत्रित वस्तुओं को संग्रहालय में व्यवस्थित रख सकते हैं। भ्रमण पर आधारित निबन्ध व भाषणों का आयोजन किया जा सकता है। अध्यापक परीक्षा द्वारा अर्जित अनुभवों को ज्ञात कर सकता है।
5. मूल्यांकन (Evaluation)-भ्रमण के पश्चात् छात्र समूह वाद-विवाद अथवा परस्पर विचारों के आदान-प्रदान द्वारा भ्रमण की सफलता या असफलता का मूल्यांकन कर सकते हैं।
एडगर डेल के श्रव्य - दृश्य साधनों के 'अनुभव शंकु' द्वारा किए गए वर्गीकरण में सबसे उच्चतम अनुभव कौन सा है?
Key Points
अनुभव के शंकु में, शंकु के सिद्धांत को नीचे से ऊपर की ओर क्रमिक रूप से व्यवस्थित किया जाता है। सिद्धांत का नाम नीचे दिया गया है:
- मौखिक प्रतीक
- दृश्य प्रतीक
- स्थिर चित्र, रेडियो रिकॉर्डिंग
- गतिशील चित्र
- प्रदर्शन
- क्षेत्र यात्राएं
- प्रतिपादन
- नाटकीय भागीदारी
- कल्पित अनुभव
- प्रत्यक्ष, उद्देश्यपूर्ण अनुभव
इसलिए, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि एडगर डेल के " अनुभव शंकु' " के माध्यम से श्रव्य - दृश्य साधनों के वर्गीकरण में उद्देश्यपूर्ण अनुभव सर्वोच्च अनुभव है।
Additional Information
एडगर डेल ने 1969 में यह सिद्धांत दिया था।
अनुभव के इस शंकु को अधिगम पिरामिड भी कहा जाता है।
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Last updated on Dec 7, 2022
CTET Application Correction Window was active from 28th November 2022 to 3rd December 2022. The detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle was released on 31st October 2022. The last date to apply was 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination.
शिक्षण अधिगम से संबंधित 'अनुभव का शंकु' सिद्धांत का सुझाव किसने द
पाठ्यक्रम की योजना बनाते समय शिक्षार्थियों के लिए सीखने के अनुभवों का चयन करना एक प्रमुख विचार है। प्रकृति से सीखना एक सक्रिय प्रक्रिया है और छात्र तब बेहतर सीखते हैं जब वे स्वयं सीखते हैं और वे अलग-अलग तरीकों से सीखते हैं।
एडगर डेल का 'अनुभव का शंकु':
- शंकु मूल रूप से एडगर डेल द्वारा 1946 में विकसित किया गया था, और इसे विभिन्न सीखने के अनुभवों और उनकी अवधारण दरों का वर्णन करने के तरीके के रूप में किया गया था।
- शंकु सबसे ठोस (शंकु के तल पर) से सबसे अमूर्त (शंकु के शीर्ष पर) के अनुभवों की प्रगति को दर्शाता है। शंकु में व्यवस्था इसकी कठिनाई पर आधारित नहीं है, बल्कि अमूर्तता पर आधारित है और इसमें शामिल इंद्रियों की संख्या है।
- शंकु का आधार अधिक ठोस अनुभवों, जैसे प्रत्यक्ष अनुभव (वास्तविक जीवन के अनुभव), आकस्मिक अनुभव (इंटरैक्टिव मॉडल) और नाटकीय भागीदारी (रोल प्ले) की विशेषता है।
- शंकु का मध्य थोड़ा अधिक सारगर्भित है और इसे वास्तविक रूप से शिक्षार्थियों द्वारा अनुभव के अनुसार "अवलोकन" करने की विशेषता को दर्शाता है। इसमें प्रदर्शन, क्षेत्र यात्राएं, प्रदर्शन, गति चित्र और ऑडियो रिकॉर्डिंग या स्टिल चित्र शामिल हैं।
- शंकु का शिखर सबसे अमूर्त होता है जहां अनुभवों को प्रतीकों द्वारा गैर-वास्तविक रूप से दर्शाया जाता है, या तो दृश्य या मौखिक जैसे-बोले गए शब्द को सुनना।
शंकु दर्शाता है कि आप शंकु को जितना आगे बढ़ाते हैं, सीखना जितना ज्यादा होगा उतनी ही अधिक जानकारी को बनाए रखने की संभावना होती है। इसलिए, शिक्षक को बेहतर शिक्षण और अवधारणा के लिए इन शिक्षण अनुभवों का एक संयोजन प्रदान करना होगा।
इसलिए, दिए गए बातों से पता चलता है कि एडगर डेल द्वारा शिक्षण और सीखने से संबंधित 'अनुभव का शंकु' सिद्धांत दिया गया था।
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